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चार साल बाद मोदी को याद आए गरीब

मारिया जॉन सांचेज
१ फ़रवरी २०१८

केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कॉरपोरेट जगत को काफी हद तक निराश किया, आयकर देने वाले नौकरीपेशा मध्य वर्ग को कुछ लॉलीपॉप पकड़ाए और गरीबों को राहत देने वाली कई महत्वाकांक्षी योजनाओं की घोषणा की.

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Indien Premier Minister Narendra Modi
तस्वीर: Reuters

लगभग चार वर्ष सत्ता में रहने के बाद पहली बार नरेंद्र मोदी सरकार को गरीबों की सुध आयी है. दरअसल इस साल आठ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और अगले वर्ष की शुरुआत में लोकसभा चुनाव होंगे. अगले साल की पहली फरवरी को पूर्ण बजट के बजाय कामचलाऊ बजट ही पेश किया जाएगा. इसलिए इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं कि सरकार ने लोकलुभावन बजट पेश करने की कोशिश की है और अन्ततः वह ग्रामीण क्षेत्र और आर्थिक दृष्टि से सबसे निचले पायदान पर खड़े व्यक्ति से मुखातिब हुई है.

इस बार बजट में क्या खास है, जानिए

बजट में सबसे महत्वाकांक्षी घोषणा दस करोड़ गरीब परिवारों के लिए पांच लाख रुपये का स्वास्थ्य बीमा कराने के बारे में है जिसका पूरा-पूरा प्रीमियम सरकार देगी. जैसा कि जेटली ने कहा, दस करोड़ परिवारों का अर्थ है पचास करोड़ लोग, यानी यह योजना देश की कुल आबादी के चालीस प्रतिशत लोगों को प्रभावित करेगी. इसमें कोई शक नहीं कि यदि इस योजना पर सही ढंग से अमल हो गया तो गरीब परिवारों को बहुत राहत मिलेगी क्योंकि पिछले कई दशकों के दौरान सभी सरकारों ने ऐसी नीतियां अपनाईं जिनके कारण स्वास्थ्य सेवाएं गरीब की पहुँच के बाहर होती गईं.

बजट में जब भी कटौती की जाती थी, कुल्हाड़ा सबसे पहले शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्रों पर ही पड़ता था. लेकिन ओबामाकेयर की तर्ज पर जेटली द्वारा घोषित यह योजना इस स्थिति में बदलाव लाने की महत्वपूर्ण कोशिश है जिसकी सराहना होनी चाहिए. लेकिन इसके साथ ही इस कड़वी सचाई को भी नहीं भूला जा सकता कि पिछले बजट में भी मोदी सरकार ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा योजना की घोषणा की थी और प्रत्येक परिवार के लिए एक लाख रुपये आवंटित किये थे. लेकिन यह योजना अधिकांशतः कागजों पर ही धरी रह गयी. इसलिए ताजा घोषणा के बारे में भी कुछ सवाल उभरते हैं.

जिला-स्तर के अस्पतालों तक की हालत बहुत बुरी है, छोटे कस्बों और गांवों की तो बात ही क्या की जाए. ऐसे में जब अस्पतालों में बुनियादी ढांचागत सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं, दवाओं और डॉक्टरों का अकाल है, तब इस योजना का लाभ गरीब तक कैसे पहुँच पाएगा? क्या इसे भुनाने के लिए निजी क्षेत्र और बड़े कॉरपोरेट अस्पताल नहीं दौड़ पड़ेंगे? दूसरे, इस योजना के लिए धन कहां से आएगा? ग्रामीण क्षेत्र में चार करोड़ घरों को बिल्कुल मुफ्त बिजली उपलब्ध कराई जाएगी. इसके लिए भी सोलह हजार करोड़ रुपयों की जरूरत होगी. उसे कैसे जुटाया जाएगा? फसलों के अधिकतम समर्थन मूल्य में भी बढ़ोतरी करके उसे लागत का डेढ़ गुना कर दिया गया है.

भारतीय जनता पार्टी और कॉरपोरेट जगत ने मनमोहन सिंह सरकार की मनरेगा जैसी योजनाओं को फिजूलखर्ची बताकर उनकी आलोचना की थी. लेकिन अब भाजपा खुद इसी तरह की योजनाओं का सहारा ले रही है. जाहिर है कि नरेंद्र मोदी जानते हैं कि चुनाव के साल में उद्योगपतियों के साथ ज्यादा नजदीकी दिखाना उन्हें भारी पड़ सकता है. इसलिए उनका जोर अपनी गरीब-समर्थक छवि बनाने पर है. इस बजट की सर्वप्रथम प्राथमिकता ग्रामीण क्षेत्र और कृषि और दूसरी प्राथमिकता स्वास्थ्य है. जिस तरह अर्जुन की नजर केवल घूम रही मछली की आंख पर थी, उसी तरह जेटली की नजर गरीबों के वोट पर है.