ड्राइवर बिना भी सुरक्षित ढंग से चलेंगी गाड़ियां
२० मई २०१६तकनीक गाड़ी के अगले हिस्से में नहीं बल्कि छत पर है. वैज्ञानिकों की एक टीम ने मेड इन जर्मनी नाम की यह ड्राइवरलैस गाड़ी डेवलप की है. रिसर्च और कंस्ट्रक्शन पर 15 लाख यूरो खर्च किए गए हैं ताकि कार को इंसानी क्षमताएं सिखाई जा सकें. सबसे बड़ी चुनौती थी कार के आस पास मौजूद चीजों को पहचानना. बिना ड्राइवर के गाड़ी चलाने में सबसे बड़ी कठिनाई रास्ते को पहचानना या नेविगेशन नहीं है, ये काम तो आजकल सामान्य गाड़ियां भी कर लेती हैं. मुश्किल बात रेड लाइट, ट्रैफिक साइन और पैदल चलने वाले लोगों को पहचानना है. सड़क पर चलने वाले लोगों को पहचानना बहुत जरूरी है ताकि गाड़ी उसके अनुकूल खुद को ढाल सके.
यूरोप का सबसे बड़ा ड्राइविंग सिमुलेटर जर्मनी में है. यहां इस बात की जांच की जाती है कि ड्राइव करते समय इंसान की क्या प्रतिक्रिया होती है, सामान्य से लेकर आपात परिस्थिति में. यहां जमा डाटा की मदद से वैज्ञानिक लोगों के होशोहवास का आकलन करते हैं.
अभी कहां है चुनौती
इंटेलिजेंट कार ड्राइवर से ज्यादा भरोसेमंद हो, ऐसा वैज्ञानिकों का इरादा है. कार को डिजायन करने वालों में प्रोफेसर लेमर भी शामिल हैं. ऑटोमैटिक कार का मकसद ये है कि गाड़ी आस पास के माहौल को उसी तरह पहचाने जैसा कि हम इंसान करते हैं. इसके लिए एक सेंसर सिस्टम की जरूरत है जो अलग अलग रोशनी और मौसम में इसे रजिस्टर करे. प्रोफेसर लेमर कहते हैं, "इसके अलावा छठी इंद्री यानि ड्राइवर के अनुभव को भी जागृत करने की जरूरत है. मान लीजिए कि कोई बिना इंडिकेटर दिए एग्जिट ले रहा है. इस सूचना को तकनीकी रूप से रजिस्टर करना और उसे आंकना ताकि सुरक्षित ड्राइविंग की गारंटी हो सके, ये ऑटोमैटिक ड्राइविंग के महत्वपूर्ण मुद्दे हैं."
जर्मनी की राजधानी बर्लिन में हर रोज 15 लाख गाड़ियां सड़क पर होती है. और उनमें से एक में कोई ड्राइवर नहीं है. इसमें एक कंप्यूटर ब्रेक, एक्सेलेटर और स्टीयरिंग चलाता है. सड़क पर दूसरी गाड़ियों और पैदल चलने वाले लोगों को लेजर स्कैनर, रडार और वीडियो कैमरे की मदद से रजिस्टर किया जाता है. खास सॉफ्टवेयर ट्रैफिक पर नजर रखता है और ड्राइविंग के लिए जरूरी निर्देश देता है. फिलहाल निगरानी के लिए एक ड्राइवर स्टीयरिंग पर बैठता है.
शुरुआती असमंजस
आईटी एक्सपर्ट राउल रोखास ड्राइवर की दुविधा को समझाते हैं, "स्वाभाविक रूप से अजीब सा महसूस होता है, जब आप कार में बैठते हैं और ड्राइविंग सीट पर कोई नहीं होता. इसके लिए आपको मानसिक रूप से तैयार होना होगा. खासकर तब जब आप हाईवे पर हों, गाड़ी 120 किलोमीटर की रफ्तार से जा रही हो और स्टीयरिंग व्हील अपने आप हिल रहा हो. अजीब सी भावना होती है यह."
सिर्फ बर्लिन की भीड़ भरी सड़कों पर ही नहीं एक्सप्रेस हाईवे पर भी जहां कई हिस्सों में जर्मनी में कोई स्पीड लिमिट नहीं है, मेड इन जर्मनी कार पूरी तरह सुरक्षित अपनी लेन में रहती है. कार का दिमाग यानि कंप्यूटर अपने आप सारे फैसले लेता है.
कार की डिकी में कल की तकनीक छुपी है, जो खासकर गंभीर परिस्थितियों में जान की रक्षा करेगी. भविष्य में पूरी तरह ऑटोमैटिक ड्राइविंग के फायदों की एक मिसाल यह हो सकती है कि जटिल परिस्थितियों में सिस्टम, ड्राइवर के हार्ट अटैक को पहचान लेगा और कार को सुरक्षित रोड से बाहर ले जाकर रोक देगा.