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घुसपैठिए पेड़ पौधे खतरनाक

२२ दिसम्बर २०१०

दूसरे देशों से आने वाले पेड़ पौधे स्थानीय प्रजातियों के लिए खतरनाक साबित होते हैं. यह बात एक यूरोपीय शोध में सामने आई है. इस तरह के घुसपैठिए पेड़ पौधों, खरपतवार और प्राणियों से यूरोप को सालाना 16 अरब डॉलर का नुकसान.

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तस्वीर: Migas

जब ये पेड़ पौधे या प्राणी गलती से जहाज में सवार हो कर किसी दूसरे देश पहुंच जाते हैं तब तो पता नहीं चलता लेकिन 15-20 साल बाद इनका बुरा प्रभाव दिखाई देना शुरू होता है.

इस तरह से घुसपैठ करने वाली प्रजातियां नई जगह पर वहां की पारिस्थितिकी को नुकसान पहुंचा सकती है और उस इलाके की प्रजातियों को खत्म कर सकती है. यह शोध दूसरे महाद्वीपों के लिए भी उतना ही सही है. इस शोध में एलियन प्रजातियों की 28 यूरोपीय देशों में तुलना की गई. इन एलियन प्रजातियों में अमेरिका की गाजर घास, कनाडा के बत्तख, जापान के हिरनो की तुलना की गई.

शोध के मुताबिक यह पता लगने में सालों लग जाते हैं कि कौन सी प्रजाति स्थानीय प्रजातियों के लिए खतरनाक साबित हो सकती है. 1900 में जो प्रजातियां कहीं से यूरोप में आ गई थीं उनका प्रभाव अब देखा जा सकता है लेकिन 2000 में आई हुई प्रजातियों के असर का आकलन नहीं किया जा सकता.

अमेरिका के नेशनल अकादमी ऑफ साइंसेस (पीएएनएस) की पत्रिका में प्रकाशित शोध में कहा है कि असर पता लगने में इतना समय लगने का मतलब है कि भविष्य की समस्या के बीज बोए जा चुके हैं. नई जगहों पर खुद को बसाने में चिड़ियाएं और कीट पतंगे सबसे जल्दी सफल हुए.

19वीं सदी में उत्तरी अमेरिका से यूरोप पहुंची गाजर घास के पराग कणों से हे फीवर होता है. वहीं से यूरोप में ब्लैक लोकस्ट पेड़ आया. ये यूरोप की पारिस्थितिकी को नुकसान पहुंचा सकते हैं क्योंकि इनकी नाइट्रोजन स्टोर करने की क्षमता बहुत ज्यादा होती है. 20वीं और 21वीं सदी में भी ज्यादा यात्राओं से इस तरह की मुश्किल बढ़ सकती हैं. इसे नियंत्रण में करना तब ही संभव है जब आप कॉफी या अनाज का निर्यात पूरी तरह से बंद कर दें या उस पर कड़े नियम लागू कर दें.

ऑस्ट्रिया, न्यूजीलैंड, चेक गणराज्य, जर्मनी, स्विट्जरलैंड, स्पेन, इटली और फ्रांस के शोधकर्ताओं ने इस शोध में हिस्सा लिया है. विएना यूनिवर्सिटी के श्टेफान डुलिंगर कहते हैं कि इस समस्या पर अभी से काम करना चाहिए क्योंकि आने वाले समय में यह और मुश्किल हो जाएगी.

डुलिंगर चेतावनी देते हैं कि यूरोप को उन जानवरों और पौधों की प्रजातियों पर भी नियंत्रण लगाना चाहिए जो अभी तक खतरनाक नहीं लग रहीं क्योंकि बढ़ते तापमान के कारण प्रजातियों के व्यवहार में भी बदलाव आता है.

गाजर घास से हुई परेशानी को भारत में कौन नकार सकता है.

रिपोर्टः एजेंसियां/आभा एम

संपादनः ए कुमार