जहां बीते गुरुदेव के दिन
सात मई, 1861 को कलकत्ता में जन्मे रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश) में बिताया. कुश्तिया और कुमारखाली में उनके निवास और कामकाज की जगह पर अब स्मारक है.
पद्मा नदी के किनारे यह कोठी अपनी जमींदारी की देखभाल करने के लिए टैगोर ने बनवायी थी. कुश्तिया जिले में स्थित यह कोठी आज बहुत महत्वपूर्ण स्मारक है.
टैगोर सन 1889 में यहां पहली बार पहुंचे. अपने किशोरावस्था और जवानी में वे कई बार यहां आते जाते रहे. फिर 1891 से 1901 तक वे यहां थोड़े थोड़े समय के लिए रहे.
अपने इसी कमरे में महाकवि ने कई कालजयी रचनाएं रचीं. चित्रा, चैताली, कई संक्षिप्त कहानियां और कविताएं उन्होंने यहीं लिखीं. तस्वीर में उनके बिस्तर समेत कमरे का नजारा.
कुठीबाड़ी कहे जाने वाले इस घर के एक मुख्य हॉलनुमा कमरे में सजायी गयी हैं उनकी कई दुर्लभ तस्वीरें.
अब स्मारक बन चुके उनके इस निवास में रवीन्द्रनाथ ठाकुर की इस्तेमाल की गयी पालकी भी रखी गयी है. इससे वे अपनी जमींदारी के इलाकों में जाया करते.
यह है टैगोर की इस्तेमाल की गयी स्पीड बोट, जिसका नाम था चपला. इससे वे अक्सर पास बहने वाली पद्मा नदी में जाते.
यह है प्रसिद्ध बोकुलतला घाट. यहां बैठ कर उन्होंने कई स्मरणीय गीत लिखे.
करीब 11 एकड़ में फैले इस कोठी के इलाके की चाहरदीवारी लहरों के आकार की बनी है. जैसे पद्मा नदी की लहरें हों.
कुमारखाली में टैगोर का एक प्रसिद्ध ठिकाना और भी है. रेलने स्टेशन के करीब बना उनके कामकाज का केंद्र टैगोर लॉ भी अब स्मारक है. (मुस्ताफिज मामुन/आरपी)