जर्मनी में पैदा हुए सीरियाई डॉक्टर की उलझन
११ मार्च २०१६सीरिया में जारी संघर्ष ने मुकदाद के लिए परेशानियां खड़ी कर दीं. भविष्य की अनिश्चितता के चलते वह तुर्की तक तो आ गए लेकिन सामने बेहतर जीवन का कोई रास्ता नजर नहीं आया. अब वह कोशिश कर रहे हैं अपनी पत्नी को लेकर शरणार्थियों की नाव में सवार हो ग्रीस पहुंच जाएं. इससे पहले कि शरणार्थियों पर यूरोप का रुख सख्त हो और यूरोप के दरवाजे उनपर बंद हो जाएं.
मुकदाद और उनकी पत्नी को दो साल पहले सीरिया से भागना पड़ा. मुकदाद अरबी शिया हैं और उनकी पत्नी बेरीवान सुन्नी कुर्द. सीरिया में उन दोनों ने अपनी धार्मिक मान्यताओं में अंतर के कारण खुद को खतरे के साये में पाया. फिलहाल उन्हें एक ही रास्ता नजर आता है, किसी तस्कर से संपर्क किया जाए जो उन्हें ग्रीस जाने वाली नाव पर सवार कर दे. मुकदाद बताते हैं, "तस्कर के मुताबिक यहां से निकलना मुमकिन है. मुझे नहीं लगता तुर्की कभी भी शरणार्थियों को नागरिकता देगा."
वह मानते हैं कि जरूरी कागजों के बिना जीवन में विकल्प भी बहुत सीमित हो सकते हैं. जैसे कि, तुर्की में उन्हें बतौर डॉक्टर काम करने की छूट नहीं है. डॉक्टरी की डिग्री उन्होंने दमिश्क से ली थी. वह पूछते हैं, "अगर हमारी संतान हुई तो उसकी नागरिकता क्या होगी? क्या उसे यहां का कानूनी दर्जा मिलेगा? क्या वह यहां काम कर सकेगा?" उन्होंने कहा उनके जैसे लोगों के लिए यह सिर्फ पैसों का सवाल नहीं है, यह सुरक्षा का मुद्दा है.
हालांकि कई अन्य शरणार्थियों की तरह वह तुर्की के इस बात के लिए एहसानमंद हैं कि जब वह सीरिया से भागे तो तुर्की ने उन्हें अपने यहां पनाह दी. लेकिन वह तुर्की को रहने के लिए उपयुक्त जगह नहीं मानते. मुकदाद ने कनाडा में भी शरण पाने की कोशिश की, लेकिन उनकी अर्जी रद्द हो गई क्योंकि वह जर्मन शहर लाइपजिग में पैदा हुए थे. हालांकि कानूनी तौर पर वह जर्मन नागरिकता के हकदार नहीं हैं.
उन्होंने बताया, "मेरे पिता जर्मनी में पीएचडी कर रहे थे जब 1985 में मेरा जन्म हुआ. मेरे माता पिता 1988 में बर्लिन की दीवार गिरने से पहले वापस सीरिया चले गए." उनकी पत्नी बेरीवान ने अमेरिका में शरण की अर्जी दी है. उनकी अर्जी अभी विचाराधीन है. लेकिन वॉशिंगटन में सीरियाई नागरिकों की ऐसी हजारों अर्जियां हैं, यह प्रक्रिया लंबी और जटिल है. मुकदाद कहते हैं अगर उनकी पत्नी की अर्जी मान भी ली गई तो उन्हें अपनी पत्नी के पास पहुंचने के लिए कम से कम तीन साल लग जाएंगे, जो कि एक दूसरे के बगैर रहने के लिए लंबा समय है.
तुर्की और यूरोपीय संघ के बीच शरणार्थी मुद्दे पर चल रही बातचीत के बीच उनका मामला और पेचीदा होता दिखाई दे रहा है. अगर दोनों के बीच सहमति बनती है तो ग्रीस शरणार्थियों को वापस तुर्की भेज सकता है. एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्टों में तुर्की को शरणार्थियों के लिए असुरक्षित जगह बताया गया है. ऐसे में मानवाधिकार संगठन और संयुक्त राष्ट्र तुर्की और यूरोपीय संघ के बीच ऐसे समझौते की निंदा कर रहे हैं.
एसएफ/एमजे(डीपीए)