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"जख्म अभी भरे नहीं हैं"

२६ नवम्बर २०१०

11 सितंबर 2001 को अमेरिका पर हुए आंतकी हमले ने दुनिया को दो हिस्सों में बांट दिया. और 26 नवंबर 2008 को मुंबई पर हुए आतंकी हमले ने एक हिस्से को इस कदर जख्मी कर दिया कि पूरी दुनिया लहू लुहान नजर आने लगी.

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तस्वीर: AP

आज उसी मुंबई हमले की दूसरी बरसी है. इस मौके पर प्रिया एसेलबॉर्न ने बात की प्रोफेसर अमिताभ मट्टू से. प्रोफेसर मट्टू जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली में पढ़ाते हैं. वह अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा और भारतीय विदेश नीति के जानकार हैं. वह मुंबई हमलों को किस तरह देखते हैं. आइए, जानते हैं"

मुंबई हमले को दो साल हो गए हैं. क्या इसके जख्म भर पाए हैं?

अभी भी लोगों को याद है कि वह कितना भयानक वाकया था. इसलिए जख्म पूरे भरे नहीं हैं. जिन लोगों ने वह हमला किया उन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. तो लोगों को लगता है कि जब तक न्याय नहीं होगा, तब तक जख्म भरेंगे नहीं.

9/11 के बाद सारे देशों को लगा कि उनकी जमीन पर वैसा ही हमला न हो, अब डर है कि मुंबई जैसा हमला न हो जाए. क्या यह कहा जा सकता है कि इस हमले ने आतंकवाद की परिभाषा ही बदल दी?
बिल्कुल परिभाषा बदल गई है. 9/11 के बाद अगर पूरी दुनिया को किसी ने चौंकाया तो वह मुंबई हमला ही था. तीन दिन तक शहर को हाई जैक कर लिया गया. पूरी दुनिया ने तो नैतिक निष्ठा दिखाई भारत के साथ, लेकिन कार्रवाई कोई नहीं हुई. अब तो यह साबित हो चुका है कि पूरी योजना पाकिस्तान में लश्कर ने की. लेकिन पाकिस्तान के खिलाफ कोई ऐक्शन, कोई सेंक्शन नहीं हुए. अमेरिका या बाकी देशों ने अब तक कुछ नहीं किया.

Terror Bombay Indien
तस्वीर: AP

लेकिन ऐसा क्यों हुआ? क्योंकि पाकिस्तान की जरूरत है अफगानिस्तान में, या कुछ और वजह है?

दो कारण हैं. एक तो पाकिस्तान के पास परमाणु हथियार हैं. दूसरे, अमेरिका या यूरोपीय देशों को लगता है कि अफगानिस्तान की समस्या का हल पाकिस्तान के साथ सहयोग से होगा. जहां तक भारत का सवाल है तो उसे लगता है कि पाकिस्तान ही समस्या है और अफगानिस्तान में स्थिरता के लिए पाकिस्तान नाम की इस समस्या को हल करना होगा.

आपने नैतिक निष्ठा की बात की. हमले के बाद भारत को सहानुभूति मिली. क्या भारत की विश्व स्तर पर अब स्थिति बदल गई है? पहले लगता था कि भारत पाकिस्तान पर दुश्मनी की वजह से आरोप लगाता है. लेकिन अब वे आरोप सच हुए, तो क्या भारत की स्थिति अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बदली?

जी मेरी राय में दुनिया की राय अब बदली है. यह अब साफ हो गया है भारत आतंकवाद का एक टारगेट रहा है. अब जाहिर है कि 9/11 या अन्य जो आतंकवादी हमले हुए, वे भारत की आवाज को न सुनने का ही नतीजा थे. भारत ने कई बार कहा कि आतंकवाद के खिलाफ सारे देशों को मिलकर लड़ना होगा. आज लोग भारत की बात मानते हैं. लेकिन तब भी उन्हें लगता है कि कोई शॉर्ट कट रास्ता निकालें. असल में यह बहुत लंबी लड़ाई है.

भारत और पाकिस्तान के रिश्तों की बात करें, तो दो साल बाद अब क्या स्थिति है?

देखिए मैं उनमें से हूं जो मानते हैं कि भारत एक उभरती हुई ताकत है और उसके लिए, साथ ही पाकिस्तान और पूरे उप महाद्वीप के लिए जरूरी है कि भारत के सबके साथ रिश्ते स्थिर हों. लेकिन यह परेशानी की बात है कि दो साल में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की कोशिशों के बावजूद कोई रास्ता निकलता दिखाई नहीं दे रहा है. मुशर्रफ से बातचीत का दौर चला तो लगने लगा था कि पाकिस्तान के साथ रिश्तों की एक नई सुबह नजर आएगी. लेकिन देखें आप कि 26/11 के वाकये के बाद भी पाकिस्तान ने नाम की ही कार्रवाई की है. आज भी वहां भारत विरोध का माहौल है. वहां भाषण दिए जाते हैं. मुझे लगता है कि पाकिस्तान ने या उसकी फौज ने कोई नई पहल नहीं की तो रिश्ते ऐसे ही रहेंगे.

जब मुंबई हमले हुए तो बहुत सारे वादे किए गए थे. पुलिस सुधार. व्यवस्था में सुधार. सुरक्षा बंदोबस्त में सुधार जैसी बहुत सारी बातें कही गईं. क्या वे वादे पूरे हुए? क्या अब भारत तैयार है ऐसे हमलों का सामना करने के लिए?

देखिए फिदायीन आतंकवादी हमलों का सामना करना बहुत मुश्किल है. लेकिन यह भी सच है कि उस हमले के बाद हमारे सामने एक चुनौती थी. तब हमारे गृह मंत्री बदले. बहुत सारे बदलाव भी हुए. लेकिन अब भी बहुत कुछ करने की जरूरत है. एक शुरुआत हुई है. नतीजतन अब तक कोई ऐसा आतंकवादी हमला नहीं हुआ है. लग रहा था कि कॉमनवेल्थ गेम्स पर आतंकवादी कुछ योजना बना रहे हैं. लेकिन भारत के आतंकवाद विरोधी एजेंसियों ने उसे भी नाकाम कर दिया. लेकिन सवाल यह है कि आगे भी हम वैसा ही कर पाएंगे या नहीं.

भारत में 18 करोड़ मुसलमान रहते हैं. पूरी दुनिया में इस्लामोफोबिया जैसी स्थिति है. लेकिन क्या भारत में सांप्रदायिक रिश्तों में कोई बदलाव आया है?

देखिए भारत तो एक मुसलमान देश है. हमारे यहां मुसलमानों की संख्या इतनी बड़ी है. जॉर्ज बुश कहा करते थे कि भारत में इतने ज्यादा मुसलमान हैं लेकिन यहां न अल कायदा है, न आतंकवाद है.

साक्षात्कारः प्रिया एसेलबॉर्न

संपादनः वी कुमार

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