चीन में अपराध कबूल करवाने के लिए यातना पर रोक
२७ जून २०१७चीन की सुप्रीम कोर्ट ने अपने वेब पेज पर कहा है कि यातना और अवैध हिरासत के जरिये अपराध की स्वीकारोक्ति अदालत में मान्य नहीं होगी. देश की सर्वोच्च अदालत के बयान में कहा गया है कि इस फैसले का मकसद अपराध के लिए सही तरह से सजा देना है और इसके साथ मानवाधिकारों की सुरक्षा और निष्फल न्याय से बचना है. देश में आपराधिक न्याय व्यवस्था में अपराध के जबरन कबूल को रोकने का ये ताजा प्रयास है.
चीन की अदालतों में अपराध के लिए सजा देने की दर लगभग शतप्रतिशत है. वहां सजा की दर 99.92 प्रतिशत है. मानवाधिकार समूह लंबे समय से जबरन अपराध कबूल करवाने और आपराधिक मुकदमों में प्रभावी बचाव के अभाव में गलत अदालती फैसले लिये जाने के विरोध में आवाज उठाते रहे हैं. हालांकि चीनी नेताओं ने पहले भी यातना पर रोक लगाने के प्रयास किये हैं लेकिन मानवाधिकार समूहों का कहना है कि इस प्रथा की गहरी जड़ें हैं.
हाल ही में अदालत के गलत फैसले का एक मामला सामने आया है जिसमें नी शूबीन को 1995 में बलात्कार और हत्या के लिए सजा दी गयी थी. उसे सुनायी गयी मौत की सजा की तामील के लिए फायरिंग स्क्वायड से गोली मरवायी गयी थी. पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने सच्चाई और अपराध की स्वीकारोक्ति की वैधता पर संदेह पाये जाने के बाद मूल सजा को पलट दिया था.
यह घोषणा नोबेल पुरस्कार विजेता लियु शियावोबो को लीवर कैंसर के इलाज के लिए मेडिकल परोल दिये जाने के फैसले के बाद चीन की न्याय व्यवस्था की ताजा आलोचना के बाद आयी है. समर्थकों ने सवाल किया है कि उन्हें इलाज के लिये कैंसर के अंतिम अवस्था में पहुंचने तक का इंतजार क्यों किया गया.
लोकतंत्र समर्थक कार्यकर्ताओं के साथ बुरे बर्ताव के लिए चीन की अक्सर आलोचना की जाती रही है. 2012 में शी जिनपिंग के राष्ट्रपति बनने के बाद से सिविल सोसायटी पर नियंत्रण और सख्त हो गया है. लोकतंत्र समर्थक अभियान चलाने वालों का कहना है कि गिरफ्तार वकीलों और कार्यकर्ताओं की असली संख्या का पता नहीं है क्योंकि कानूनी मदद और परिवार के साथ संपर्क के अभाव में उन्हें गोपनीय तरीके से हिरासत में रखा जाता है.
एमजे/आरपी (एएफपी)