घर के बाहर घर
इसे घर तो नहीं, ठिकाना कहा जा सकता है. सीरिया से दूर जॉर्डन में अजराक शिविर बसाया गया है, अम्मान से 100 किलोमीटर दूर, जहां सवा लाख सीरियाई रहेंगे.
घर में स्वागत
जॉर्डन में यह तीसरा शरणार्थी शिविर है. समझा जाता है कि हर रोज कम से कम 600 सीरियाई सीमा पार कर जॉर्डन पहुंच जाते हैं.
कच्चा न पक्का
न तो सिर्फ तंबू और न हीं ये पक्के घर हैं. पूरा शिविर करीब 15 किलोमीटर के दायरे में फैला है, जहां आखिरी वक्त तक काम चलता रहा.
छत तो है
संघर्ष झेल रहे लोगों को कम से कम छत होने का भरोसा तो होगा. संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी के मुताबिक एक तंबू की कीमत है डेढ़ लाख रुपये.
उम्मीद की किरण
जॉर्डन के सामने दिक्कत है कि उसे हर रोज ऐसे सैकड़ों लोगों की चिंता करनी पड़ रही है, जो सीमा पार कर सीरिया से वहां पहुंच रहे हैं.
सुविधाओं से लैस
दूर से देखने पर यह शिविर एक गांव जैसा लगता है, जहां लोगों को हर तरह की जरूरी सुविधा देने की कोशिश की जा रही है.
चार हिस्सों में
चार बड़े मुहल्लों में बंटा होगा पूरा इलाका. यहां 50 बिस्तरों वाला रेड क्रॉस का अस्पताल होगा और दो शिफ्ट में चलने वाला स्कूल भी होगा.
थाना भी, टंकी भी
इस जगह को पूरी तरह आधुनिक सुविधाओं से लैस बनाने की कोशिश की गई है. यहां थाना और पानी की टंकी भी लगाई गई है.
चलेगा कैसे
लेकिन सवा लाख लोगों का घर कौन चलाएगा. वर्ल्ड फूड प्रोग्राम जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं इसमें मदद करेंगी.