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चंद्रयान मिशन पर संकट

१८ जुलाई २००९

भारत के चांद अभियान को शुक्रवार को ज़बरदस्त झटका लगा, जब चंद्रयान मिशन में तकनीकी ख़राबी आ गई. इससे कई परीक्षणों में दिक्कत आ रही है और ख़तरा यहां तक बन गया है कि अभियान को वक्त से पहले ही ख़त्म करना पड़ सकता है.

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मुश्किल में मिशन मूनतस्वीर: AP

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान यानी इसरो के मुखिया जी माधवन नायर ने इस ख़ामी की जानकारी दी. माधवन नायर ने कहा, "दुर्भाग्य से पिछले हफ़्ते हमने एक अहम सेंसर खो दिया. यह स्टार सेंसर था." चंद्रयान-1 अभियान दो साल के लिए निर्धारित है.

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जी माधवन नायर और इसरो के दूसरे वैज्ञानिक मुख्यालय मेंतस्वीर: AP

उन्होंने बताया कि अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने इस ख़ामी को दूर करने की कोशिश की और दो दूसरे उपकरणों की मदद से यान को सही जगह पहुंचाने की कोशिश की. इसरो के प्रवक्ता जी सतीश ने कहा, "हमें नहीं पता कि हम कब तक इस कार्यक्रम को जारी रख पाएंगे. चंद्रयान-1 को दो साल के लिए तैयार किया गया था लेकिन इसका कार्यकाल घटाया जा सकता है." भारत ने चांद मिशन पर अपना यान चंद्रयान-1 पिछले साल 22 अक्तूबर को भेजा था.

माधवन नायर ने बताया कि अब तक का चंद्रयान का मिशन बेहद अच्छा रहा और इसरो ने सभी ज़रूरी आंकड़े भी हासिल कर लिए हैं. उन्होंने कहा, "हमने लगभग वह सभी आंकड़े हासिल कर लिए हैं, जिन्हें हम पाना चाहते थे." उन्होंने बताया कि चंद्रयान-1 का ज़्यादातर काम पूरा हो चुका है. फिर भी तकनीकी गड़बड़ी को भारत के चांद मिशन के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है.

इस तकनीकी गड़बड़ी का मतलब यह है कि यान के अंदर किए जाने वाले 10 परीक्षणों को बाद के लिए टालना होगा और अभी चल रहे एक परीक्षण को बीच में ही रोकना होगा. इस वक्त लूनर लेज़र रेन्जिंग इन्सट्रूमेंट (एलएलआरआई) नाम का अत्यंत महत्वपूर्ण परीक्षण चल रहा है.

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भारत के यान चंद्रयान-1 ने भेजी चांद के सतह की यह तस्वीरतस्वीर: AP

एलएलआरआई को सटीक ऊंचाई नापने के लिए तैयार किया गया था, जिसमें ज़्यादा से ज़्यादा पांच मीटर कम-बेशी की गुंजाइश थी. यह 100 किलोमीटर की ऊंचाई पर काम कर सकता है. इस यान को चांद से इतनी ही दूरी की कक्षा में चांद का चक्कर लगाना था. हालांकि 19 मई को इसरो ने इसकी कक्षा को 200 किलोमीटर तक बढ़ा दिया था.

चंद्रयान के सफल प्रक्षेपण के साथ भारत दुनिया के गिनती के देशों में शामिल हो चुका है, जिन्होंने चांद अभियान में हिस्सा लिया है. इससे पहले चीन ने भी अक्तूबर 2007 में अपना चांद अभियान शुरू किया था. काम पूरा होने के बाद इस साल मार्च में उसे पृथ्वी पर से ही नियंत्रित कर चांद पर टकरा कर तोड़ दिया गया. जापान ने भी 2007 में चांद अभियान शुरू किया और उसका यान भी पिछले महीने टूट कर चांद पर बिखर गया.

इसरो के वैज्ञानिकों ने दो साल का कार्यकाल ख़त्म होने पर चंद्रयान-1 का भी कुछ ऐसा ही अंत सोच रखा था. लेकिन अब लगता है कि मिशन का अंत तय वक्त से पहले करना होगा क्योंकि इसरो के मुखिया माधवन नायर का कहना है कि चंद्रयान से वे सभी आंकड़े हासिल कर लिए गए हैं, जो भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान को चाहिए थे.

चंद्रयान-1 अपने आप में पहली तरह का मिशन था, जिसमें अंतरराष्ट्रीय भागीदार भी शामिल हुए थे. अभियान में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ने भी हिस्सा लिया. तकनीकी ख़राबी के बाद अगले महीने के आख़िर तक अंतरराष्ट्रीय भागीदारों के साथ इसरो की बैठक हो सकती है, जिसमें आगे की रणनीति पर चर्चा की जाएगी.

बताया जाता है कि पिछले साल चांद पर छोड़े जाने के महीने भर के अंदर ही इसमें तकनीकी गड़बड़ी आ गई, जब यान के अंदर का तापमान अचानक बहुत बढ़ गया. इसके बाद इसरो के वैज्ञानिकों को कुछ प्रयोग बंद करने पड़े ताकि इसका तापमान कम किया जा सके.

रिपोर्टः पीटीआई/ए जमाल

संपादनः महेश झा