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चुनाव से पहले मैर्केल और शुल्त्स की टीवी बहस

२ सितम्बर २०१७

जर्मनी में 24 सितंबर को होने वाले आम चुनावों से पहले जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल और सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी के उम्मीदवार मार्टिन शुल्त्स की रविवार को टीवी पर बहस होगी. शुल्त्स के लिये अपनी साख स्थापित करने का बड़ा मौका.

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Deutschland Wahlplakate Schulz Merkel
तस्वीर: picture-alliance/F. May

दोनों दावेदारों की 90 मिनट की यह बहस करीब 1.5 से 2 करोड़ लोग टीवी पर टकटकी लगाये देखेंगे. जर्मन राजनीति में इस तरह की सीधी बहसों का सिलसिला अभी नया है. हालांकि पिछले चुनावों में ऐसी बहसें एक से अधिक बार भी हुई लेकिन इन चुनावों की यह एकमात्र बहस है जिसका प्रसारण चार चैनलों पर लाइव किया जायेगा. एसपीडी से दावेदारी पेश कर रहे 61 वर्षीय मार्टिन शुल्त्स के लिये ये 90 मिनट मतदाताओं का "समर्थन हासिल" करने का अहम मौका है. शुल्त्स को मैर्केल की तुलना में एक मजबूत सार्वजनिक वक्ता माना जाता है.

पिछले हफ्ते सरकारी चैनल एआरडी ने एक सर्वे जारी किया था, जिसके मुताबिक तकरीबन 64 फीसदी मतदाताओं को उम्मीद है कि रविवार की यह बहस मैर्केल जीतेंगी. वहीं 17 फीसदी ने शुल्त्स पर भरोसा जताया. लेकिन 12 साल से सत्तारूढ़ मैर्केल के लिये इस बहस में खोने के लिये बहुत कुछ है. दुनिया भर में चुनाव पूर्व होने वाली ऐसी बहसों में अकसर यह नजर आता है कि सत्तारुढ़ दल या सत्तासीन नेता को ही इसका कुछ न कुछ नुकसान होता है.

हालांकि विश्लेषकों को संदेह है कि चार टीवी मॉडरेटर्स के नेतृत्व में रविवार को होने वाली बहस क्या वाकई चुनाव नतीजों में कोई नाटकीय बदलाव ला सकती है. एक चुनावी शोध संस्था से जुड़े विश्लेषक माथियास युंग के मुताबिक "पिछली बहसों के रुझानों पर भरोसा करें तो दर्शक पहले ही अपने उम्मीदवारों को पसंद कर चुके होते हैं और ऐसी बहसों को काफी सोच-समझ कर अपनाते हैं."

समलैंगिक विवाह जैसे कई विवादित मुद्दे चुनावी एजेंडे से बाहर हो चुके हैं और अन्य संभावित मुद्दों पर पहले ही तैयारी की जा चुकी है. इसमें चुनाव बाद गठबंधन, शरणार्थी समस्या, आतंकवाद, सुरक्षा जैसे मसले प्रमुख हैं. वहीं अंतरराष्ट्रीय मुद्दों में रूस व यूक्रेन पर जर्मनी का रुख, भविष्य में होने वाले यूरोपीय सुधारों के साथ-साथ अमेरिका और तुर्की को लेकर जर्मन नीति जैसे मसले अहम हैं.

ऐसे दावे भी किये जा रहे थे कि मैर्केल ने टीवी पर होने वाली इस बहस का प्रारूप तय करने की कोशिश की थी. लेकिन मैर्केल ने इसे नकारते हुये कहा कि वह इस बहस का इंतजार कर रहीं थी. मीडिया को दिये बयान में शुल्त्स ने कहा "सीडीयू के पास एक ही विचार है और वह है अंगेला मैर्केल, लेकिन हमारे पास देश की अगली पीढ़ी के भविष्य से जुड़े विचार हैं."

Wahlplakate in Berlin
तस्वीर: picture-alliance/dpa/B. Pedersen

जैसे-जैसे चुनाव करीब आ रहे हैं और प्रचार तेज हो रहा है शुल्त्स ने मैर्केल पर प्रहार तीखे कर दिये हैं. पिछले हफ्ते एक टीवी इंटरव्यू में मैर्केल पर निशाना साधते हुये शुल्त्स ने कहा था, "मैर्केल मतदाताओं का नब्ज नहीं पकड़ पा रहीं है और ऐसा इसलिये कि उनपर तुर्की राष्ट्रपति रेचेप तैयप एर्दोवान का दबाव है." शुल्त्स ने कहा कि अधिकतर लोग अब यह समझने लगे हैं कि अब उनसे दूर जा चुकी हैं. उन्होंने कहा "मैर्केल का आम जनता के साथ यह अलगाव मुझे मतदाताओं के साथ जोड़ेगा."

जनवरी में हुये जनमत सर्वेक्षणों में एसपीडी को लाभ मिलता दिख रहा था, जिसके बाद एसपीडी ने शुल्त्स की दावेदारी पर मुहर लगाई थी. लेकिन अगर जर्मन अर्थव्यवस्था को साथ में लेकर चर्चा करें तो सर्वेक्षण बताते हैं कि एसपीडी के चुनाव प्रचार में शिक्षा, शोध, बुनियादी विकास और सामाजिक न्याय जैसे मुद्दे अब भी मतदाताओं को बड़े स्तर पर पार्टी के साथ नहीं जोड़ सके हैं. लेकिन इस बीच सीडीयू-सीएसयू गठबंधन मैर्केल को एक सफल, स्पष्ट और अनुभवी नेता के तौर पर पेश करने में सफल रहा है. सत्ताधारी दल स्पष्ट रूप से यह संदेश देने में कामयाब रहा है कि अमेरिकी रुख, कोरियाई प्रायद्वीप की तनातनी और ब्रेक्जिट जैसे वैश्विक सकंटों के बीच देश की कमान एक अनुभवी नेता के पास है.

बर्लिन की एक चुनावी शोध संस्था फोरसा के सर्वेक्षण मुताबिक सीडीयू-सीएसयू को 38 फीसदी और एसपीडी को 24 फीसदी वोट मिल सकते हैं. 48 फीसदी मतदाताओं का कहना है कि अगर उन्हें सीधे तौर पर चांसलर पद का चुनाव करना हो तो वे मैर्केल का समर्थन करेंगे. वहीं 23 फीसदी शुल्त्स का समर्थन करते हैं.

रविवार को होने वाली इस बहस से मार्टिन शुल्त्स और एसडीपी को बेशक काफी उम्मीदें हैं. शुल्त्स का भी जोर उन 50 फीसदी मतदाताओं का भरोसा जीतने पर होगा जो अब तक चुनावों को लेकर अपना रुख तय नहीं कर पाये हैं.

एए/एमजे (डीपीए)