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ईवीएम पर लग रहे हैं “धांधली” के आरोप

शिवप्रसाद जोशी
१४ मार्च २०१७

2017 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी की तूफानी जीत और प्रचंड बहुमत के बाद विपक्षी दलों ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) को लेकर सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं. चुनाव आयोग ने उन्हें खारिज किया है.

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Indien Wahlen
तस्वीर: picture alliance/AP Photo/P. Gill

क्या वास्तव में ईवीएम ऐसी बला है जो मनचाहे नतीजे निकाल सकती है या ये राजनैतिक दलों की सिर्फ हार की कुंठा है? ईवीएम का ये विवाद देखा जाए तो नया नहीं है. इससे पहले गाहेबगाहे विभिन्न चुनावी मौकों पर राजनैतिक दल और नेता, इसके जरिए फर्जी मतदान की आशंका जता चुके हैं. 2014 में भी ये आशंका जताई गई थी और उससे पहले 2009 में विपक्षी दल बीजेपी ने लोकसभा चुनावों में ईवीएम के जरिए गड़बड़ी के आरोप लगाए थे. और तमिलनाडु में एआईएडीएमके ने चुनाव आयोग से पेपर बैलट बहाल करने की मांग की थी.  अतीत में कैप्टन अमरिंदर सिंह भी ईवीएम पर आशंकित रह चुके हैं.

पहली बार 1982 में केरल की उत्तरी परावुर विधासनभा सीट पर ईवीएम का इस्तेमाल हुआ था. पराजित कांग्रेस उम्मीदवार एसी बोस ने केरल हाईकोर्ट की नाकाम शरण ली थी. नवंबर 1998 में मध्यप्रदेश, राजस्थान और दिल्ली की 16 विधानसभा सीटों पर फिर से ईवीएम उतारी गयी. 2004 लोकसभा चुनावों में पहली बार देशव्यापी स्तर पर ईवीएम का इस्तेमाल हुआ. इसके साथ भी विवादों की शुरुआत भी हुई. 2009 में लोकसभा के साथ साथ विधानसभा चुनावों में ईवीएम से धांधली के आरोपों ने जोर पकड़ा.

इसमे कोई शक नहीं कि ईवीएम ने समाज, राजनीति और आबादी के लिहाज से अत्यन्त जटिल तानेबाने वाले भारत में चुनाव प्रक्रिया को काफी सहज और सटीक बनाया है. मतदान और मतगणना की प्रक्रिया में तेजी आई है. बूथ कैप्चरिंग, फर्जी मतदान, अवैध वोट, हिंसा आदि पर अंकुश लगा है. चुनाव आयोग ने कहा था कि इसमें छेडछाड़ संभव नहीं, ये त्रुटिहीन और संचालन में आसान है. लेकिन ईवीएम शुरू करने की प्रक्रिया इतनी आसान नहीं थी. इसे नेताओं की ओर से भी विरोध का सामना करना पड़ा. 1984 में सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को मनमानी के लिए फटकार लगाई. जिसके जवाब में आयोग ने कहा कि ये एक प्रक्रियात्मक बदलाव है. चीजें आसान होंगी लेकिन कोर्ट नहीं माना, उसकी दलील थी कि बैलट का मतलब बैलट होता है जो कागज पर ही दर्ज होना चाहिए. लेकिन आयोग ने बताया कि प्रत्येक लोकसभा सीट पर ईवीएम के इस्तेमाल से तीन लाख रूपए से अधिक की बचत होती है. मतदाताओं की बढ़ती संख्या के लिहाज से इसका इस्तेमाल वक्त की मांग है. औसतन एक लोकसभा क्षेत्र के लिए 12 हजार रुपए प्रति टन के हिसाब से तीन मीट्रिक टन कागज का इसेतमाल होता है. कागज की कटाई और छपाई का खर्च अलग.

Wahl in Indien ARCHIVBILD 2004
तस्वीर: picture-alliance/dpa

इस लड़ाई में आखिरकार जीत आयोग की हुई. सुप्रीम कोर्ट ने ईवीएम के इस्तेमाल को जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 के लिहाज से "गैरकानूनी” माना था.  लेकिन 1989 में इस कानून में संशोधन किए गए और सेक्शन 61-ए जोड़ा गया जिसमें कहा गया कि ऐसे निर्वाचन क्षेत्रों में ये मशीनें इस्तेमाल की जा सकती हैं जहां चुनाव आयोग परिस्थिति अनुसार निर्णय कर सकता है. 2004 में अलबत्ता चुनाव से पहले सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से ईवीएम से जुडी आशंकाओं का निराकरण करने को कहा भी था. 2009 के लालकृष्ण आडवाणी जैसे वरिष्ठ विपक्षी नेताओं ने ईवीएम पर सवाल उठाए थे. बाद में बीजेपी प्रवक्ता बने पूर्व चुनाव विश्लेषक जीवीएल नरसिम्हाराव ने उस दौरान एक किताब भी लिखी थी, जो ईवीएम से जुड़ी आशंकाओं पर ही केंद्रित थी. उसमें साफतौर पर बताया गया था कि कैसे ईवीएम मनमुताबिक मतदान का एक फर्जी रास्ता खोल सकती है.

इसका सॉफ्टवेयर सुरक्षित नहीं है. उसकी सुरक्षा निर्भर करती है सोर्स कोड पर. ईवीएम बनाने वाली दो भारतीय कंपनियों भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) और इलेक्ट्रॉनिक्स कॉरपोरेशन ऑफ़ इंडिया (इसीआईएल) ने इसके सॉफ्टवेयर प्रोग्राम को दो विदेशी कंपनियों के साथ साझा किया है, एक अमेरिका की माइक्रोचिप और दूसरी जापान की रेनेसास है. क्योंकि मशीनों के लिए माइक्रोकंट्रोलर मुहैया कराने का काम ये दोनों ही कंपनियां करती हैं.  ईवीएम का हार्डवेयर भी असुरक्षित बताया गया है. अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ मिशीगन में कम्प्यूटर विज्ञान के प्रोफेसर डॉ एलेक्स हाल्डरमैन के मुताबिक भारतीय मशीनों के हार्डवेयर को हिस्सों में या पूरा का पूरा आसानी से बदला जा सकता है. ईवीएम को हैक भी किया जा सकता है. ऐसा चुनाव से पहले या बाद में, कभी भी हो सकता है. मशीन के जिस प्रोग्राम में वोटिंग डाटा स्टोर रहता है वे असुरक्षित हैं और उन्हें बाहरी सोर्स से मैनीपुलेट किया जा सकता है. कंट्रोल यूनिट के डिसप्ले सेक्शन में कुख्यात ट्रोजन वायरस के साथ एक चिप लगा दी जाए तो ईवीएम को हैक करना आसान हो जाता है. ये चिप मनमाफिक नतीजे उद्घाटित कर सकती है. यानी मशीन तक किसी अवांछित "इनसाइडर” व्यक्ति की पहुंच उसे हैकिंग सामग्री में तब्दील कर सकती है. वैसे भी अपने समूचे जीवनचक्र में मशीन को विभिन्न हाथों से गुजरना होता है.

Indien Auswertung der Wahlergebnisse Jubel
तस्वीर: Reuters/A. Abidi

एक मुद्दा ये भी उठा कि ईवीएम मतदाता के बुनियादी अधिकारों की अवहेलना भी है लिहाजा ये असंवैधानिक है. क्योंकि मतदान का अधिकार कैसे करना है इसकी अभिव्यक्ति का अधिकार वोटर को है. उसने अपनी पसंद के उम्मीदवार को वोट दिया या नहीं, ईवीएम से ये स्पष्ट नहीं है, वीवीपीएटी यानी फिजीकली वेरीफेबल पेपर ऑडिट ट्रायल का प्रिंट आउट निकालने जैसी तकनीकी लागू करने को कोर्ट ने कहा है कि लेकिन ये सर्वसुलभ और सर्वविदित नहीं हो पाई है. और इसमें भी कुछ तकनीकी पेंचोखम पाए गए हैं. कुल मिलाकर ईवीएम प्रक्रिया पर भरोसे की कमी के आरोप लगे हैं. मजे की बात है कि एक ओर भारत में इसका जोरशोर से इस्तेमाल होने लगा है उधर दुनिया के अधिकांश हिस्सों में ईवीएम का प्रयोग वर्जित है जैसे जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस, इटली, जापान, सिंगापुर, नीदरलैंड्स, आयरलैंड, डेनमार्क, और आंशिक रूप से अमेरिका में.

अब चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था के सामने ये एक विकट चुनौती है कि पुराने विवादों को हवा मिल गई है. देरसबेर सुप्रीम कोर्ट तक भी मामला फिर से आएगा. ऐसे में चुनाव सुधारों की पूरी जद्दोजहद ही एक नई बहस की दिशा में मुड़ जाएगी. ईवीएम को लेकर संदेह और आरोप प्रमाणित नहीं हैं, लेकिन इनका स्थायी और निर्णायक हल जरूरी है, वरना कल बीजेपी आज बीएसपी कल कांग्रेस कल कोई और दल इस तरह से सुधारों की कोशिशों पर ही सवाल उठाता रहेगा, और चुनाव आयोग सत्ता राजनीति के इन्हीं चक्करों में उलझा रह जाएगा.