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जर्मनी में गरीब बच्चों को टोकन मिलेगा

१२ अगस्त २०१०

लंबे समय से बेरोजगार लोगों के बच्चों को जर्मनी में शिक्षा टोकन देने के प्रस्ताव को बहुमत समर्थन मिल रहा है. यह प्रस्ताव सामाजिक भत्तों के लिए जिम्मेदार श्रम और कल्याण मंत्री उर्सुला फॉन डेअ लाएन ने दिया है.

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तस्वीर: AP

साप्ताहिक पत्रिका स्टैर्न द्वारा कराए गए जनमत सर्वेक्षण में 79 फीसदी लोगों का कहना है कि सामाजिक कल्याण भत्ता पाने वाले इन परिवारों के बच्चों को ट्यूशन, संगीत शिक्षा और खेल संगठनों की सदस्यता के लिए टोकन दिया जाना चाहिए.

जर्मनी की सरकार में शामिल सीएसयू पार्टी अब तक गरीब परिवारों के बच्चों की मदद के लिए टोकन प्रणाली का विरोध कर रही है. उसका कहना है कि इससे बच्चों की मर्यादा प्रभावित होगी, उनकी किरकिरी होगी.

Kinder unterschiedlicher Hautfarbe beim Spielen
तस्वीर: picture-alliance/dpa

जर्मन संवैधानिक अदालत ने गरीब परिवारों में बच्चों की मदद बढ़ाने की मांग की है और सरकार से बाल सहायता नियमों में संशोधन करने को कहा है.

स्टैर्न पत्रिका का कहना है कि सीडीयू-सीएसयू पार्टियों के 86 फीसदी समर्थक गरीब परिवारों के बच्चों को सहायता टोकन देने के प्रस्ताव का समर्थन कर रहे हैं जबकि वामपंथी पार्टियों के 71 फीसदी समर्थक इसके पक्ष में हैं. 19 फीसदी चाहते हैं कि सामाजिक कल्याण भत्ता पाने वाले परिवारों के मुखिया को इसके लिए टोकन के बदले धन दिया जाए.

मर्यादापूर्ण जीवन चला पाने के लिए कितना भत्ता जरूरी है, इस पर जर्मनी के नागरिक पहले की ही तरह विभाजित हैं. इस समय बालिग लोगों को प्रति महीने 359 यूरो यानि लगभग 21 हजार रुपये का भत्ता मिलता है. इसके अलावा उन्हें घर का किराया भी दिया जाता है. 52 फीसदी की राय थी कि यह राशि बढ़ाई नहीं जानी चाहिए जबकि 44 फीसदी इसे बढ़ाए जाने के पक्ष में है.

सांख्यिकी कार्यालय के अनुसार 2005 में हुए सामाजिक भत्ता सुधारों के बाद से जर्मनी में जीवनयापन का खर्च 8 फीसदी बढ़ गया है जबकि खाने पीने की चीजों की कीमतें 12.5 फीसदी और बिजली तथा गैस की कीमतें 30 फीसदी बढ़ी हैं. इसके अलावा चिकित्सा खर्चों में भी वृद्धि हुई है.

वामपंथी डी लिंके पार्टी की जबीने सिम्मरमन ने हार्त्स 4 सामाजिक भत्तों को बढ़ाने और वेतन डंपिंग के खिलाफ लड़ने की मांग की है. रिपोर्टों में कहा गया है कि कम वेतन पाने वालों को मर्यादित जीवन बिताने में सरकार 50 अरब यूरो की मदद दे रही है. जर्मनी में ऐसे लोगों की संख्या इस समय 13 लाख है जो अपने वेतन से परिवार का खर्च नहीं चला सकते. उन्हें सरकारी भत्ता लेना पड़ता है और उसमें वृद्धि हो रही है. आलोचकों का कहना है कि उद्यमों के लिए यह सब्सिडी की तरह है क्योंकि सरकारी सहायता नहीं मिलने से लोग इस तरह का सस्ता काम ही नहीं करते.

रिपोर्ट: एजेंसियां/महेश झा

संपादन: ए जमाल