जर्मन फुटबॉल संघ: एक परीकथा का अंत
१९ अक्टूबर २०१५परियों की कहानियां करिश्माई किस्सों से भरी होती हैं. और इस किस्से पर तो हम शुरू से ही हैरान थे. 2006 के फुटबॉल वर्ल्ड कप की मेजबानी के लिए दक्षिण अफ्रीका ही सबसे लोकप्रिय विकल्प था, कम से कम फीफा अध्यक्ष सेप ब्लैटर तो उसी के हक में थे. लेकिन जीत हुई जर्मन फुटबॉल संघ डीएफबी की. महज आधे घंटे के अंदर अटकलें लगने लगीं कि जर्मनी ने भ्रष्टाचार कर मेजबानी हासिल की. उस वक्त इस बात पर सवाल क्यों नहीं उठाए गए कि न्यूजीलैंड के चार्ली डेम्पसे ने खुद को मतदान से दूर क्यों रखा. उन्हीं के कारण जर्मनी को बहुमत मिल पाया.
और मामला यहीं खत्म नहीं हुआ. इसके बाद वाले सालों में ऐसी खबरें आईं कि मर्सिडीज जैसी जर्मन कंपनियों ने दक्षिण अफ्रीका में संदिग्ध रूप से निवेश किया है, सऊदी अरब में हथियारों की आपूर्ति की रिपोर्टें भी आईं. इन दोनों ही देशों से फीफा की कार्यकारिणी समिति के सदस्य नाता रखते थे. हाल ही में फीफा के अंदरूनी मामलों के जानकार गीडो टोगनोनि ने जर्मन टीवी को दिए इंटरव्यू में अपनी शंकाओं के बारे में बताया. अगर उनके शक सही निकलते हैं, तो जर्मनी के फुटबॉल संघ के लिए यह फैसले की घड़ी साबित होगी.
हर चीज की जांच करनी होगी. माना जा रहा है कि जर्मन फुटबॉल संघ डीएफबी के मौजूदा अध्यक्ष वोल्फगांग नीर्सबाख और जर्मन फुटबॉल के 'काइजर' यानि बादशाह कहे जाने वाले फ्रांत्स बेकेनबाउअर को घोटाले के बारे में पहले से ही जानकारी थी. अगर यह सच है, तो यह नीर्सबाख के करियर का अंत है और बेकेनबाउअर के जादू का भी. जर्मनी के सबसे लोकप्रिय खेल का संघ अपने इतिहास के सबसे बड़े संकट में फंसा है. फोल्क्सवागेन के बाद एक और जर्मन आइकन खतरे में नजर आ रहा है.
इससे यह भी पता चलता है कि क्यों डीएफबी अब तक फीफा और यूएफा के भ्रष्टाचार के मामलों में चुप्पी साधता रहा है. जब भ्रष्टाचार के कारण फुटबॉल की दुनिया के लोगों के नाम सामने आने लगे, तो नीर्सबाख ने एक अजीब सी खामोशी ओढ़ ली. और अब जब पत्रिका डेय श्पीगल ने उनका भांडा फोड़ा है, तो डीएफबी के दफ्तर में कोई टेलीफोन नहीं उठा रहा है. उन्होंने बस प्रेस के लिए एक छोटा सा बयान जारी किया है. एक सच्चा इंकार इतना खामोश सा तो नहीं होता.