घुड़दौड़ में पिसते मासूम
१२ दिसम्बर २०१३सात साल का आडे नकाब और हेलमेट पहन कर अगली दौड़ के लिए तैयार हो रहा है. भले ही उसकी उम्र कम हो लेकिन वह पेशेवर घुड़सवार है. आंख पर लगी चोट इस बात का सबूत भी देती है. हाल ही में वह घोड़े से गिर गया था जिसके कारण उसकी आंख सूज गयी. लेकिन चोट आडे को घुड़सवारी से रोक नहीं सकी. नंगे पैर ही वह घोड़े पर चढ़ता है. इंडोनेशिया में घुड़सवारी के दौरान बच्चे जूते नहीं पहनते. आखिर जूते भारी भी तो होते हैं और दौड़ के लिए बच्चे का हल्का होना जरूरी है.
घुड़सवारी या बाल मजदूरी?
डॉयचे वेले से बातचीत में आडे के पिता ने बताया कि वह चार साल की उम्र से ही पेशेवर जॉकी के रूप में काम कर रहा है, "वह साढ़े तीन साल का था जब हमने उसे ट्रेनिंग देना शुरू कर दिया. अब वह सात साल का है और अच्छी सवारी कर लेता है."
इसी बीच एक आदमी वहां आता है और आडे की बांह पकड़ कर कहता है, "मैं तुम्हें इस्तेमाल करना चाहता हूं." इस आदमी ने आडे को इसलिए चुना है क्योंकि वह छोटा है. डेढ़ मीटर ऊंचे घोड़े पर चढ़ने में उसके पिता उसकी मदद करते हैं. आडे पहली बार इस घोड़े की सवारी करेगा और वह भी बिना जीन के.
दौड़ शुरू होती है और आडे घोड़े की गर्दन से चिपका रहता है. फिनिश लाइन पर आकर जब घोड़ा रुकता है तो उसके पिता की खुशी देखते बनती है. आडे दौड़ में दूसरे स्थान पर रहा और उसने 50,000 इंडोनेशियाई रुपये (करीब पांच डॉलर) कमाए हैं.
आडे के लिए यह दिन की तीसरी दौड़ थी, "मैं थक गया हूं", वह हल्की सी आवाज में कहता है. थकावट दूर करने के लिए उसे कुछ देर का आराम मिलेगा, लेकिन इस दौरान एक और रेस उसके इंतजार में रहेगी.
परंपरा की दुहाई
इंडोनेशिया में वैसे तो पंद्रह साल से कम की उम्र के बच्चों का काम करना गैरकानूनी है, लेकिन घोड़ों की दौड़ आयोजित करने वाले उम्बु तांबा को इसमें कुछ गलत नहीं दिखता. उनका कहना है कि यह परंपरा है जो सालों से चली आ रही है, इसलिए इसमें कानून के उल्लंघन जैसा कुछ भी नहीं. तांबा खुद भी बचपन में जॉकी रह चुके हैं. जब डॉयचे वेले ने उनसे पूछा कि क्या बच्चों से जबरन भी घुड़सवारी कराई जाती है तो उन्होंने खीझ कर कहा, "जो भी ये बातें फैला रहा है, वह बस कुछ गड़बड़ करना चाहता है. हम यहां किसी बच्चे से कोई जबरदस्ती नहीं करते."
आडे की मां बताती है कि उसकी और उसके नौ साल के भाई एनिड की कमाई से ही घर चलता है, "बच्चे अपना काम समझते हैं. जब स्कूल में उनसे पूछा जाता है कि घुड़सवारी की वजह से तुम स्कूल क्यों छोड़ते हो, तो वे कहते हैं कि हम नहीं जाएंगे तो मां का ख्याल कौन रखेगा और बाकी के भाई बहनों को कौन पालेगा." आडे की मां की मानें तो हफ्ता भर दौड़ में हिस्सा लेने के बाद वह करीब 1000 डॉलर कमा लेता है. इंडोनेशिया में हफ्ते का औसत वेतन केवल 50 डॉलर के बराबर है.
चोटों की आदत
लंच ब्रेक खत्म हुआ और आडे एक बार फिर तैयार है. एक नई रेस के लिए, एक नए घोड़े के लिए और एक बार फिर जीतने के लिए. लेकिन इस बार घोड़ा कुछ ज्यादा ही तेज है. इतना कि वह अपना संतुलन खो बैठता है और रेलिंग से जा टकराता है. घोड़े से गिरने के कारण आडे के पैर में चोट आई है. क्या अब उसे अस्पताल ले जाया जाएगा? उसकी मां झल्ला कर कहती है, "हम कभी बच्चों को अस्पताल नहीं ले जाते. अगर टांग टूट गई है तो हम अपना देसी इलाज कर लेंगे. अस्पताल जाएंगे तो वे पैसा मांगेंगे. कहां से लाएं हम पैसा?"
आडे की किस्मत अच्छी है कि इस बार बस कुछ खरोंचें आई हैं. उसके पिता को यह देखने की आदत है, "कई बार तो दोनों टांगें टूट चुकी हैं." कुछ ही देर में आडे को फिर एक खरीदार मिल जाता है, लेकिन अब उसमें और हिम्मत नहीं बची. दिन में पहली बार वह दौड़ में हिस्सा लेने से मना कर देता है और मासूमियत से कहता है, "बस अब और नहीं."
जैसे जैसे दिन ढलता है बाकी के बच्चों को भी छुट्टी मिलने लगती है. कम से कम कल कल सुबह तक के लिए, वे आजाद हैं.
रिपोर्ट: रेबेका हेन्श्के/आईबी
संपादन: अनवर जे अशरफ