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डेरों का झूठा सौदा

मारिया जॉन सांचेज
२८ अगस्त २०१७

डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत सिंह को बलात्कार के आरोप में सजा मिलने के बाद डेरों की गतिविधियों पर ध्यान दिये जाने की जरूरत है. कुलदीप कुमार का कहना है कि पहले भी भिंडरांवाले जैसे गुरू सरकार के लिए खतरा बन चुके हैं.

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Indien  Baba Ram Rahim
तस्वीर: picture alliance/Pacific Press/A. Khan

पंजाब और हरियाणा में करोड़ों भक्तों की श्रद्धा के केंद्र और डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत सिंह राम रहीम इंसान को बलात्कार के आरोप में दोषी पाये जाने के बाद दस साल की सपरिश्रम कैद की सजा होने से इस कांड के पहले अंक पर तो पर्दा गिर गया है, लेकिन अभी यह प्रकरण समाप्त नहीं हुआ है. अपने को भगवान मानने और भक्तों से मनवाने वाले इस व्यक्ति पर अभी हत्या का एक और मुकदमा चल रहा है जिसमें अगले माह फैसला सुनाये जाने की उम्मीद की जा रही है. इसी के साथ भक्ति, अध्यात्म और समाजसेवा के नाम पर चल रहे इन डेरों के बारे में सार्वजनिक विमर्श भी तेज हो चला है और धर्म, राजनीति और अपराध के बीच के गहरे रिश्ते भी चर्चा के केंद्र में आ गए हैं. पिछले शुक्रवार से अब तक जो हुआ है, उसे देखकर हर नागरिक के मन में एक ही सवाल है, और वह यह कि वे कौन से कारण हैं जो एक अपराधी को करोड़ों लोगों की श्रद्धा का केंद्र, अकूत धन-संपत्ति का स्वामी और राजनीतिक रूप से अत्यधिक प्रभावशाली बना देते हैं?

पिछले वर्ष ही हरियाणा के एक मंत्री ने सरकारी कोष यानी जनता के पैसे से ग्यारह लाख रुपये डेरा सच्चा सौदा को दिये थे. गुरमीत सिंह राम रहीम को सरकार की ओर से जेड प्लस सुरक्षा भी मिली हुई थी जो किसी भी नागरिक को दी जाने वाली सर्वोच्च सुरक्षा है. 2014 के चुनाव प्रचार के दौरान स्वयं नरेंद्र मोदी ने डेरे के मुख्यालय जाकर उसकी भूरि-भूरि प्रशंसा की थी और उसके सामने नमन किया था और डेरे की ओर से भारतीय जनता पार्टी को पूरा समर्थन मिला था. कांग्रेस भी डेरे का समर्थन लेती रही है. जाहिर है कि उसका समर्थन लेकर सत्ता में आने वाली पार्टी उसके प्रति कृतज्ञ ही रहेगी और डेरे के प्रमुख को सरकार और प्रशासन की ओर से केवल संरक्षण ही मिलेगा. और पिछले कई दशकों से यही होता भी रहा है. पिछले दिनों डेरा सच्चा सौदा की तलाशी के दौरान कई एके-47 राइफलें, पेट्रोल बम, गोला-बारूद और अन्य कई किस्म के हथियार बरामद हुए हैं. डेरे की अपनी एक निजी सेना है जो अत्याधुनिक हथियारों से लैस है. सवाल है कि पुलिस-प्रशासन के होते हुए यह सब कैसे संभव हो पाया? ऐसा ही एक सवाल 1983-1984 में उठा था जब जरनैल सिंह भिंडरांवाले ने अकाल तख्त को किले में तब्दील कर दिया था और सेना से मोर्चा लेने की पूरी तैयारी कर ली थी.

Indien - Guru und Religiöser Führer - Gurmeet Ram Rahim Singh Insan
दूसरे सिख पंथों के समर्थन राम रहीम के विरोधी हैंतस्वीर: picture-alliance/dpa/R. Pal Singh

न तो गुरमीत सिंह राम रहीम को और न ही उसके भक्तों को यह उम्मीद थी कि अदालत उसे दोषी करार देगी. लेकिन शुक्रवार को जब ऐसा हो गया, तो उन्होंने हिंसा का तांडव शुरू कर दिया जिसमें 38 लोग मारे गए और अन्य अनेक घायल हो गए. पुलिस और प्रशासन तब भी निष्क्रिय रहे क्योंकि राजनीतिक नेतृत्व यानी मुख्यमंत्री के हाथ-पांव फूल गए थे. उनके मंत्रिमंडल के सदस्यों और स्वयं भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने इस हिंसा के लिए न्यायपालिका को ही दोषी ठहरा दिया.

लेकिन चाहे सुप्रीम कोर्ट का निजता के अधिकार वाला फैसला हो या सीबीआई की विशेष अदालत के जज जगदीप सिंह का गुरमीत सिंह राम रहीम के बारे में फैसला हो, न्यायपालिका ने बार-बार यह सिद्ध किया है कि अभी भी भारतीय लोकतंत्र का वही एकमात्र ऐसा स्तंभ है जिसने अपनी साख बचा कर रखी है और जिस पर भरोसा किया जा सकता है.

डेरा सच्चा सौदा अकेला डेरा नहीं है. पंजाब और हरियाणा में ऐसे कई सौ डेरे हैं जिनमें से कुछ बहुत मशहूर हैं मसलन नामधारी, निरंकारी और राधास्वामी (ब्यास). हिन्दू समाज में तो जातिव्यवस्था पर आधारित भेदभाव व्याप्त है ही, लेकिन जातिभेद को न मानने वाले सिख धर्म में भी यह बीमारी अंदर तक घुसी हुई है. दलित और पिछड़ी जातियों के सिखों को सिखों के सामाजिक और धार्मिक जीवन में न समानता मिलती है और न ही किसी किस्म का अधिकार. गुरद्वारों के प्रबंधन में और अकाली दल की राजनीति में उनका प्रतिनिधित्व नगण्य है और उनकी सामाजिक अस्मिता की स्वीकार्यता भी नहीं है. ऐसे में इन जातियों के लोग इन डेरों की शरण में जाते हैं जहां इन्हें एक किस्म का धार्मिक अनुभव और सामूहिकता का एहसास मिलता है. जहां सिख धर्म में जीवित गुरु की मान्यता गुरु गोविंद सिंह के बाद समाप्त हो गई है, वहीं इन डेरों में जीवित गुरु को पूजा जाता है. इसी क्रम में गुरमीत सिंह राम रहीम जैसे ढोंगी गुरुओं का उदय होता है. इन गुरुओं और राजनीतिक दलों के बीच बहुत गहरा रिश्ता कायम होते देर नहीं लगती क्योंकि राजनीतिक दलों को उनके अनुयायियों के वोट की जरूरत होती है और डेरों और उनके प्रमुखों को राजनीतिक संरक्षण की.

सभी डेरे ऐसे नहीं हैं जैसा डेरा सच्चा सौदा निकला. लेकिन सभी में विपुल धन-संपत्ति इकट्ठा होने के कारण इस प्रकार के विचलन की संभावना जरूर है जैसा विचलन गुरमीत सिंह राम रहीम में देखने को आया. क्या इस प्रकरण से डेरे और राजनीतिक दल कुछ सीखेंगे? क्या भक्त भी भगवान चुनने से पहले कुछ जांच-परख किया करेंगे? समय की यही मांग है.