जब नाच उठे राज कपूर
४ अक्टूबर २०१३फिल्म कर्ज के गीत, एक हसीना थी, में बजा गिटार का टुकड़ा हो, चाहे हीरो फिल्म की वह कर्णप्रिय बांसुरी या फिर फिल्म शोर का वह प्यारा सा वायलिन, इन सब को सुनते ही हिन्दी फिल्मी संगीत की मधुरता का एहसास हो उठता है.
ऐसे ही कलाकारों से मुलाकात हुई जयपुर में. एक संगीत के कार्यक्रम में इन साजिंदों ने स्थानीय कलाकारों के साथ हिन्दी फिल्मों के ऐसे मकबूल गाने सुनाए कि एकबारगी तो लगा कि जैसे हिन्दी फिल्मी गानों का काफिला चला जा रहा हो. (देखें बॉलीवुड पर विशेष)
आप यहां आए किसलिए ?
शंकर जयकिशन के संगीत में फिल्म कल आज और कल का यह टाइटल सांग है. इसी गाने के साथ मशहूर गिटारिस्ट अरविंद हल्दीपुर ने अपने संगीत जीवन की शुरुआत की. इन्होंने ही इक हसीना थी, एक दीवाना गीत में गिटार का मुखड़ा बजाया था. अरविंद मौजूदा संगीत पर टिप्पणी करने से बचते हुए कहते हैं, "पहले वाली बात अब नहीं रही. पहले संगीत पर हमारा नियंत्रण होता था पर अब यह कंप्यूटर प्रोग्रामर के हाथ में चला गया है. "
की बोर्ड खा गया संगीत
अरविंद बताते हैं कि पुराने संगीतकार सब साजिंदों को साथ ले कर संगीत की रचना किया करते थे और अब तो अलग अलग, एक दस बाई दस के कमरे में ही तेज शोर से भरे गीत कंप्यूटर पर बना लिए जाते हैं. और तो और कई बार तो यह भी नहीं पता चलता कि गायक कौन है, साथी कौन और साजिंदे कौन?
लक्ष्मीकांत प्यारेलाल को अपना बॉस बताते हुए वह कहते हैं कि प्यारेलाल तो चार घंटे में सबको साथ बैठा पूरा गाना अरेंज कर देते थे. फिल्म हीरो की वह कर्णप्रिय बांसुरी का वह थीम म्यूजिक उन्होंने पल भर में सेट पर ही रच दिया था. बीते महान संगीतकारों की चर्चा में मदन मोहन को याद करते हुए वह कहते हैं कि माई डियर कम नियर के अपने तकिया कलाम से वह रिश्तों को मजबूत किया करते थे, "मौसम फिल्म में रुके रुके से कदम गीत को कब बातो बातों में उन्होंने मुझसे कम्पोज करा लिया, पता ही नहीं चला."
नाच उठे राज कपूर
सुरेश सोनी यूं तो लगभग सभी साज बजा लेते हैं, पर वह ड्रम्स के मास्टर हैं. फिल्म सत्यम शिवम सुन्दरम के गीतों की रिकॉर्डिंग के दौरान हुई घटनाओं के बारे में वह बताते हैं, "इस मामले में राज कपूर साहब का मुकाबला नहीं था और वह तो खुद जीनत अमान की चाल चलते हुए हमें इस गीत की बारीकियां समझा रहे थे. बात लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के रिकार्डिंग रूम की है और मैं भी उनकी बात ध्यान से सुन रहा था. सीन समझ में आते ही मैंने अपने तबले पर इस गीत का ठेका बजाया. इसे सुन राज साहब इतने खुश हुए कि वही डांस करने लगे." सुरेश परकशन के कमाल के कलाकार हैं और उन्हें भारत में "डिस्को- डांडिया" का जनक कहा जाता है. सुरेश बताते हैं कि कमोबेश सभी मशहूर संगीतकारों के साथ काम करते-करते कब 35 साल निकल गए पता ही नहीं चला. वह कहते हैं, "सात सुर आज भी वही हैं, पर सुनने वाले और सुनाने वाले दोनों ही बदल गए. पहले राम लखन में और अब फिल्म बदतमीज में ताल दी है. बजाने का तरीका तो आज भी वही है पर रिकॉर्डिंग के तरीके बदल गए हैं. टेक्नोलॉजी जरूर आसान हो गई है, पर संगीत की मधुरता मुश्किल से मिल रही है."
एकोर्डियन के धनी सुराज साठे
44 सालों से एकोर्डियन बजा रहे सुराज साठे कल्याणजी आनंदजी, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, पंचम दा से लेकर प्रीतम, जतिन ललित तक सभी संगीतकारों के साथ संगत कर चुके है. लेकिन पुराने जमाने को याद करते हुए वह कहते है कि पहले गाना शुरू होते ही पता चल जाता था कि किस का संगीत है पर अब तो हालत यह है कि आज के संगीतकार खुद अपने स्वरबद्ध किए गानों को ही पहचान नहीं पाते. वह कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि आज कल अच्छे गाने नहीं बन रहे हैं, "पर हां वह टिकाऊ नहीं हैं." साठे कहते हैं कि लता, आशा, मोहम्मद रफी, किशोर कुमार सरीखे गायक अपने हीरो हिरोइन को ध्यान में रख कर बहुत शिद्दत से गाते थे, लेकिन अब यह भावना देखने को नहीं मिलती.
सेक्सी नहीं सुरीला सेक्सोफोन
सेक्सोफोन के सुरीले कलाकार हैं, ठाकुर हजारा सिंह. अपने जमाने के प्रसिद्ध हवाईयन गिटारिस्ट हजारा सिंह के लड़के ठाकुर दाग, बॉबी और डॉन जैसी फिल्मों में सेक्सोफोन का कमाल दिखा चुके हैं. दुनिया भर में मशहूर संगीतकारों और फिल्मी कलाकारों के साथ अनगिनित शो कर चुके ठाकुर कहते है पहले काम, काम जैसे होता था, पर अब वह कामचलाऊ होता है.
रिपोर्टः जसविंदर सहगल, जयपुर
संपादनः आभा मोंढे