जम्मू कश्मीर के लिए नए काल की शुरुआत
७ जनवरी २०१६यह तय माना जा रहा है कि अब उनकी जगह उनकी पुत्री महबूबा मुफ्ती मुख्यमंत्री बनेंगी. वह पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की अध्यक्ष भी हैं लेकिन मुख्यमंत्री की नयी भूमिका में उन्हें निश्चित रूप से अनेक नयी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा क्योंकि मुफ्ती मुहम्मद सईद का जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक परिदृश्य से अनुपस्थित हो जाना लगभग उतनी ही महत्वपूर्ण घटना है जितना शेख अब्दुल्लाह का निधन था. प्रदेश के लिए यह नए काल की शुरुआत जैसा है.
नई सरकार
लगभग साठ सालों के लंबे राजनीतिक अनुभव और राज्य एवं केंद्र सरकारों में मंत्री के रूप में काम करने के तजुर्बे के कारण मुफ्ती में विपरीत ध्रुवों को एक साथ साधने का असामान्य कौशल था. उन्हें प्रशासन का भी लंबा अनुभव था और केंद्र सरकार में पर्यटन मंत्री और गृह मंत्री रहने के अलावा वह पहले भी तीन वर्षों तक जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री रह चुके थे. इसकी तुलना में महबूबा मुफ्ती को राजनीतिक अनुभव तो है, लेकिन प्रशासनिक अनुभव बिलकुल भी नहीं है. अभी तक उनकी भूमिका पार्टी को मजबूत करने की थी, राजनीतिक सहयोगियों को साथ लेकर चलने और विरोधियों को शिकस्त देने की भूमिका उनके पिता मुफ्ती मुहम्मद सईद निभा रहे थे. मुख्यमंत्री के रूप में उन्हें इस कारण कुछ शुरुआती दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है. वे इस समय विधान मंडल की सदस्य भी नहीं हैं.
पार्टी के दो वरिष्ठ नेता, मुजफ्फर हुसैन बेग और तारिक हमीद कर्रा काफी समय से बहुत खुश नहीं हैं, यह बात कोई दबी-छुपी नहीं है. हालांकि इस बात की संभावना बहुत कम है, लेकिन महबूबा मुफ्ती हो सकता है खुद मुख्यमंत्री बनने के बजाय इनमें से किसी एक को या फिर इनकी सहमति से किसी अन्य को इस पद पर बैठा दें और स्वयं अपना सारा ध्यान पार्टी को मजबूत करने पर लगाएं.
अहम शख्सियत
मुफ्ती मुहम्मद सईद लंबे समय तक जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस के प्रमुख नेताओं में से एक थे और शेख अब्दुल्लाह के प्रबल राजनीतिक विरोधियों में गिने जाते थे. वह भारत के पहले मुस्लिम गृह मंत्री थे. लेकिन आतंकवाद के प्रति उनका रवैया बहुत स्पष्ट नहीं था. लोग भूले नहीं हैं कि उनकी पुत्री रुबैया सईद के अपहरण के बाद उसकी रिहाई के बदले में पांच कुख्यात आतंकवादियों की रिहाई के बाद ही जम्मू-कश्मीर में उग्रवादी हिंसा में भीषण तेजी आयी थी. उन्होंने ही गृहमंत्री रहते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्लाह के विरोध के बावजूद जगमोहन को जम्मू-कश्मीर का राज्यपाल बना कर भेजा था जिसके फलस्वरूप फारूक अब्दुल्लाह ने त्यागपत्र दे दिया था और उसके बाद कश्मीर घाटी से कश्मीरी पंडितों का सामूहिक पलायन हुआ था.
1999 में पीडीपी बनाने के बाद उन्होंने नर्म अलगाववाद को गले लगाया और महबूबा मुफ्ती ने मारे जाने वाले आतंकवादियों के जनाजों में शामिल होकर अलगाववादी तत्वों का समर्थन हासिल किया. क्योंकि मुफ्ती शेख अब्दुल्लाह के विरोधी थे, इसलिए जमात-ए-इस्लामी का रुख भी उनके प्रति समर्थन का रहता था.
ऐसे समय जब भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों के बीच संवाद फिर से शुरू हो रहा है और साथ ही पठानकोट-स्थित भारतीय वायुसेना के अड्डे पर आतंकवादी हमले जैसी घटनाएं भी हो रही हैं, जम्मू-कश्मीर के किसी भी नए मुख्यमंत्री के सामने कठिन चुनौतियां आएंगी. सहयोगी भारतीय जनता पार्टी को साथ में बनाए रखना भी उनमें से एक है. मुफ्ती मुहम्मद सईद के पिछले कार्यकाल में अच्छे विकास कार्य हुए थे. मार्च 2015 से अब तक का कार्यकाल इस दृष्टि से कोई बहुत उल्लेखनीय नहीं कहा जा सकता. नए मुख्यमंत्री के लिए राज्य के युवाओं के लिए रोजगार के नए अवसर पैदा करना भी एक बहुत बड़ी चुनौती है क्योंकि आज भी सरकार ही वहां रोजगार देने वाली लगभग एकमात्र एजेंसी है. राजनीतिक स्थिरता बनाए रखना नए राजनीतिक नेतृत्व की सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी होगी.