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जाली दवाओं के खिलाफ पश्चिमी अफ्रीका ने कसी कमर

१५ जुलाई २०१७

पश्चिमी अफ्रीका ने जाली और एक्सपायर हो चुकी दवाएं बेचे जाने के खिलाफ जंग छेड़ी है. कई स्टार्ट अप कंपनियां मरीजों को जागरुक बना रही हैं ताकि वे ऐसी दवाओं को पहचान सकें.

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Nigeria gefälschte Arzneimittel
तस्वीर: Getty Images/AFP/P.U. Ekpei

विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसी दवाएं न सिर्फ मरीज की बीमारी को काबू करने में नाकाम रहती हैं बल्कि उनसे एंटीबायोटिक दवाओं का असर होना भी बंद हो जाता है. कई बार तो ये दवाएं मौत की वजह भी बनती हैं क्योंकि दवाएं बेअसर होने की वजह से बीमारी बिना रोकटोक शरीर को खोखला करती रहती है.

पश्चिमी अफ्रीका के 15 देशों के संगठन इकोवास ने अप्रैल में लाइबेरिया में हुई बैठक के दौरान पूरे इलाके में नकली और एक्सपायर हो चुकी दवाओं की जांच करने और इस बारे में जागरुकता बढ़ाने के लिए अभियान चलाने का फैसला किया था.

सेनेगल में इस समस्या से निपटने के लिए एक हेल्थ स्टार्टअप जोकोसांते को शुरू करने वाले अदामा काने कहते हैं कि जाली दवाओं के तस्कर ऐसे देशों को निशाना बनाते हैं जो बेहद गरीब हैं और जहां इन दवाओं की सबसे ज्यादा जरूरत है. उनके मुताबिक ऐसे देशों में अकसर स्वास्थ्य बीमा की सुविधा न होने की वजह इलाज बहुत महंगा होता है.

काने के मुताबिक हैरानी की बात यह है कि सेनेगल में बड़ी मात्रा में सही दवाएं इस्तेमाल ही नहीं हो पाती हैं. इस समस्या से निपटने के लिए जोकोसांते लोगों से ऐसी दवाएं जमा करता है जो उन्होंने खरीदी लेकिन इस्तेमाल नहीं की हैं. इसके बदले उन लोगों को कुछ पॉइंट दिए जाते हैं. इनके आधार पर बाद में वह अन्य दवाएं ले सकते हैं.

जोकोसांते का कहना है कि सेनेगल के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले परिवारों के स्वास्थ्य संबंधी खर्च का 73 प्रतिशत दवाओं पर लगता है. देश की आधी आबादी के पास कोई स्वास्थ्य बीमा नहीं है. जिन लोगों के पास दवाएं खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं, उनकी मदद जोकोसांत कुछ कंपनियों की स्पॉन्सरशिप के जरिये करने की कोशिश करता है.

Peru Fake Medizin Flash-Galerie
तस्वीर: ap

अमेरिकी सोसायटी ऑफ ट्रोपिकल मेडिसिन एंड हाइजीन का अनुमान है कि 2015 में पांच साल की उम्र से कम के 1.22 लाख बच्चे सहारा के दक्षिण में मौजूद अफ्रीकी देशों में दवाओं की कमी से मर गए. पेरिस स्थित अंतरराष्ट्रीय संस्था इंटरनेशनल इस्टीट्यूट ऑफ रिसर्च अगेंस्ट काउंटरफीट मेडिसिन का कहना है कि अफ्रीकी बाजार चीन और भारत में बनी नकली दवाओं से अटे पड़े हैं. कई बार तो फर्क करना बहुत मुश्किल हो जाता है कि कौन सी दवा असली है और कौन सी नकली. पिछले साल 16 अफ्रीकी बंदरगाहों पर पकड़े गए सामान में 11.3 करोड़ चीजें नकली दवाएं, 5000 मेडिकल उपकरण और पशु चिकित्सा संबंधी उत्पाद शामिल थे. दुनिया भर में नकली दवाओं का कारोबार 85 अरब डॉलर के आसपास माना जाता है.

स्प्रॉलिक्स नाम का एक स्टार्टअप नकली दवाओं को पकड़ने की दिशा में काम करता है. यह दवाओं के पैकेट के साथ एक स्क्रैच पैनल अटैच करता है. ग्राहक दवाएं खरीदते समय जान सकता है कि वह असली है या नहीं. इसके लिए उसे एसएमएस के जरिए वेरिफिकेशन कोड भेजना होता है, फिर स्प्रॉलिक्स उसके असली या नकली होने की पुष्टि करती है. पिछले छह साल में कंपनी को अफ्रीका और भारत से पांच करोड़ ऐसे एमएमएस मिले हैं. घाना की एक और स्टार्टअप कंपनी एमपेडीग्री भी इसी तरह गारंटी स्क्रैच कार्ड देती है, जिससे दवा के असली या नकली होने का पता लगाया जा सकता है.

एके/एनआर (एएफपी)