चांसलर मैर्केल की पार्टी सीडीयू में सक्रिय हैं स्रिता
२२ सितम्बर २०१७स्रिता हाइडे दो दशक से ज्यादा से जर्मनी में रह रही हैं और राजनीति में सक्रिय होने के बाद उन्होंने इस साल हुए स्थानीय चुनावों में सीडीयू पार्टी के टिकट पर माइन किंसिग जिले के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी के पद का चुनाव भी लड़ा था.भारत के पश्चिम बंगाल से आने वाली स्रिता हाइडे बतौर इंडो-यूरोपीय बिजनेस कंसल्टेंट के रूप में काम करती है. स्रिता हाइडे के साथ डॉयचे वेले की बातचीत के कुछ अंश
भारत के पश्चिम बंगाल से निकल कर जर्मन राजनीति तक की आपकी यात्रा कैसी रही?
जब मैं कोलकाता के स्कूल में पढ़ा करती थी तब से ही मेरा सपना राजनीति में जाने का था. आज मुझे जर्मनी आये 23 साल हो चुके हैं, और अब यह मेरे लिए मेरा घर है. राजनीति में जाने का मकसद मेरे लिए सामाजिक जिम्मेदारियों को निभाना रहा है और मैंने अपनी इस जिम्मेदारी को उठाया है. मैं 2009 में सीडीयू की सदस्य बनी और पूरी तरह से सक्रिय हो गई. 2011 से मैंने बतौर डिस्ट्रिक्ट पार्लियामेंटेरियन काम करना शुरू किया. साथ ही राज्य और स्थानीय स्तर पर कई बोर्डों से जुड़ी और उनके साथ सक्रिय रूप से काम किया. सीडीयू में शामिल होने की बात करूं तो पार्टी ने शुरूआत से ही मेरा स्वागत किया. मुझे लगता है कि ये आपके व्यक्तित्व पर भी निर्भर करता है कि आपको सामने वाले कैसे देखते हैं. मैं भी काम करना चाहती थी, चुनौतियां स्वीकार करना चाहती थी. मुझे लगता है कि ये नजरिया दुनिया भर के उन सभी लोगों पर लागू होता है जो राजनीति में शामिल होकर समाज के लिए कुछ करना चाहते हैं.
सीडीयू पारंपरिक विचारधाराओं को मानने वाली एक रूढ़िवादी पार्टी है, लेकिन शरणार्थी मसले पर पार्टी का रुख कुछ अलग नजर आता है. पार्टी शरणार्थियों के बीच काफी लोकप्रिय है. बतौर सीडीयू नेता आप इस बारे में क्या सोचती हैं?
मैं आपसे सौ फीसदी सहमत नहीं हूं. सांस्कृतिक मतभेदों के बावजूद सीडीयू सभी का स्वागत करती है. रूढ़िवादी होने का मतलब कतई यह नहीं है कि पार्टी विदेशियों, शरणार्थियों या किसी अन्य संस्कृति के खिलाफ है. मेरी समझ कहती है कि सीडीयू एक पांरपरिक, आधुनिक विचारों को लेकर चलने वाली ओपन और कंजरवेटिव पार्टी है. पारंपरिक और आधुनिक होने के कारण हम समय के साथ सही बदलावों को अपनाने में सक्षम रहे हैं. पांरपरिक और आधुनिक विचारों के संतुलन के चलते ही हम नई उभरती हुई परिस्थितियों में स्वयं को ढाल पाए.
अक्सर चांसलर अंगेला मैर्केल की लोकप्रियता की बात की जाती है. मैर्केल महिलाओं के बीच बेहद ही लोकप्रिय है. पार्टी की महिला कार्यकर्ता होने के नाते आपकी इस बारे में क्या राय है?
अंगेला मैर्केल बतौर नेता न सिर्फ महिलाओं में लोकप्रिय हैं बल्कि वह सभी उम्र, वर्ग के लोगों के बीच लोकप्रिय हैं. वह भी न सिर्फ जर्मनी में बल्कि पूरी दुनिया में उन्हें पसंद किया जाता है. वह महिलाओं के लिए वाकई प्रेरणा और ताकत का स्रोत हैं. भारत और अन्य देशों की ही तरह जर्मनी में भी महिलाओं को निजी और सरकारी क्षेत्र में बराबरी पाने के लिए अब भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है. काफी कुछ हासिल कर लिया गया है लेकिन अभी बहुत कुछ हासिल किया जाना बाकी है. अंगेला मैर्केल इसलिए भी पॉपुलर हैं क्योंकि वह जमीन से जु़ड़ी नेता हैं और उनके व्यक्तित्व में सच्चाई नजर आती है. निजी तौर पर उनके साथ काम करके मैंने ये उनसे सीखा कि किसी इंसान का मजबूत और जमीन से जुड़ा होना कितना अहम होता है.
पिछले 12 सालों में मैर्केल के चांसलर बनने के बाद से अब तक महिलाओं की स्थिति में क्या सुधार और बदलाव आया है?
चांसलर सभी के लिए बराबर हैं, फिर चाहे वह महिला हो, पुरूष हों या बच्चे. इस पद की जिम्मेदारी समाज के सभी तबके के लिए समान ही है. बेशक वह सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं. इसके अलावा एक बात जो साफ नजर आती है कि उनके चांसलर बनने के बाद से महिला अधिकारों पर होने वाली बहस और भी सशक्त हुई है. साल 2013 से कंपनियों के गैर-कार्यकारी बोर्ड में महिला आरक्षण को लागू किया गया. इसके साथ ही वेतन पारदर्शिता अधिनियम और मातृत्व संरक्षण कानून में संशोधनों को भी इसी दौर में अपनाया गया. सीडीयू में एक वूमेन काउंसिल भी है. काउंसिल के बोर्ड सदस्य महिला मुद्दों पर बेहद ही सक्रिय और मुखर हैं. ये काउंसिल शहर, जिला, राज्य और संघीय स्तर पर काम करती है. इसके अलावा हम परिवार, बाल कल्याण, अर्थशास्त्र और अन्य पेशे पर ध्यान केंद्रित कर कार्यकारी समूहों के रूप में काम करते हैं. यहां हम महिलाओं के साथ काम करते हैं और अपने मसलों को रखने के लिए उन्हें एक मंच प्रदान करते हैं और उनकी समस्या पर बात करते हैं. मैं स्वयं हेसेन में राज्य स्तरीय "बिजनेस एंड प्रोफेशनल ग्रोथ फॉर वूमेन" वर्किंग ग्रुप की अध्यक्ष हूं.