छूट गया 7 घंटे पैदल चलकर ईमेल देखना
३० नवम्बर २०१०55 साल के पुन नेपाल के पश्चिमी हिस्से में एक छोटे से गांव नागी में रहते हैं. वहां से 10 घंटे का सफर तय करने के बाद ही वह उस शहर में पहुंचते जहां इंटरनेट उपलब्ध है. लेकिन अब ऐसा नहीं है. अब उन्होंने गांव में अपना ही वायरलेस नेटवर्क स्थापित कर लिया है. अपने इस कारनामे के जरिए उन्होंने आस पास के 100 गांवों को अचानक ही 21वीं सदी में ला खड़ा किया है.
तकनीक ने दुनिया के कुछ ऐसे हिस्सों की जिंदगी बदल दी है जहां आज भी सड़कें नहीं हैं और लोग छोटी मोटी खेती किसानी करके गुजारा कर रहे हैं. लेकिन तकनीक के कंधे पर चढ़कर ये पिछड़े इलाके चिकित्सा जैसी उन सुविधाओं की रोशनी देख पा रहे हैं जो कभी उनके आस पास भी नहीं फटकती थीं.
नेपाल का नागी गांव ऐसे ही इलाकों की मिसाल है. एक वेबसाइट www.nepalwireless.com के जरिए वहां लोग डॉक्टरों से वीडियो के सहारे मिल रहे हैं, देश विदेश में बैठे अपनों से बात कर रहे हैं और अपने याक भी बेच रहे हैं. यह वेबसाइट वहां के लोगों के लिए वैसा ही काम करती है जैसा वेबसाइट ईबे दुनियाभर में कर रही है.
तकनीक के सहारे जिंदगी का नया मुहावरा गढ़ने वाले पुन बताते हैं कि उन्होंने उन इलाकों को चुना जहां और कोई कमर्शल सर्विस प्रोवाइडर दिलचस्पी नहीं दिखा रहा था. और अब इलाके के 70 हजार लोगों तक इंटरनेट की पहुंच है. पुन के लिए यह सफर आसान तो नहीं रहा. वह बताते हैं, "जब हमने शुरू किया तब तो यहां कोई भी इंटरनेट का इस्तेमाल नहीं कर रहा था. अब हम 100 से ज्यादा गांवों को जोड़ चुके हैं. लेकिन अभी तो यह कुछ भी नहीं है. नेपाल में तो ऐसे हजारों गांव हैं."
पुन का यह सफर तब शुरू हुआ जब 1990 के दशक में उन्हें अमेरिका की यात्रा करने का मौका मिला. वह वहां पढ़ाई करने के लिए गए थे. तब वहां इंटरनेट का चलन बढ़ रहा था और पुन के एक प्रोफेसर ने उन्हें अपने गांव के लिए एक वेबसाइट बनाने की सलाह दी. पुन ने ऐसा किया. तब यह दुनिया की उन पहली वेबसाइटों में से थी जिन पर नेपाल का जिक्र आता था. और जब पुन अपने घर लौटे, तब तक उन पर संदेशों की बरसात हो रही थी. दुनियाभर के लोग उनके 800 लोगों वाले छोटे से गांव को देखना चाहते थे. वह बताते हैं, "तब तो राजधानी काठमांडू के व्यापारियों के पास भी वेबसाइट नहीं थी." लेकिन हिमालय में 7200 फुट की ऊंचाई पर बसे उनके गांव नागी के पास अपनी वेबसाइट थी.
पुन कहते हैं कि उन्हें डॉक्टर, कॉलेज टीचर और स्वयंसेवकों के संदेश मिल रहे थे जो नागी की मदद करना चाहते थे. तो पुन ने उन्हें अपने गांव बुलाया. वह चाहते थे कि उनके गांव के बच्चे नई तकनीक के बारे में सीखें. लेकिन गांव के स्कूल में तो कंप्यूटर नहीं था. वहां इतने संसाधन भी नहीं थे कि कंप्यूटर लाया जा सके. इसलिए पुन ने आने वालों से कहा कि वे कंप्यूटर का एक एक पुर्जा ले आएं. और खुद वह कंप्यूटर बनाना सीखने में जुट गए. उनके पास इतने पुर्जे पहुंच गए कि उन्होंने एक दर्जन कामचलाऊ कंप्यूटर बना डाले. लेकिन गांव को इंटरनेट से जोड़ने का उनका सपना पूरा हुआ 2002 में. उन्होंने नजदीकी शहर पोखरा से वाई फाई नेटवर्क के जरिए इंटरनेट हासिल कर लिया.
पुन को माओवादियों और देश की सेना से भी जूझना था. लेकिन वह लगे रहे. सितंबर 2003 तक 300 किलोमीटर के दायरे में फैले पांच गांव इंटरनेट से जुड़ गए थे. अब इनकी संख्या 100 को पार कर चुकी है.
अपनी इस उपलब्धि के लिए 2007 में महाबीर पुन को मैगसायसाय पुरस्कार मिला. अब भी उनका अभियान रुका नहीं है. खर्च बचाने के लिए वह सरकारी बस से ही देश भर की यात्रा करते हैं. घर में ही उन्होंने एक छोटा सा दफ्तर बना रखा है. और जब वह गांव के बच्चों को फेसबुक से दुनियाभर में दोस्त बनाते देखते हैं तो उन्हें अपना संघर्ष काफी सकून देता है.
रिपोर्टः एजेंसियां/वी कुमार
संपादनः ए कुमार