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जर्मनी में कानून की खास पढ़ाई

३० मार्च २०११

हर कंपनी को एक वकील की जरूरत होती है और कानून को लेकर सवाल हर जगह उपजते हैं. इसलिए आजकल कई भाषा बोलने वाले और उच्च शिक्षा हासिल किए हुए वकीलों की जरूरत है. यहां यूरोपीय कानून भी पढ़ाया जाता है.

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तस्वीर: DW

जर्मनी में कानून की पढ़ाई का चलन काफी है. इसकी एक वजह यह भी है कि यहां के कुछ खास विश्वविद्यालयों में जर्मन कानून के साथ साथ यूरोपीय कानून भी पढ़ाया जाता है. इसकी मदद से छात्रों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रोजगार का अवसर मिलता है. यूरोपीयन संघ के साथ हर देश का व्यापार चलता है और संभावनाएं यहीं से खुलती और अपार ढंग से बढ़ती चली जाती हैं.

यूक्रेन से 23 साल की ओलेना कहता हैं कि पिछले लेक्चर में उन्होंने सीखा कि कम उम्र वाले लोग समझौतों पर हस्ताक्षर नहीं कर सकते हैं लेकिन कभी कभी ऐसा करना कानूनी तौर पर मान्य है. उनके साथ पढ़ रही गेरगाना कहती हैं कि किसी भी तरह के फायदे से संबंधित कानून में ऐसा मुमकिन है. गेरगाना और ओलेना साथ पढ़ रही हैं क्योंकि साथ सीखने में आसानी से काम बन जाता है. ओलेना कहती हैं कि लेक्चर के बाद एक बार फिर कानूनी किताबों को पलटना जरूरी हो जाता है. और कभी कभी उसका अनुवाद भी करना होता है फिर वह एक्सपर्ट बन जाते हैं. और अगर इसके बाद भी परेशानी हो तो खास विदेशी छात्रों के लिए मदद का भी इंतजाम है, ट्यूटोरियल के जरिए.

शुरुआत में ओलेना भी ट्यूटोरियल का रुख करती थीं. अक्तूबर से वह माइंत्स यूनीवर्सिटी में दाखिल हुई हैं. एलएलएम की पढ़ाई जर्मनी के कई विश्वविद्यायों में मौजूद है लेकिन ओलेना ने खास माइंत्स को चुना, ''माइंत्स एक सुंदर शहर है और यहां के प्रोफेसर भी अच्छे हैं. यहा बहुत अच्छी व्वस्था है.''

एलएलएम की पढ़ाई की व्यवस्था के लिए एक खास दफ्तर है जहां जानकारी भी दी जाती है. ओलेना कई बार दफ्तर जा कर कुछ जरूरी बातों के बारे में पता लगाती हैं. कहती हैं कि अगर मदद चाहिए हो तो सबसे पहले वहां जाना चाहिए. शुरुआत में उन्हें काफी परेशानी हुई थी और ओलेना वहां अपने सवालों का जवाब लेने जाती थीं. कहती हैं कि यूक्रेन या रूस में उन्हें नौकरी तलाशनी है और इस वजह से जर्मन कानून को जानना उनके लिए फायदेमंद होगा. लेकिन नौकरी जहां मिलेगी, वहीं ओलेना जाएंगी. लेकिन उनका मानना है कि अगर आपको अपने लक्ष्य का पता हो, तो आप एक अच्छी नौकरी ढूंढ कर खुश भी रह सकते हैं.

रिपोर्ट: मानसी गोपालकृष्णन

संपादन: ओंकार सिंह जनौटी