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चुइंग गम चबाओ, बढ़िया नंबर लाओ

१ दिसम्बर २०१०

शायद ही कोई ऐसी चीज होगी जो टीचरों को इतनी नापसंद है जितनी चुइंग गम चवाना है. लेकिन अब जर्मनी के दक्षिणी राज्य बवेरिया में एक प्रॉजेक्ट के तहत बच्चों से कहा जा रहा है कि वह क्लास में चुइंग गम चवाएं.

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स्कूल में चुइंग गम चलेगीतस्वीर: picture-alliance/dpa

वोल्कनश्वांड गांव के प्राइमरी स्कूल की सोच है कि चुइंग गम चबाने से बच्चे क्लास में पढ़ाई पर बेहतर ध्यान देते हैं. इसी वजह से 1,650 लोगों की आबादी वाला यह छोटा सा गांव 8.2 करोड़ की आबादी वाले पूरे जर्मनी में मशहूर हो गया है. बवेरिया राज्य के शिक्षा मंत्रालय में काम करने वाले वोल्फगांग एलनगास्त का मानना है, "चुइंग गम चबाना बच्चों के स्वास्थ्य के लिए अच्छा है और इससे उनकी याद करने और बेहतर ध्यान देने की क्षमता बढ़ती है. इस तरह बच्चों का स्कूली प्रदर्शन बेहतर होता है."

साथ ही स्कूल के निदेशक हांस दाश का कहना है, "स्कूल में अच्छी तरह से बच्चों के सीखने के लिए यह जरूरी है कि उन्हें स्कूल जाने में मजा आए और उनके अंदर किसी तरह का डर न हो. हमारे लिए जरूरी है कि वह खुश रहें. इसलिए हम उनसे कह रहे हैं कि वह हर वक्त, क्लास के अंदर और ब्रेक में भी, चुइंग गम चबाएं."

कई विशेषज्ञों का भी मानना है कि दांतों को स्वास्थ रखने में कई तरह के चुइंग गम फायदेमंद हो सकते है. जरूरी यह है कि चुइंग गम में चीनी और कृत्रिम फ्लेवर न हों. चुइंग गम खासकर तब भी बहुत फायदेमंद हो सकते हैं जब खाना खाने के बाद बच्चों के लिए मुमकिन नहीं है कि वह अपने दांतों को साफ करें. अध्ययनों से पता चला है कि चुइंग गम चबाने से दिमाग सक्रिय रहता है और नींद नहीं आती. साथ ही चबाने से कई मांसपेशियों की कसरत होती रहती है. इसलिए रक्त का संचार भी बना रहता है. लेकिन चुइंग गम चबाने के लिए कई नियम भी तय किए गए हैं. बच्चों को चुइंग गम चबाते हुए अपना मुंह बंद रखना है और उन्हें गम को खाने के बाद अच्छी तरह से फेंकना है. इसका मतलब यह है कि पेपर में गम को रोल कर उसे कचरे में फेंकना है.

बच्चों के लिए अब क्लास रूम में हर मेज पर विशेष तरह के छोटे कंटेनेरर लगाए गए हैं. स्थानीय कलाकारों ने बच्चों के साथ मिल कर उन्हें रंगा है. इस तरह के बॉक्स के अंदर बच्चे अपने चुइंग गम रख सकते हैं ताकि क्लास के वक्त उन्हें हमेशा उठना न पड़े. क्लास के बाद उन्हें जाकर फेंका जा सकता है. यदि प्रॉजेक्ट सफल रहा तब इसे दूसरे स्कूलों और राज्यों में भी लागू किया जाएगा.

रिपोर्ट: एजेंसियां/प्रिया एसेलबोर्न

संपादन: ए कुमार

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