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छात्राओं से किसने लिखवाया कि वो समलैंगिक हैं?

प्रभाकर मणि तिवारी
१५ मार्च २०१८

कोलकाता में एक स्कूल की 10 छात्राओं से कथित रूप से जबरन यह कबूलनामा लिखाने पर बवाल मचा है कि वह लेस्बियन यानी समलैंगिक हैं.

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Indien Dorf Geschichte
तस्वीर प्रतीकात्मक है.तस्वीर: DW/S.Waheed

राज्य सरकार ने हालांकि स्कूल से इस मामले पर रिपोर्ट मांगी है लेकिन, शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी ने यह कह कर विवाद बढ़ा दिया है कि समलैंगिकता बंगाल की संस्कृति के खिलाफ है. मंत्री ने इस मामले में स्कूल प्रबंधन का समर्थन किया है. दूसरी ओर, छात्राओं के अभिभावकों ने आरोप लगाया है कि स्कूल प्रबंधन ने जबरन छात्राओं से कागज पर कबूलनामा लिखवाया है. इसके विरोध में उन्होंने स्कूल के सामने धरना और प्रदर्शन भी किया है. दूसरी ओर, सामाजिक संगठनों ने स्कूल और सरकार के रवैये की आलोचना करते हुए कहा है कि किसी भी व्यक्ति को अपने जीने का तरीका चुनने का अधिकार है.

क्या है मामला?

कमला गर्ल्स स्कूल की प्रिंसिपल ने बीते शुक्रवार को 10 छात्राओं से जबरन यह लिखवाया कि वे समलैंगिक हैं. उनसे कहा गया कि अगर वह ऐसा नहीं करती हैं तो उन सबको स्कूल से निकाल दिया जाएगा. स्कूल प्रबंधन का दावा है कि कक्षा के दूसरे छात्रों ने इस बात की शिकायत करते हुए कहा था कि उक्त छात्राएं कक्षा में भी समलैंगिकों की तरह व्यवहार करती हैं. वह एक-दूसरे का आलिंगन व चुंबन करती रहती हैं. उसके बाद प्रिंसिपल ने 12 मार्च को सभी 10 छात्राओं के अभिभावकों को स्कूल में बुला कर छात्राओं के कथित समलैंगिक रवैए की शिकायत की और कहा कि अगर वह अपनी बेटियों का रवैया नहीं सुधारते हैं तो उनको स्कूल से निकाल दिया जाएगा.

स्कूल की कार्यवाहक प्रिंसिपल शिखा सरकार कहती हैं, "कक्षा की दूसरी लड़कियों ने इन छात्राओं के बारे में शिकायत की थी. कई शिकायतें मिलने के बाद हमने अनुशासनात्मक कार्रवाई का फैसला किया. हमने आरोपी छात्राओं को बुलाया तो उन्होंने अपनी गलती मान ली." प्रिंसिपल ने बताया कि दोषी छात्राओं से लिखित रूप से अपनी गलती कबूल करने को कहा गया और उन्होंने ऐसा ही किया. वह कहती हैं कि अब इस मुद्दे को बेवजह तूल दिया जा रहा है. स्कूल प्रबंधन का कहना है कि हमारा मकसद उन छात्राओं का रवैया सुधारना है. इसलिए उनके अभिभावकों को भी इसकी जानकारी देते हुए उनसे जरूरी कदम उठाने को कहा गया है.

दूसरी ओर, अभिभावकों में इस बात को लेकर भारी नाराजगी है. उनका कहना है कि छात्राओं से जबरन कागज पर लिखवाने से पहले उनके माता-पिता को स्कूल में बुला कर इसकी जानकारी देनी चाहिए थी. अब इस विवाद के बढ़ने की वजह से उन छात्राओं पर हमेशा के लिए एक कलंक लग गया है. एक अभिभावक इंद्रजीत बनर्जी कहते हैं, "बिना किसी जांच के स्कूल प्रबंधन का महज कुछ छात्राओं की कथित शिकायत के आधार पर किसी को समलैंगिक करार देना कहां का न्याय है ? इन छात्राओं के माथे पर एक कलंक लगा दिया गया है."

मंत्री का बयान

राज्य के स्कूल शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी ने बुधवार को स्कूल की कार्रवाई का समर्थन किया. वह कहते हैं, "मलैंगिकता हमारी संस्कृति के खिलाफ है. हमें अपनी संस्कृति बनाए रखनी चाहिए." मंत्री कहते हैं कि अगर स्कूल को उन छात्राओं का रवैया अश्लील लगा तो वह कार्रवाई के लिए स्वतंत्र है. उन्होंने  बताया कि मीडिया में आई खबरों के बाद मंत्रालय ने स्कूल से इस मामले में रिपोर्ट मांगी है. चटर्जी कहते हैं, "मैं जानना चाहता हूं कि असल में मामला क्या है? अभिभावकों ने स्कूल पर छात्राओं से जबरन कोरे कागज पर कबूलनामा लिखवाने का आरोप लगाया है. अगर बिना किसी गलती के स्कूल ने ऐसा किया है तो यह गलत है. लेकिन अगर सचमुच छात्राओं पर लगे आरोप सही हैं तो स्कूल परिसर में ऐसी गतिविधियां बर्दाश्त नहीं की जा सकतीं."

स्कूल की आलोचना

इस बीच, सामाजिक व समलैंगिक संगठनों ने स्कूल प्रबंधन के रवैए को तानाशाही करार देते हुए इसकी आलोचना की है. एक समलैंगिक कार्यकर्ता अभिनव सवाल करते हैं, "आखिर महज शिकायत के आधार पर स्कूल प्रबंधन ने कबूलनामा क्यों लिखवाया? वह कहते हैं कि ऐसे तो किसी को भी समलैंगिक ठहराया जा सकता है." सामाजिक कार्यकर्ता हरीश नायर कहते हैं, " कोई व्यक्ति समलैंगिक है या नहीं, इससे क्या फर्क पड़ता है. सबको अपने जीने का तरीका चुनने का अधिकार है. आखिर समलैंगिक होना कोई अपराध तो नहीं है?"

समलैंगिकों के हित में काम करने वाले सुजय प्रसाद कहते हैं, "पहले तो स्कूल प्रबंधन ने गलत किया. ऊपर से शिक्षा मंत्री के बयान ने इस विवाद को और बढ़ा दिया है." वह कहते हैं कि अब शिक्षकों और राजनेताओं को भी यह बताया जाना चाहिए कि समलैंगिकता कोई

अपराध नहीं है. कोलकाता स्थित समलैंगिकों के गैर-सरकारी संगठन साफो की मालविका कहती हैं, "उन छात्राओं के साथ बेहद गलत हुआ है. महज एकाध शिकायतों के आधार पर उन पर समलैंगिक होने का ठप्पा लगा दिया गया है. क्या को-एड स्कूलों में भी छात्रा-छात्राओं को एक साथ देख कर उनसे यह लिखने को कहा जाता है कि वे हेट्रोसेक्सुअल हैं? "