1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

बाबरी केस से जुड़ी है चीफ जस्टिस के खिलाफ लामबंदी

मारिया जॉन सांचेज
२८ मार्च २०१८

भारत में विपक्ष सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव की तैयारी कर रहा है. भारत के इतिहास में अभी तक सुप्रीम कोर्ट के किसी जज को महाभियोग चला कर हटाया नहीं जा सका है.

https://p.dw.com/p/2v8hu
Indien Oberster Gerichtshof in Neu-Delhi
तस्वीर: Imago/Hindustan Times/S. Mehta

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) के महासचिव सीताराम येचुरी ने संसद का बजट सत्र शुरू होने से कुछ ही दिन पहले 23 जनवरी, 2018 को घोषणा की थी कि उनकी पार्टी भारत के प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्र के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने के बारे में अन्य विपक्षी दलों के साथ विचार-विमर्श कर रही है. लेकिन जब इसके बाद इस दिशा में कुछ खास होता नहीं दिखा तो सभी ने मान लिया कि इस प्रस्ताव को विपक्षी दलों ने गंभीरता के साथ नहीं लिया है. पर अब अचानक इस बिंदु पर विपक्षी दलों के बीच विचार-विनिमय शुरू हो गया है और कांग्रेस भी अनौपचारिक रूप से इस प्रक्रिया में उत्साह के साथ भाग ले रही है. आधिकारिक रूप से अभी तक कांग्रेस ने अपना रुख स्पष्ट नहीं किया है लेकिन खबर है कि वामपंथी दलों, विशेष रूप से सीपीएएम, ने महाभियोग प्रस्ताव का एक मसौदा तैयार करके विभिन्न विपक्षी पार्टियों के नेताओं और सांसदों के बीच वितरित किया है और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के सांसद एवं वरिष्ठ वकील माजिद मेमन तथा सीपीआई के नेता डी राजा समेत कई कांग्रेस सांसदों ने भी उस पर हस्ताक्षर कर दिए हैं.

सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग चलाने की कोशिश करना एक बेहद गंभीर बात है. यह एक लंबी प्रक्रिया है और कोई जरूरी नहीं कि वह अपनी परिणति तक पहुंचे ही. पहले लोकसभा के 100 या राज्यसभा के 50 सदस्यों को महाभियोग प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करके उसे अपने सदन के पीठासीन अधिकारी- लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति को सौंपना होगा. उसके बाद सदन के पीठासीन अधिकारी यह फैसला करेंगे कि प्रस्ताव को स्वीकार करना है या नहीं. यदि स्वीकार किया गया, तो एक तीन-सदस्यीय समिति आरोपों की जांच के लिए गठित की जाएगी जिसकी रिपोर्ट पर संसद में बहस होगी और सदन में उपस्थित कुल सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से ही उसे स्वीकार किया जा सकेगा. स्वाधीन भारत के इतिहास में अभी तक सुप्रीम कोर्ट के किसी जज को महाभियोग चला कर हटाया नहीं जा सका है. जस्टिस रामास्वामी के मामले में भी यह प्रयास असफल रहा था.

Indien Justizsystem Pressekonferenz Richter am Obersten Gerichtshof
चीफ जस्टिस के खिलाफ प्रेस कॉन्फ्रेंस करते वरिष्ठ जजतस्वीर: picture-alliance/AP Photo

दरअसल यह पूरी प्रक्रिया एक अर्थ में राजनीतिक है. जस्टिस दीपक मिश्र के खिलाफ यह आरोप है, और इसे सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठतम जजों ने पिछली 12 जनवरी को बाकायदा संवाददाता सम्मलेन बुलाकर लगाया था, कि वह महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई के लिए स्थापित परंपरा का पालन करने के बजाय मनमाने ढंग से खंडपीठ का गठन करते हैं. इस आरोप का आशय यही है कि उनकी इस कार्यशैली का मकसद सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी को लाभ पहुंचाना होता है. जज लोया की संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मृत्यु की जांच का मामला, जिसके तार भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से भी जुड़ते हैं, इस संबंध में एक उदाहरण है. दूसरा मामला मेडिकल कॉलेज की मान्यता से संबंधित है जिसमें स्वयं जस्टिस मिश्र का भी नाम आता है. जाहिर है कि महाभियोग प्रस्ताव में इन आरोपों को आधार बनाया जाएगा क्योंकि खंडपीठ के गठन संबंधी चार वरिष्ठतम जजों की शिकायतों को दूर करने के लिए अभी तक कोई कारगर कदम नहीं उठाया गया है.

लेकिन राजनीतिक प्रेक्षकों का कहना है कि इस समय बाबरी मस्जिद के मामले की सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश का सक्रिय हो जाना भी उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाये जाने के पीछे एक महत्वपूर्ण कारण हो सकता है. यह मामला दशकों से लंबित पड़ा है और भाजपा चाहती है कि अगले लोकसभा चुनाव के पहले-पहले इस पर फैसला आ जाए ताकि एक बार फिर धार्मिक भावनाओं को भड़का कर इसका राजनीतिक लाभ उठाया जा सके. पिछले चार सालों में विकास की प्रक्रिया को तेज करने और रोजगार के बेहतर अवसर पैदा करने के वादों की असलियत सामने आ चुकी है इसलिए भाजपा को हिंदुत्व का सहारा लेना जरूरी लग रहा है. चीफ जस्टिस दीपक मिश्र की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने बाबरी मस्जिद मामले की सुनवाई शुरू कर दी है. हालांकि जस्टिस मिश्र ने स्पष्ट किया है कि केवल संपत्ति पर मालिकाना हक से संबंधित दलीलें ही सूनी जाएंगी, धार्मिक या राजनीतिक दलीलें नहीं, लेकिन यह स्पष्ट है कि इस मामले का फैसला कुछ भी आए, उसका तात्कालिक चुनावी लाभ भाजपा को ही मिलेगा. इसीलिए विपक्ष की कोशिश इस प्रक्रिया में अड़चन डालने की है.

प्रधान न्यायाधीश जस्टिस मिश्र की कार्यशैली निश्चित रूप से विवादास्पद है और रही है. इस वर्ष के अंत तक वे सेवानिवृत्त भी हो जाएंगे. लेकिन उन पर महाभियोग चलाने की कोशिश करके विपक्ष भी एक राजनीतिक चाल ही चल रहा है. यह कोशिश सफल होगी, इसमें संदेह है क्योंकि बहुत संभव है कि सदन के पीठासीन अधिकारी प्रस्ताव को स्वीकार ही न करें. यूं भी भाजपा खुद संसदीय परंपराओं का पालन करने में अधिक विश्वास नहीं करती. वरना लोकसभा में अभी तक मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लटका ही न रहता.