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जर्मनी में 'टैक्स चोरी' मामले पर विवाद

१ फ़रवरी २०१०

जर्मनी में टैक्स चोरी का मामला मीडिया में छाया है. जर्मन सरकार को एक व्यक्ति ने 1,500 ऐसे लोगों के डाटा उपलब्ध कराने की पेशकश की है जिन्होंने शायद टैक्स चोरी की है. सवाल यह है कि सरकार को यह डाटा ख़रीदना चाहिए या नहीं.

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तस्वीर: AP

सूचना देने वाला 25 लाख यूरो मांग रहा है. दूसरी समस्या यह है कि डाटा ऐसे लोगों के हैं जिन के बैंक खाते स्विट्ज़रलैंड में हैं. यानी जर्मन और स्विस सरकार के बीच भी तनाव बढ़ने की आशंका है. मामला बहुत संवेदनशील है. एक तरफ एक व्यक्ति जर्मन सरकार को 1,500 ऐसे लोगों के बैंक डाटा बेचने की पेशकश कर रहा है जिन्होने शायद टैक्स चोरी की है.

Gewerkschaft Berlin Merkel Sommer
तस्वीर: AP

दूसरी तरफ़ जर्मन सरकार के लिए समस्या यह है कि क्या वह 25 लाख यूरो देकर यह डाटा हासिल करे और करीब 10 करोड़ यूरो के बराबर बकाया टैक्स की उगाही करे. बशर्ते के इन लोगों ने वाक़ई में टैक्स चोरी की है. स्विट्ज़रलैंड हमेशा से जर्मन टैक्स चोरों का एक स्वर्ग माना जाता रहा है. यहीं नहीं, बड़े बड़े जर्मन खिलाडी जैसे कि फॉर्मूला वन ड्राईवर मिशाएल शुमाखर भी वहीं रहते हैं क्योंकि वहां इतना टैक्स नहीं देना पडता जितना जर्मनी में देना पडता है.

यह भी स्पष्ट नहीं है कि सूचना देने वाले व्यक्ति को डाटा कैसे मिला. अगर उसने डाटा कानूनी तरीके से हासिल किए हों तो उनकी ख़रीद भी कानूनी रूप से जायज़ है लेकिन ऐसा लगता है कि ब्रिटिश एचएसबीसी बैंक के एक पूर्व कर्मचारी हैर्वे फालचियानी ने ये डाटा चुराए हैं क्योंकि बैंक की जिनीवा में भी एक शाखा है. माना जा रहा है कि चांसलर मैर्कल डाटा ख़रीदने के पक्ष में है. लेकिन राजनीतिज्ञ और आम लोग भी इस प्रश्न को लेकर विभाजित हैं. विपक्षी एसपीडी पार्टी के अध्यक्ष सिगमार गाब्रिएल का कहना है.

बेशक इन डेटा को खरीदा जा सकता है. यह इसलिए भी ज़रूरी है क्योंकि इसके साथ आम आदमी को भी एक चेतावनी मिल सकती है. कितने सारे लोगों को छोटे छोटे चीज़ों की वजह से सज़ा मिलती है. हम इतने बडे पैमाने पर हुई टैक्स चोरी को फिर नज़रंदाज़ कैसे करें, यह मुमकिन नहीं है.

इसके विपरीत सत्तारूढ़ लिबरल एफ़डीपी पार्टी के ओटो फ्रिके का कहना है.

यदि सरकार ही काला बाज़ारी करने लगे और कहे कि दूसरे अपराधों को उजगर करने के लिए हम यह अपराध कर रहे हैं, तब हमारे सामने एक ऐसा समाज होगा जिसमें कहा जाएगा कि हम यह सब तो एक भले काम के लिए ही ऐसा कर रहे हैं.

वैसे जर्मनी की सरकार ने एक दूसरे मामले में 2008 में भी कुछ ऐसे संवेदनशील डाटा खरीदे थें. इस सब के बाद जर्मनी की डाक सेवा डॉयचे पोस्ट के अध्यक्ष को इस्तीफा ही नहीं देना पडा, बल्कि उन्हे जेल से बाहर रहने के लिए ज़मानत भी लेनी पड़ी थी. तब यह पता चला था कि यूरोप के छोटे से देश लिश्टनश्टाईन में उनके बैंक खाते थे और उन्होनें अपनी आमदनी के बहुत बडे हिस्से को वहां छिपा रखा था.

रिपोर्ट: एजेंसियां/प्रिया एसेलबोर्न

संपादन एस गौड़