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जलवायु संधि से रुक सकती है ग्लोबल वॉर्मिंग

२८ नवम्बर २०१५

सोमवार को पेरिस में जलवायु सम्मेलन शुरू हो रहा है. एक सर्वेक्षण के अनुसार पेरिस सम्मेलन से पहले दिए गए आश्वासन से ग्लोबल वॉर्मिंग को धीमा किया जा सकता है. शर्त यह है कि आश्वासन देने वाले देश उसे पूरा करें.

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तस्वीर: picture-alliance/AP/T. Gutierrez

संयुक्त राष्ट्र का जलवायु सम्मेलन 150 देशों के राज्य व सरकार प्रमुखों की उपस्थिति में शुरू हो रहा है. इतने नेताओं की उपस्थिति ने इसे पर्यावरण पर इतिहास का सबसे बड़ा शिखर सम्मेलन बना दिया है. संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों के वार्ताकारों को ऐसा समझौता तैयार करने को कहा गया है जो ग्लोबल वॉर्मिंग की गति को औद्योगिक क्रांति के पहले के स्तर से 2 डिग्री ज्यादा पर रोक दे.

नई जलवायु संधि तय करने की वार्ताएं पेरिस में रविवार को ही शुरू हो जाएंगी, हालांकि सम्मेलन का औपचारिक उद्घाटन सोमवार को पहले से तय कार्यक्रम के अनुसार हो रहा है. संयुक्त राष्ट्र क्लाइमेट चेंज सचिवालय ने एक बयान में कहा है कि वार्ताओं की पहले शुरुआत उपलब्ध समय के बेहतर इस्तेमाल का मौका देगी.

पेरिस सम्मेलन की तैयारी के सिलसिले में सदस्य देशों ने इस बात की घोषणा की है कि कार्बन उत्सर्जन में कमी में उनका क्या योगदान होगा. यह आकलन राष्ट्रीय स्थिति के मद्देनजर था. यह इच्छित राष्ट्रीय योगदान 2025 या 2030 तक चलेगा और वैश्विक संधि की रीढ़ की हड्डी की तरह होगा. सर्वेक्षण के मुख्य लेखक गोकुल अय्यर का कहना है, "यदि सदस्य देश अपने घोषित योगदान को 2030 तक लागू करते हैं और उसके बाद भी प्रयास जारी रखते हैं तो भारी गर्मी को रोकने और तापमान परिवर्तन को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने के बेहतर मौके होंगे."

ग्लोबल चेंज रिसर्च इंस्टीट्यूट के अय्यर का कहना है कि यह जानना महत्वपूर्ण है कि घोषित योगदान आईएनडीसी भविष्य में उठाए जाने वाले कदमों का शुरुआती कदम है. चिंतित वैज्ञानिकों के संगठन के प्रमुख केन किमेल का कहना है कि पेरिस बैठक मिश्रित नतीजों वाला है. "पर्यावरण वार्ताओं के शुरु होने के बाद से यह पहला मौका है जब विश्व के लगभग सभी देशों ने समाधान का हिस्सा बनने की प्रतिबद्धता दिखाई है." इस साल की तुलना में 1997 में क्योटो संधि में सिर्फ 37 देशों ने कार्बन उत्सर्जन में कमी का भरोसा दिलाया था.

लेकिन यह भी सही है कि पेरिस संधि भी बाध्यकारी फैसले नहीं लेगी और सदस्य देशों को अपने आश्वासन को पूरा करने को बाध्य नहीं करेगी और न ही उनके खिलाफ दंडात्मक कदम तय करेगी. केन किमेल कहते हैं, "यह निश्चित तौर पर निराशाजनक है, लेकिन और कोई रास्ता भी नहीं है."

एमजे/आईबी (एएफपी)