चिड़ियाघर या मौत का बाड़ा
इंडोनेशिया के चिड़ियाघर से निकले तस्वीरों ने एक बार दुनिया को झकझोर दिया है. एक नजर मौत का बाड़ा कहे जाने वाले इन चिड़ियाघरों पर.
कंकाल में तब्दील होते भालू
इस तस्वीर में पर्यटकों से गुहार लगाते भालू नजर आ रहे हैं. एक की तो पसलियां भी साफ दिखाई पड़ रही हैं. रिपोर्टों के मुताबिक भालू जान बचाने के लिए अपना ही मल तक खा रहे हैं.
आरोपों का खंडन
तीखी आलोचना के बाद चिड़ियाघर के अधिकारियों को सफाई देनी पड़ी. कंजर्वेशन फाउंडेशन के प्रवक्ता ने कहा कि दुबले पतले होने का मतलब यह नहीं है कि भालू बीमार है. उन्होंने दावा किया भालुओं को पर्याप्त भोजन दिया जा रहा है.
दुनिया भर में बदनामी
भूख से छटपटाते भालुओं की तस्वीरें और वीडियो सामने आने के बाद इंटरनेट पर एक अभियान भी छिड़ चुका है. अभियान में दो लाख से ज्यादा लोग दस्तखत कर चुके हैं. अभियान के तहत चिड़ियाघर के कर्मचारियों पर कार्रवाई करने की मांग की जा रही है.
पहला मामला नहीं
इंडोनेशिया की चिड़ियाघरों में वन्य जीवों की दुर्दशा का यह पहला मामला नहीं है. बीते साल सुमात्रा नस्ल की एक हथिनी यानी की मौत हुई थी. जांच में पता चला कि हथिनी को कई चोटें लगी थीं, जिनका इलाज नहीं किया गया. चिड़ियाघर ने हर बार की तरह तब भी आरोपों का खंडन किया.
सुराबाया में बदत्तर हालत
2010 में सुराबाया के चिड़ियाघर में भी कई जानवरों की मौत हुई. एक जांच के मुताबिक 2006 से 2014 के बीच इंडोनेशिया के चिड़ियाघरों में 1,800 जानवर मारे गए. इनमें एक सुमात्रन टाइगर भी था.
लापरवाही की इंतेहा
30 साल का यह जिराफ जू के अंदर प्लास्टिक खाने से मरा. डॉक्टरों को उसके पेट से 20 किलोग्राम प्लास्टिक मिला. 2014 में एक छोटी से जगह में कैद 45 ड्रैगन आपस में लड़ मरे. एक यूनिवर्सिटी द्वारा किये गए ऑडिट में चिड़ियाघर मैनेजमेंट को खराब प्रबंधन के लिए जिम्मेदार माना गया.
दबाव का असर
विवादों के चलते अगर कहीं सुधार आया तो वह जगह सिर्फ सुराबाया का चिड़ियाघर है. शहर के मेयर के दखल के बाद वहां हालात कुछ बेहतर हुए हैं. लेकिन धूमिल हो चुकी छवि को सुधरने में अभी काफी समय लगेगा.