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जारी है बच्चों की सेना में भर्ती

१२ फ़रवरी २०१०

संयुक्त राष्ट्र बाल-अधिकार कंवेंशन के लागू होने के आठ साल बाद भी नाबालिग बच्चों की सेना में भर्ती जारी है. बच्चों के सैनिक उपयोग की निंदा और इस प्रथा के अंत के लिए आज रेड हैंड डे मनाया जा रहा है.

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तस्वीर: picture-alliance/ dpa

आठ साल पहले 12 फ़रवरी 2002 को संयुक्त राष्ट्र बाल-अधिकार कन्वेंशन का एक अतिरिक्त प्रोटोकोल लागू हुआ, जो लड़ाई-झगड़ों में नाबालिग बच्चों के सैनिकों के तौर पर उपयोग पर प्रतिबंध लगाता है. तभी से हर साल 12 फ़रवरी को दुनिया भर में रेड हैंड डे नाम से एक विशेष दिन मनाया जाता है. उद्देश्य है बच्चों के सैनिक उपयोग की निंदा करना और इस प्रथा का अंत करना.

संसार के 40 से अधिक देशों में कोई न कोई युद्ध चल रहा है. पिछले दस वर्षों में करीब 20 लाख बच्चे इन लड़ाइयों में मारे गये हैं-- कई बार ऐसे सैनिकों के हाथों, जो स्वयं भी 18 साल से कम आयु के किशोर या बच्चे थे. संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि आज भी कोई ढाई लाख अल्पवयस्क बच्चे सैनिकों का काम कर रहे हैं. भारत के पड़ोस में श्री लंका के तमिल टाइगर इस के लिए कुख्यात थे. वैसे विद्रोही ही नहीं, सरकारें भी बाल सैनिकों की भर्ती से नहीं झिझकतीं.

Sklaverei Kindersoldaten in Demokratische Republik Kongo
अफ़्रीका में भी होता है बड़े पैमाने पर सेनिकों के रूप में बच्चों का दुरुपयोगतस्वीर: picture-alliance/dpa

अनुमान है कि भारत के पड़ोसी म्यंमार की सरकारी सेना में और सरकार विरोधी संगठनों के हथियारबंद दस्तों में 77 हज़ार बाल सैनिक काम कर रहे हैं. ह्यूमन राइट्स वॉच का तो यहां तक कहना है कि म्यांमार की सरकारी सेना का हर पांचवां सैनिक 18 साल से कम आयु का है.

ह्यूमन राइट्स वॉच की जो बेकर ने इन बाल सैनिकों के बारे में एक रिपोर्ट तैयार की है, "हमने एक लड़के से बात की, जो अपनी भर्ती के समय 11 साल का था. वह केवल चार फुट चार इंच बड़ा और केवल 31 किलो भारी था और सरकारी सैनिक था. 12 साल का होते ही बच्चों को भी मोर्चे पर भी लड़ना पड़ता है. उन्हें विद्रोहियों के विरुद्ध लड़ने, गांवों में आग लगाने और साधारण जनता से ज़बरदस्ती काम कर वाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है."

जो बेकर बताती हैं कि दलाल इन बच्चों को रेल और बस स्टेशनों या अन्य सार्वजनिक स्थानों पर अपने जाल फंसाते हैं और बाद में सेना को बेच देते हैं. "दलाल उन बच्चों की तलाश में रहते हैं, जो अकले हैं. उन से अपना पहचानपत्र दिखाने को कहते हैं, नहीं होने पर कहते हैं, या तो जेल जाओ या फिर सेना में भर्ती हो जाओ."

इस रिपोर्ट के बाद से म्यानमार में बाल सैनिकों की भर्ती और बढ़ गयी है, हालांकि सरकार ने एक जांच आयोग भी नियुक्त किया था. सेना को भर्ती के लिए रंगरूट शायद मिलते ही नहीं.

रिपोर्ट: बेर्न्ड मुश-बोरोव्स्का, एजेंसियां / राम यादव

संपादन: आभा मोंढे