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घुले मिले पर अलग थलग हैं अमेरिका के मुसलमान

४ अगस्त २०११

11 सितंबर 2001 के बाद से अमेरिका में मुसलमानों की छवि खराब हुई है. अमेरिकी समाज में समेकित होने के बावजूद वे अखबारों की नकारात्मक सुर्खियां का सबब बने हुए हैं. इसका सामना वे खुलेपन और समाज कल्याण के साथ कर रहे हैं.

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Nur für Projekt 9/11: Spurensuche USA

"एफबीआई, वित्त मंत्रालय, विदेश मंत्रालय और दूसरे अन्य अपराध निरोधक दफ्तरों के साथ हमारे अच्छे संबंध हैं." एडम्स सेंटर की वेबसाइट पर आपको यह पढने को मिलेगा. एडम्स यानी 'ऑल डलेस एरिया मुस्लिम सोसाइटी'. यह सोसाइटी पांच हजार से अधिक मुस्लिम परिवारों के लिए एक धार्मिक केंद्र है. एडम्स के अनुसार यह अमेरिका में मुसलमानों का सबसे बड़ा संगठन है.

संगठन के प्रवक्ता रिजवान जाका बताते हैं, "हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि लोगों को यह बात पता हो कि हम कौन हैं और यह कि हम चरमपंथियों और आतंकवादियों के खिलाफ हैं." इसीलिए संगठन की वेबसाइट पर खास तौर से लिखा गया है कि यहां महिलाओं को बराबर का हक है, दूसरे धर्मों के लोगों के साथ मिल कर काम करने को यहां महत्व दिया जाता है और दान उपकार के काम के लिए प्रोत्साहित किया जाता है.

Rizwan Jaka, Pressesprecher des ADAMS-Zentrums. Er ist stolz auf die Auszeichnungen, die der Imam der Gemeinde östlich der US-Hauptstadt Washington, D.C., erhalten hat. Man legt Wert auf ökumenische Arbeit und soziale und Freizeit-Angebote nicht nur für Muslime. ***Nur für den Beitrag "Wir sind auch Amerikaner" zu verwenden* Fotografin: Christina Bergmann Sterling, Virginia, USA 25.5.2011
रिजवान जाका एडेम्स केंद्र में प्रेस प्रवक्ता हैंतस्वीर: DW

इसकी वजह है. अमेरिका की राजधानी वॉशिंगटन में स्थित इस संगठन को 11 सितंबर 2001 के बाद से लोगों की नफरत का सामना करना पड़ा है. हमलों की शाम को ही संगठन की पुरानी मस्जिद में चोरी की गई. संगठन के लिए नई ईमारत के कंस्ट्रक्शन साइट पर लगे बोर्ड को जला दिया गया. लेकिन जाका यह भी कहते हैं कि उस समय अन्य धार्मिक संगठनों के लोगों ने फौरन एकजुटता दिखाई, वहां पहरा दिया और बाहर निकलने में डर लगने पर महिलाओं के साथ जाने की पेशकश की.

मुसलमानों के साथ हिंसा

रॉबर्ट मारो भी रिजवान जाका की तरह एडम्स सेंटर के संचालन से जुड़े हैं. वह कहते है कि ग्राउंड जीरो के करीब इस्लामी सेंटर बनाने की बहस राजनीति से प्रेरित है, "यह वोट बटोरने का एक आसान तरीका है." मारो मानते हैं कि फ्लोरिडा में एक पादरी द्वारा कुरान जलाने की धमकी भी केवल एक पब्लिसिटी स्टंट ही थी. वो कहते हैं कि इसमें मीडिया भी निर्दोष नहीं है.

इस सब के बावजूद मारो आशावान हैं. वे मानते हैं कि आज नहीं तो कल अमेरिकी मुसलमान भी समाज में पूरी तरह घुल मिल जाएंगे, वैसे ही जैसे कैथोलिक, इटली या आयरलैंड से आए लोग पिछली सदी में घुल मिल गए थे. मारो वह समय याद करते हैं जब जॉन एफ केनेडी के रूप में अमेरिका को पहली बार एक कैथोलिक राष्ट्रपति मिला था. उस समय भी यह चर्चा हुई थी कि केनेडी की पहली निष्ठा पोप के लिए होगी या अमेरिका के लिए.

फिर भी वह समय अभी भी बहुत दूर लगता है जब अमेरिका में किसी के कैथोलिक या मुस्लिम होने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा. समीरा हुसैन अभी भी अपनी कार के सामने फोटो नहीं खिंचवाना चाहतीं. फलीस्तीनी मूल की समीरा समाज सेविका हैं और अपने परिवार के साथ राजधानी वॉशिंगटन के करीब मैरीलैंड के गेथर्सबर्ग में रहती हैं. उनके बुरे अनुभव रहे हैं और इसकी शुरुआत पहले खाड़ी युद्ध के बाद से ही हो गई. अपने तजुर्बों के बारे में समीरा बताती हैं, "शुरुआत में तो उन्होंने हमारी गाड़ियों को नुकसान पहुंचाया, पहिए पंचर कर दिए, घर के दरवाजे तोड़ दिए, हमारे पौधे उखाड़ दिए और हमारे ऊपर कूड़ा और मरे हुए पंछी फैंके." समीरा बताती हैं कि उनके बच्चों को भी हर रोज स्कूल में तंग किया जाता था और जब वे घर वापस आते तो पूरा रास्ता लोग उनका पीछा करते. 11 सितंबर 2001 के हमलों के बाद मुश्किलें और बढ़ गईं. अचानक उनके दफ्तर में भी उनके साथ भेदभाव होने लगा.

Mittwochs wird Badminton gespielt in der Mehrzweckhalle des ADAMS-Centers in Sterling, Virginia, am Freitag wird an der gleichen Stelle gebetet. Frauen und Männer treffen sich in demselben Raum, nur durch eine hüfthohe Absperrung getrennt. ***Nur für den Beitrag "Wir sind auch Amerikaner" zu verwenden* Fotografin: Christina Bergmann Sterling, Virginia, USA 25.5.2011
वर्जिनिया में एडेम्स केंद्र में बैडमिंटन खेलते हुए कुछ युवा. यही शुक्रवार को जुमे की नमाज होती है.तस्वीर: DW

इस्लाम को लेकर जागरुकता

समीरा ने अपने खिलाफ हुई ज्यादती का जवाब दिया, लेकिन एक अलग अंदाज में. उन्होंने इस्लाम के बारे में जागरुकता फैलाना शुरू किया. पेरंट्स एसोसिएशन में, स्कूलों में और अपने शहर में वह पहले से ज्यादा सक्रिय हो गईं. वह स्कूली बच्चों को बताया कि वह हिजाब क्यों पहनती हैं. वह कहती हैं कि यह जागरुकता ही उनका हथियार है, "मैं लोगों को ये बातें बताना चाहती हूं और बच्चों से अच्छी शुरुआत और कहां हो सकती है." वह मानती हैं कि यदि बच्चे उनके धर्म और उनकी तहजीब को समझेंगे, तो माता पिता की भी सोच में बदलाव आएगा. समीरा कहती हैं कि उन्हें अपनी मेहनत का फल मिला है. 2002 में उन्हें अपने इलाके में असहिष्णुता के खिलाफ काम के लिए सराहा गया. उनके इलाके के टाउनहॉल में एक कांसे की मूर्ति के नीचे उनका नाम खुदा हुआ है.

तुफेल अहमद का भी मानना है कि अमेरिकी मुसलमानों को समाज में पूरी तरह घुलने मिलने के लिए सामाजिक रूप से और सक्रिय होना चाहिए. तुफेल का जन्म भारत में हुआ, परवरिश पाकिस्तान में और 1973 में वह अमेरिका आ गए. वह बताते हैं, "भारतीय और पाकिस्तानी लोगों के बारे में अक्सर यह सोचा जाता है कि वे बड़े घरों में रहते हैं, और गरीबों के बारे में सोचते भी नहीं हैं." तुफेल संगठन के सब से अधिक उम्र के व्यक्ति हैं. 11 सितंबर 2001 के हमलों के बाद उन्होंने सक्रिय होने का फैसला किया. पहले उन्होंने विचार विमर्श के लिए कई बैठकों का आयोजन किया और फिर समाज सेवा में जुट गए.

देश के दूसरे हिस्सों से बेहतर हालात

2001 से अमेरिका की मॉंन्टगोमरी काउंटी में मुस्लिम समुदाय गरीबों की मदद का सामान इकट्ठा कर रहा है. तुफेल अहमद को भी यहां सुपरमार्केट के बाहर खड़े हो कर चंदा मांगने में शर्म महसूस नहीं होती. इस तरह हर साल हजारों किलो खाने पीने की चीजें इकट्ठा हो जाती हैं, जिन्हें फिर जरूरतमंदों में बांट दिया जाता है. तुफेल सोचते हुए कहते हैं, "इस बीच इस इलाके में अल्पसंख्यक अब बहुसंख्यक हो चुके हैं. लेकिन क्या आपका ध्यान इस तरफ गया है कि इलाके में सिर्फ गोरे ही समाज सेवा करते हैं?" तुफेल की पूरी कोशिश है कि आने वाले समय में यह बदल सके.

Samira Hussein lebt mit ihren vier Kindern in Gaithersburg, Maryland. Ihr Wagen wurde mehrfach zerstört, ihre Kinder hatten Angst. Sie setzt sich für die Gemeinde ein. Sie ist Palästinenserin. ***Nur für den Beitrag "Wir sind auch Amerikaner" zu verwenden* Fotografin: Christina Bergmann Sterling, Virginia, USA 25.5.2011
समीरा हुसैन की गाड़ी को कई बार नुकसान पहुंचाया गया, उनके बच्चे डर में जीते हैं.तस्वीर: DW

वालेद हाफीज मुसलमानों के सामाजिक संगठन 'मॉंन्टगोमरी काउंटी मुस्लिम फाउंडेशन' के सदस्य हैं. संस्था के तीन सौ से चार सौ सक्रिय सदस्य हैं. वह बताते हैं कि मॉंन्टगोमरी काउंटी में मुसलमानों के साथ वैसा भेद भाव नहीं होता जैसा अमेरिका में बाकी हिस्सों में होता है. सीरियाई मूल के हाफिज बीस साल तक जर्मनी में रहे हैं और पिछले दस सालों से अमेरिका में काम कर रहे हैं. वे बताते हैं, "इस इलाके में लोग बाकी जगहों के मुकाबले काफी जागरुक हैं. यदि आप टेक्सास या वेस्ट वर्जीनिया जाएं, तो आप देखेंगे कि वहां तो लोगों को यह भी नहीं पता कि सीरिया या जॉर्डन कहां पर हैं और 11 सितंबर 2001 के लिए कौन जिम्मेदार है."

हाफीज की तरह गुलेद कासिम सोमालिया से दस साल की उम्र में 1985 में मॉंन्टगोमरी काउंटी आए. कासिम ने हाल ही में मुस्लिम फाउंडेशन की अध्यक्षता संभाली है. उन्होंने अमेरिकी सेना में भी काम किया है. जब उनसे पूछा जाता है कि वह खुद को पहले मुस्लिम के तौर पर देखते हैं या अमेरिकी के तौर पर तो वे सबसे पहले कहते हैं, "आप एक ईसाई से यह बात कभी नहीं पूछेंगे, यह एक पेचीदा सवाल है." फिर वे कहते हैं, "मैं दोनों हूं." कासिम की पीढ़ी को यह कहते में कोई परेशानी नहीं होती, "मैं अमेरिकी हूं और मुस्लिम भी.. या मुस्लिम और अमेरिकी." वो जोर देकर कहते हैं, "इसे किस क्रम में कहा जा रहा है, उस से कोई फर्क नहीं पड़ता."

रिपोर्ट: क्रिस्टीना बैर्गमन/ईशा भाटिया

संपादन: प्रिया एसेलबॉर्न

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