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डिजिटल होती दुनिया के नए नागरिक

२ अगस्त २००९

एक सर्वेक्षण के अनुसार भारत में स्कूली बच्चे उच्च तकनीक पर आधारित मोबाइल, कंप्यूटरों और अन्य गैजेट्स को इस्तेमाल करते हुए बेहद सहज महसूस करते हैं. उनकी आकांक्षाएं आसमान छू रही हैं और उनके सोचने का दायरा फैल रहा है.

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उच्च तकनीक का इस्तेमाल करने में सहजतस्वीर: picture-alliance/ dpa

यह सर्वेक्षण नामी आईटी कंपनियों में से एक टाटा कंसलटेंसी सर्विसेज़ ने भारत के 12 बड़े शहरों में कराया था और इसमें प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने वाले 12 से 18 साल की उम्र के 14,000 बच्चों ने हिस्सा लिया. इस सर्वेक्षण के नतीजों से स्पष्ट हो गया कि भारतीय महानगरों में स्कूली बच्चे तेज़ी से डिजिटल होती जा रही दुनिया में डिजिटल नागरिक बनने के लिए तैयार दिख रहे हैं.

Mobile World Congress in Barcelona, Spanien
शहरी स्कूली बच्चों में मोबाइल रखना आम बाततस्वीर: AP

सर्वेक्षण की ख़ास बातें -

1- 63% शहरी बच्चे दिन में एक घंटे से ज़्यादा समय के लिए ऑनलाइन होते हैं.

2- 93% बच्चे सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट के बारे में जानते हैं.

3- 80% से ज़्यादा के पास मोबाइल फ़ोन हैं.

4- 46% बच्चे ख़बर जानने के लिए ऑनलाइन माध्यम का सहारा लेते हैं.

5- 62% बच्चों के पास घर पर एक पर्सनल कंप्यूटर है.

6- महानगरों में हर 4 में से एक बच्चे के पास लैपटॉप है.

7- आईटी और इंजीनियरिंग बच्चों के पसंदीदा करियर हैं.

8- मीडिया, एंटरटेनमेंट, ट्रैवल, टूरिज़्म में करियर में दिलचस्पी बढ़ रही है.

9- उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका और ब्रिटेन को प्राथमिकता.


सर्वे के अनुसार अधिकतर शहरी स्कूली बच्चों के पास हर वक़्त ऑनलाइन होने की और नई तकनीक का इस्तेमाल करने की सुविधा है. टीसीएस के सीआईओ और एमडी एस रामादोराई का कहना है कि यही डिजिटल पीढ़ी आने वाले सालों में भारत के आर्थिक विकास में हाथ बंटाएगी और इसलिए ज़रूरी है कि इस पीढ़ी की ज़रूरतों, विचारों और उनकी प्राथमिकताओं को समझा जाए.

Indien, Kinder spielen im Slum
छोटे शहरों की तस्वीर उलटतस्वीर: AP

रामादोराई के मुताबिक़ महानगरों में स्कूली बच्चों के पास बढ़ती सुविधा और शिक्षा के बेहतर होते स्तर से माता-पिता, शिक्षाविदों, नीति निर्धारकों को समझना चाहिए कि नई पीढ़ी की ज़रूरतें बदल रही हैं और उनका नज़रिया भी. उन्हें उम्मीद है कि इस सर्वे से डिजीटल पीढ़ी को समझने में मदद मिल सकेगी.

लेकिन यह सर्वे भारत के गांवों, क़स्बों छोटे शहरों में रह रहे छात्रों और महानगरों के स्कूली बच्चों में बढ़ रही असमानता की ओर भी इशारा करता है. जहां एक ओर बड़े शहरों में छात्र सुविधाओं के मामले में काफ़ी आगे हैं और नवीनतम तकनीक का उपयोग करना जानते हैं वहीं गांवों और क़स्बों के छात्र बदलाव के इस दौर में ख़ुद को अपने समकक्षों से कोसो दूर पाते हैं.

बड़े शहरों में स्कूली बच्चों के अंतहीन सपनों और गांव, छोटे शहरों के बच्चों की न्यूनतम ज़रूरतों के बीच एक गहरी खाई है जो कम होने के बजाय चौड़ी हो रही है.

रिपोर्ट: एजेंसियां/एस गौड़

संपादन: ओ सिंह