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वोदका के मारे रूसी

३१ जनवरी २०१४

रूस अपनी सर्दी और सर्दी से निजात दिलाने वाली वोदका के लिए मशहूर है. लेकिन यही वोदका रूसियों की जान ले रही है.

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तस्वीर: fotolia/Storm Flash

डेढ़ लाख से ज्यादा लोगों पर टेस्ट करने के बाद रिसर्चर इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि वोदका रूस में लोगों की मौत का बड़ा कारण है. 1999 से 2010 के बीच बारनॉल, बीस्क और टॉम्स्क शहरों में लोगों के आंकड़े जमा किए गए और उनसे पूछा गया कि वे कितनी शराब पीते हैं. रिसर्च के दौरान ही 8,000 लोगों की जान चली गई. तब उनके मौत के कारण पर भी ध्यान दिया गया. नतीजों में पाया गया कि जो लोग हफ्ते में एक से डेढ़ लीटर वोदका पीते हैं उनका 55 की उम्र तक मरने का खतरा 35 फीसदी तक बढ़ जाता है.

शोध से पता चला है कि एक चौथाई से ज्यादा रूसी पुरुष 55 साल से पहले ही हो जाती है. जब अन्य देशों से इसकी तुलना की गई तो देखा गया कि ब्रिटेन में 55 की उम्र से कम केवल सात फीसदी लोगों का निधन होता है, जबकि अमेरिका में यह संख्या महज एक फीसदी है. रूस में लोगों की औसत आयु 64 साल है और वह दुनिया के उन 50 देशों में शामिल है जहां जीवन दर सबसे कम है.

साल में 20 लीटर

इस रिसर्च का नेतृत्व करने वाले ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी के सर रिचर्ड पेटो का कहना है कि औसतन रूस का हर व्यक्ति सालाना 20 लीटर वोदका पीता है, "रूस के लोग वाकई बहुत शराब पीते हैं और उनमें एक आदत होती है कि वोदका पी कर जब वे नशे में धुत्त भी हो जाते हैं तब भी वे पीना जारी रखते हैं. यही खतरनाक है." रूस में देसी वोदका सस्ते में मिल जाती है. यूरोप से तुलना करते हुए उन्होंने कहा, "फिनलैंड और पोलैंड में भी बहुत पीने की संस्कृति है, लेकिन वहां रूस की तरह मौत का जरा भी खतरा नहीं है."

पेटो ने कहा कि रूस में महिलाएं भी काफी वोदका पीती हैं, लेकिन उनकी सेहत पर होने वाले असर पर अभी तक कोई रिसर्च नहीं किया गया है. लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन के डेविड लिओन ने इस बारे में बताया, "अगर आप वोदका पी रहे हैं, तो आपके शरीर में भारी मात्रा में इथेनॉल जमा होने लगेगा. जबकि बीयर पीने पर ऐसा नहीं होता." उन्होंने कहा कि रूस में पीना संस्कृति का हिस्सा है और लोगों की आदतों को बदलना जरूरी है, "रूस में इसे गलत नहीं माना जाता कि आप तब तक पीते रहें जब तक आप कुछ करने लायक ही ना बचें. वहां यह आपकी मर्दानगी को दिखाता है और आपसे उम्मीद की जाती है कि आप खूब पिएं."

रिपोर्ट में बताया गया है कि मिखाइल गोर्बाचोव ने 1985 में शराब पर कई तरह की रोक लगाई थी. उस समय देश में शराब की खपत में 25 फीसदी कमी देखी गई थी और मृत्यु दर में भी गिरावट आई थी. लेकिन साम्यवाद के खत्म होने के साथ एक बार फिर शराब की खपत तेजी से बढ़ी और मृत्यु दर भी.

आईबी/एमजी (एएफपी, रॉयटर्स)

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