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चीन को पछाड़ भारत हथियार खरीदने में नंबर वन

१९ मार्च २०१२

हथियार खरीदने में एशिया दुनिया के देशों के बीच पहले नंबर पर बना हुआ है और एशिया में भारत. स्टॉकहोम के अंतरराष्ट्रीय शांति शोध संस्थान (सिप्री) की नई रिपोर्ट में यह बात सामने आई है.

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तस्वीर: picture alliance / abaca

2007-11 के बीच भारत हथियार खरीदने में नंबर वन रहा, उसने इन पांच साल में बेचे गए कुल हथियारों का दस फीसदी हिस्सा खरीदा. इसके बाद उत्तर कोरिया (6%) , चीन और पाकिस्तान (5%) और सिंगापुर ने (4%) की बारी आती है.

सिप्री ने जानकारी दी है कि इन पांच देशों ने कुल 30% हथियार खरीदे. 2002-06 की तुलना में पिछले पांच साल में भारत का बड़े हथियारों की खरीदारी 38 प्रतिशत बढ़ी है. इनमें 2007-11 के बीच 120 सुखोई 30 एमकेएस, रूस से मिग 28 केएस के 16, ब्रिटेन से जगुआर के 20 युद्धक विमान शामिल हैं. भारत हथियारों के आयात में नंबर वन बना हुआ है जबकि पाकिस्तान तीसरे नंबर पर है. रिपोर्ट के मुताबिक, "पाकिस्तान ने इन पांच साल में चीन से कुल 80 युद्धक विमान लिए हैं. दोनों देशों ने बड़ी संख्या में टैंक भी मंगवाए हैं और आगे भी मंगवाते रहेंगे." सिप्री में आर्म्स ट्रांसफर प्रोग्राम के वरिष्ठ रिसर्चर पीटर वेजेमान कहते हैं, "मुख्य एशियाई आयातक देश खुद हथियार विकसित करना चाहते हैं, और बाहरी स्रोतों पर अपनी निर्भरता घटाना चाहते हैं."

एशिया सबसे ऊपर

2007 से 20011 के बीच दुनिया भर में पारंपरिक हथियारों का लेन देन 2002-06 की तुलना में 24 फीसदी ज्यादा था. पिछले पांच साल में एशिया और ओशेनिया ने हथियारों के कुल आयात का 44 प्रतिशत खरीदा. जबकि यूरोप ने 19, मध्यपूर्व ने 11, उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका ने 11 और अफ्रीका ने 9 फीसदी हथियारों का आयात किया.

2006 और 2007 में चीन दुनिया का सबसे बड़ा हथियार आयातक देश था. ''चीन के आयात में कमी होना उसके हथियार उद्योग के विकास और हथियार निर्यात में बढ़ोतरी साथ साथ चल रही है. और चीन के शस्त्र निर्यात में बढ़ोतरी का मुख्य कारण पाकिस्तान है जो उससे लगातार हथियार ले रहा है."

सीरिया में अति

हथियार बेचने में चीन अमेरिका, रूस, जर्मनी, फ्रांस और ब्रिटेन के बाद छठें नंबर पर है. 2007 से 2011 के बीच आर्थिक संकट से जूझ रहा ग्रीस यूरोप का सबसे बड़ा हथियार आयातक देश रहा. वहीं सीरिया का हथियार आयात 580 प्रतिशत बढ़ गया. इसमें सबसे ज्यादा हथियार देने वाला देश रूस था.

हालांकि मध्यपूर्व में इस दौरान हथियारों की खरीद आठ फीसदी से गिर गई. सिप्री ने चेतावनी दी है कि यह ट्रेंड बिलकुल उल्टा भी हो सकता है. 2011 के दौरान बहरीन, मिस्र, लीबिया, ट्यूनीशिया और सीरिया की सरकारों ने शांतिपूर्ण प्रदर्शनों के दमन के लिए तेजी से हथियारों की खरीदारी की है.

Symbolbild Waffenhandel
आर्थिक संकट के बावजूद हथियारों की खरीद फरोख्त जारीतस्वीर: picture-alliance/dpa

अमेरिका नंबर वन

हालांकि रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 2010 में हथियारों की खरीद वैसे तो बढ़ी लेकिन सिर्फ एक फीसदी. बढ़ोतरी का यह ट्रेंड 2009 की तुलना में काफी कम है. 2009 में हथियारों की बिक्री 406 अरब डॉलर की थी. सिप्री में हथियार उद्योग की जानकार सूसन जैक्सन के मुताबिक, "2010 के आंकड़े बताते हैं कि हथियार बेचने वाले मुख्य देश आर्थिक संकट और दूसरे उद्योगों को हानि के बावजूद इसी लाइन पर चल रहे हैं."

100 बड़े हथियार बेचने वाले देशों में अमेरिका पहले नंबर पर रहा. हथियार बेचने वाली कंपनियों में भी पहली दस में अमेरिका की ही सात कंपनियां हैं. इनमें लॉकहीट मार्टिन्स पहले नंबर पर है. इसके बाद ब्रिटेन की बीएई सिस्टम्स है. यूरोप की ईएडीएस सातवें नंबर पर और इटली की फिनमेक्कानिका आठवें नंबर पर है.

सिप्री के मुताबिक इराक और अफगानिस्तान युद्घ का हथियारों की खरीद बिक्री पर मिलाजुला असर पड़ा है. सिप्री में संघर्ष, हथियार, अस्त्र नियंत्रण सहित कई विषयों पर रिसर्च किया जाता है. इसकी स्थापना 1066 में की गई थी. संस्थान की रिपोर्ट में हथियारों की बिक्री में सैनिक साजोसामान, सैन्य सेवाएं. शामिल है. 1990 से यह हथियारों का उत्पादन करने वाले 100 देशों की सूची जारी करती है जिसमें चीन शामिल नहीं है क्योंकि वहां से आंकड़े नहीं मिलते.

रिपोर्टः एएफपी/आभा एम

संपादनः एन रंजन