1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

जर्मनी में खिलाड़ी नहीं, कोच है स्टार

प्रिया एसेलबॉर्न (संपादनः ए जमाल)६ जून २०१०

माइकल बलाक या ओलिवर कान की गैर मौजूदगी में जर्मनी के फुटबॉल टीम में कोई स्टार नहीं. अगर कोई स्टार है तो वह ग्राउंड के अंदर नहीं, साइड लाइन के बाहर बैठने वाले कोच, जोआखिम लोएव.

https://p.dw.com/p/NfAI
तस्वीर: picture alliance/dpa

लोएव जर्मन फुटबॉल के कोई बहुत बड़े नाम नहीं हैं और न ही वह कभी जर्मनी के राष्ट्रीय फुटबॉल टीम में शामिल रहे हैं. फिर भी 2006 में उन्हें राष्ट्रीय टीम की कोचिंग का जिम्मा दिया गया. वह 1994 में पहली बार कोच के रूप में सामने आए और अगले 10 साल यानी 2004 तक वह आठ अलग अलग टीमों के कोच रह बन चुके थे. कहीं नाकामी मिली तो कहीं दूसरी समस्याओं की वजह से पद छोड़ना पड़ा.

जर्मन फुटबॉल लीग बुंडेसलीगा के किसी क्लब की बात हो या फिर ऑस्ट्रिया या तुर्की की टीम की. कई महीने तो उन्हें बेरोज़गार भी रहना पड़ा. लेकिन जर्मनी के राष्ट्रीय टीम के कोच के रूप में ऐसा लगता है कि उन्हें आखिरकार स्वीकार कर लिया गया. 2004 में वे उस वक्त के जर्मन टीम के कोच युर्गन क्लिन्समन के डिप्टी बने. वर्ल्ड कप 2006 के बाद क्लिन्समन ने इस्तीफा दे दिया. जल्द ही फैसला लेना था और लोएव बने टीम के कोच. लोएव ने तब हंसते हुए कहा था, "मैं वहीं हूं, जो मैं हूं. हो सकता है मैं वह न हूं, जो आप चाहते हैं."

Länderspiel Deutschland Argentinien Vorbereitung
तस्वीर: AP

लोएव के गुण

50 साल के लोएव की सबसे बड़ी उपलब्धि खिलाड़ियों में टीम भावना जगाने की रही. इसके साथ ही वह यूरो कप 2008 में जर्मन टीम को फाइनल तक ले गए. जर्मनी की फुटबॉल टीम में युवा पीढ़ी उभर रही है. इस बार के वर्ल्ड कप में जर्मनी की अब तक की सबसे युवा टीम जा रही है. युवा खिलाडियों को तैयार करने, उनके अंदर आत्मविश्वास भरने और जिम्मेदारी का एहसास दिलाने में लोएव की बड़ी भूमिका रही है.

ऐसे में माइकल बलाक के चोटिल होने के बाद उन्होंने वर्ल्ड कप में सिर्फ 26 साल के डिफेंडर फिलिप लाम को कप्तानी का जिम्मा दे दिया. हालांकि उम्मीद की जा रही थी कि पोलैंड मूल के मिरोस्लाव क्लोज कप्तान होंगे. लाम जर्मनी के सबसे युवा काप्तान हैं. साथ ही बास्टियान श्वान्सटाइगर और लुकास पुडोल्स्की को भी लोएव ने अपनी काबिलिएत का एहसास दिलाया.

धीरज और अनुशासन

लोएव जर्मनी के स्वाबिया के रहने वाले हैं. वहां के लोगों के बारे में कहा जाता है कि वे दिखावा नहीं करते. हालांकि बहुत मेहनती और समझदार होते हैं. लोएव के बारे में यदि फुटबॉल टीम के खिलाड़ियों से पूछा जाए, तो पता चलेगा कि उन्हें धीरज और अनुशान लोएव ने ही सिखाया. जो बडे मैच जीतने के लिए बहुत ज़रूरी है.

Joachim Löw wird 50 Flash-Galerie
तस्वीर: AP

अड़ियल और जिद्दी

चार भाइयों में सबसे बड़े लोएव का दूसरा रूप है कि कई लोग उन्हे काफी जिद्दी मानते हैं. कभी कभी बिना मतलब गुस्सा हो जाते हैं. 2008 में लोएव ने जर्मनी के राष्ट्रीय फुटबॉल टीम में शामिल केविन कुरानी को रूस के खिलाफ टीम में नहीं बुलाया. कुरानी को इतना गुस्सा आया कि वह सेकंड हाफ शुरू होने से पहले मैच छोड़ कर चले गए. लोएव ने साफ कर दिया कि उनके कोच रहते कुरानी कभी टीम का हिस्सा नहीं बन सकते. इस वक्त माइकल बलाक टीम में नहीं हैं और अनुभवी कुरानी जबरदस्त फॉर्म में हैं. लेकिन लोएव ने उन्हें राष्ट्रीय टीम में जगह नहीं दी. वह अपने फैसले पर अड़े हुए हैं. हालांकि लोएव कहते हैं कि वह उस मामले को भूल चुके हैं और टीम की मजबूती को देखते हुए कुरानी को शामिल नहीं किया गया.

कोच को रेड कार्ड

2008 के यूरो कप के दौरान ऑस्ट्रिया के खिलाफ मैच में लोएव आपा खो बैठे और दोनों टीमों के मैनेजरों में बक झक हो गई. लोएव को लाल कार्ड दिखा दिया गया. फुटबॉल इतिहास में गिने चुने मौके हैं, जब खिलाड़ियों के अलावा किसी और को रेड कार्ड दिखाया गया हो. लोएव को साइड लाइन छोड़ कर ग्राउंड से बाहर जाना पड़ा और बंद कमरे से मैच देखना पड़ा.

जर्मन फुटबॉल फेडरेशन ने हाल ही में एलान किया था कि लोएव 2012 यूरो कप तक राष्ट्रीय फुटबॉल टीम के कोच बने रहेंगे. लोएव का कहना है कि ऐसा कोई समझौता नहीं हुआ था. ऐसी भी खबरें आती हैं कि लोएव अब अपनी फीस बहुत ज्यादा करना चाहते हैं.

यानी कुल मिला कर आक्रामक कोच के लिए वर्ल्ड कप की राह आसान नहीं. टीम के नाम पर बड़े सितारे गायब हैं और अपनी छवि को दुरुस्त करने के साथ साथ 20 साल बाद विश्व कप जर्मनी में लाने की चुनौती है.