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जीवाणुओं से बन सकती है बिजली

२५ मई २०११

ज्यादातर जीवाणु बीमारियां फैलाने के लिए बदनाम हैं. लेकिन अब पता चला है कि जीवाणुओं में एक तरह का करंट होता है. रेशे वाले जीवाणु प्राकृतिक ढंग से इलेक्ट्रिक आवेश छोड़ते हैं. वैज्ञानिक इससे बिजली बनाने के चक्कर में हैं.

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तस्वीर: picture-alliance/ dpa

अमेरिका की नेशनल अकादमी ऑफ साइंस की पत्रिका में जीवाणुओं में पाए जाने वाले करंट की जानकारी दी गई है. शोध का हवाला देते हुए कहा गया है कि जीवाणु हलचल करते समय विद्युतीय आवेश छोड़ते हैं. कई जीवाणुओं की कोशिका दीवार पर बेहद सूक्ष्म और पतले रेशे होते हैं. इन्हीं रेशों के जरिए विद्युतीय आवेश बहता है. यह रिसर्च इंग्लैंड की ईस्ट एंग्लिया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक कर रहे हैं. प्रयोग में यूएस पैसिफिक नॉर्थवेस्ट नेशनल लेबोरेट्री के वैज्ञानिक भी शामिल हैं.

वैज्ञानिकों के मुताबिक अणुओं के आकार के अतिसूक्ष्म तारों के जरिए जीवाणुओं के विद्युतीय आवेश को बिजली बनाने में इस्तेमाल किया जा सकता है. अगर ऐसा हुआ तो ऐसे इलेक्ट्रॉड्स बनाए जा सकेंगे जो बेहद तेजी से बिजली जमा कर सकेंगे. रिसर्च टीम के प्रमुख लेखक टॉम क्लार्क कहते हैं, "जीवाणुओं का इस्तेमाल करके हमें ज्यादा बिजली पैदा करने में कामयाब होना चाहिए."

आगे टॉम कहते हैं, "अभी तक यह प्रयोग एक ऐसे रेडियो की तरह है जिसकी बैटरी का आकार कितना होगा, आपको नहीं पता. फिलहाल हमारे पास बैटरी कैसी दिखेगी, इसका ब्लूप्रिंट है. जिंदा रहने वाली हर चीज बिजली पैदा करती है. यह कोई काल्पनिक कहानी नहीं है."

बिजली बनाने के अलावा जीवाणुओं का इस्तेमाल तेल और यूरेनियम से फैले प्रदूषण को काबू में करने के लिए किया जा सकता है. आवेश के कारण बैक्टीरिया पानी जैसी चीजों से यूरेनियम को अलग कर सकते हैं और तेल की रासायनिक संरचना को तोड़ सकते हैं.

हालांकि माना जा रहा है कि जीवाणुओं से इंसान के प्रयोग लायक बिजली बनाने में अभी एक दशक या इससे लंबा वक्त लगेगा. इसके लिए पहले बड़ी संख्या में एक जैसे बैक्टीरिया जमा करने होंगे. लेकिन इस जानकारी से आगे कई अन्य खोजें सामने आ सकती है.

रिपोर्ट: रॉयटर्स/ओ सिंह

संपादन: ए जमाल

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