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जल्लीकट्टू समर्थकों पर सुप्रीम कोर्ट का डंडा

विश्वरत्न१२ जनवरी २०१६

भारत के सुप्रीम कोर्ट ने जल्लीकट्टू के खेल पर केंद्र सरकार की अधिसूचना पर रोक लगा दी है. तमाम विरोधों की अनदेखी करते हुए केंद्र सरकार ने तमिलनाडु में सांड को काबू में करने के इस विवादास्पद खेल से प्रतिबंध हटाया था.

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तस्वीर: UNI

जस्टिस दीपक मिश्रा और एनवी रामन्ना वाली सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने कहा है, "एक अंतरिम कदम के तौर पर, हम 7 जनवरी 2016 को वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा जारी नोटिफिकेशन पर रोक लगाते हैं." इस बेंच ने मंत्रालय और तमिलनाडु सरकार को नोटिस जारी कर जल्लीकट्टू के विरोध में दायर तमाम याचिकाओं पर पर ध्यान देने और चार हफ्ते के भीतर उनका उत्तर देने को कहा है.

पशु अधिकार कार्यकर्ताओं के विरोध के बावजूद महाराष्ट्र में लोकप्रिय बैलगाड़ी दौड़ और तमिलनाडु में सांडों को काबू में करने के खेल ‘जल्लीकट्टू' पर लगे प्रतिबंध को हटाने का केंद्र सरकार का आदेश आया था. पोंगल के अवसर पर आयोजित होने वाले इस लोकप्रिय परंपरागत खेल पर से प्रतिबंध हटाने के लिए तमिलनाडु के राजनीतिक दल सरकार पर दबाव बनाए हुए थे. केंद्र सरकार के आदेश को पेटा समेत कुछ एनजीओ ने मिलकर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. इस पर सुनवाई करते हुए पिछले चार सालों से जल्लीकट्टू पर लगे प्रतिबंध को बरकरार रखने का आदेश आया है.

सशर्त थी केंद्र की मंजूरी

पर्यावरण मंत्रालय ने एक अधिसूचना जारी कर सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए प्रतिबंधित जानवरों की सूची से सांडों को हटा दिया है. सरकार ने जल्लीकट्टू और बैलगाड़ी दौड़ पर प्रतिबंध हटाने के साथ ही आयोजन के लिए कुछ शर्तें भी जोड़ी थीं. अधिसूचना के मुताबिक जल्लीकट्टू के तहत सांड या बैलों को 15 मीटर के दायरे के अंदर ही काबू करना होगा. महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब, हरियाणा, कर्नाटक और केरल में होने वाले परंपरागत बैलगाड़ी दौड़ पर लगी रोक को हटाते हुए दौड़ को एक विशेष ट्रैक पर कराये जाने की शर्त रखी गयी. साथ ही ट्रैक दो किलोमीटर से ज्यादा लंबी नहीं होनी चाहिए. कार्यक्रम में हिस्सा लेने वाले सांडों और बैलों की स्वास्थ्य जांच का प्रावधान भी जोड़ा गया. यह जांच पशुपालन एवं पशु चिकित्सा विभाग के डॉक्टरों से ही करवाए जाने की शर्त रखी गई थी.

पशु अधिकार कार्यकर्ताओं ने सरकार के निर्णय को सर्वोच्च अदालत में चुनौती दी थी. भारत पशु कल्याण समिति, पीपुल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनीमल्स यानी पेटा और बेंगलुरु की एक गैर-सरकारी संस्था की ओर से सुप्रीम कोर्ट में प्रतिबंध पर से रोक हटाये जाने के खिलाफ याचिका दायर की गई. सरकार के तर्क को खारिज करते हुए पेटा इंडिया ने कहा कि, सांडों को डराना और घायल करना उत्पीड़न है, खेल नहीं. अधिवक्ता आरती चंदा का तर्क है, “जल्लीकट्टू या बैलों-सांडों की दौड़ को अनुमति देकर अदालत के दिशानिर्देशों या कानूनों का उल्लंघन किया गया.” उनका कहना है कि पशु हमारे संरक्षण और सम्मान के हकदार हैं इसे आम लोगों के साथ-साथ सरकार को भी समझना होगा.

सांस्कृतिक परंपरा या पशु क्रूरता
जल्लीकट्टू सदियों पुराना खेल है जिसका मतलब होता है, ‘बैलों को काबू करना.' इसमें बैलों और सांडों को खुला छोड़ दिया जाता है और युवाओं को उन्हें काबू में करना होता है. सांड को काबू करने वाले को आकर्षक इनाम दिए जाते हैं. केंद्र की पिछली यूपीए सरकार ने 2011 में क्रूरता का हवाला देते हुए जल्लीकट्टू पर प्रतिबंध लगा दिया था. 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने भी प्रतिबंध को सही ठहराया था. जिसके चलते पिछले साल जल्लीकट्टू को रद्द करना पड़ा. इस प्रतियोगिता के दौरान पिछले कुछ वर्षों में कई लोगों की मौत हुई है जबकि सैकड़ों लोग घायल हुए हैं. इसके कारण भी सामाजिक कार्यकर्ता इस खेल पर रोक की मांग करते रहे हैं.

पशु अधिकारों की पैरवी करने वालों का कहना है कि प्रतियोगिता के दौरान सांडों पर अत्याचार किया जाता है. सांडों को डंडे से मारा जाता है और उन्हें जबरन शराब पिलाई जाती है. हाल ही में सांस्कृतिक परंपराओं की दुहाई देते हुए केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने इन खेलों को लोकसंस्कृति का उत्सव बताते हुए सरकार के निर्णय को सही ठहराया. उन्होंने कहा, "उचित सुरक्षा व जानवरों पर अत्याचार ना करने की शर्त पर जल्लीकट्टू की इजाजत दी गई."

वोट के लिए पशु अधिकारों की बलि
माना जा रहा है कि तमिलनाडु में होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर केंद्र सरकार ने प्रतिबंध को हटाने का फैसला लिया. राज्य की सभी प्रमुख पार्टियों ने केंद्र सरकार से जल्लीकट्टू के आयोजन को फिर से शुरू करने की गुजारिश की थी. मुख्यमंत्री जयललिता ने केंद्र सरकार को एक पत्र लिखकर संबंधित कानून में बदलाव का अनुरोध किया था. विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा सहित सभी पार्टियां जल्लीकट्टू के जरिए जनता का वोट पाना चाहती हैं. सभी दलों पर वोट के लिए पशु अधिकारों की बलि देने का आरोप है. ऐसे में सरकार के निर्णय को सुप्रीम कोर्ट द्वारा पलटे जाने और जल्लीकट्टू के आयोजन पर रोक बरकरार रखने से पशु अधिकार कार्यकर्ताओं में संतोष की लहर है.