1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

घट रही है एशियाई हाथियों की संख्या

२६ जुलाई २००९

एशियाई हाथियों की संख्या न केवल घट रही है बल्कि वह एक नई प्रजाति में विभाजित भी होने जा रही है. भारत से लाओस तक फैले जंगली हाथियों की संख्या पिछली कुछ सदियों से घटते-घटते केवल 50 हज़ार रह गई है.

https://p.dw.com/p/IxmP
घटकर पचास हज़ार हुई संख्यातस्वीर: picture-alliance/ dpa

जर्मनी में बर्लिन के चिड़ियाघर और वन्यजीव संबंधी लाइबनित्स शोध संस्थान के वैज्ञानिकों का कहना है कि एलेफ़ास माक्सीमुस कहलाने वाला एशियाई हाथी आनुवंशिक दृष्टि से विभाजन की दिशा में बढ़ रहा है. एशियाई हाथी की प्रजाति को जीवविज्ञान की भाषा में एलेफ़ास माक्सीमुस कहते हैं. इस समय इस प्रजाति के हाथी भारत से लेकर लाओस तक फैले हुए हैं, हालांकि पिछली कुछ सदियों से जंगली हाथियों की संख्या घटते-घटते अब केवल 50 हज़ार रह गयी है.

BdT Elefanten Festival in Laos 16.3.2008
भारत से लाओस तक फैले हैं जंगली हाथीतस्वीर: AP

जर्मनी में बर्लिन स्थित चिड़ियाघर और वन्यजीव संबंधी लाइबनित्स शोध संस्थान के वैज्ञानिकों का कहना है कि इन हाथियों का निवासक्षेत्र बंटता जा रहा है. इससे वे छोटे-छोटे समूहों में बंट कर अलग-थलग पड़ते जा रहे हैं. स्वाभाविक प्रजनन द्वारा अपनी संख्या बढ़ा नहीं पा रहे हैं और आनुवंशिक दृष्टि से अब प्रजाति-विभाजन की दिशा में बढ़ रहे हैं. वैज्ञानिकों की इस टीम के प्रमुख यौर्न्स फ़्रिकल ने हमें बतायाः

"हमने एशियाई हाथी के जीन-पूल के अध्ययन में पाया कि वे दो समूहों में विभाजित हो रहे हैं. माइटोकोंड्रिया वाले उनके डीएनए एक जैसे नहीं रहे. माइटोकोंड्रिया ही हर कोषिका का सूक्ष्म पावर हाउस होते हैं. उसके अपने डीएनए होते हैं और वे केवल मां की तरफ से अगली पीढ़ी को मिलते हैं. यानी, वे केवल डिंबाणु में होते हैं, शुक्राणु में नहीं."

डॉ. फ़्रिकल की टीम ने थाइलैंड में 78 हाथियों का आनुवंशिक अध्ययन किया और नर हाथियों के डीएनए को और भी बारीक़ी से देखाः

"नर डीएनए में हमने एक नयी संरचना बन रही देखी. ये अपने आप को बार-बार दुहराने वाली छोटी-छोटी न्यूक्लियोटाइड कड़ियां थीं--उदाहरण के लिए TA TA TA. हर डीएनए इस तरह की चार न्यूक्लियोटाइड ईंटों का बना होता है. उन के बार-बार पुनरावर्तन के पैटर्न के आधार पर भी नर हाथियों में ये अंतर हमने पाये."

एक ब्रिटिश वैज्ञानिक हाल्डन का प्रतिपादित एक सिद्धांत है कि जब एक प्रजाति दो प्रजातियों में विभाजित होने लगती है, तब सबसे पहले यह विभाजन उस लिंग में दिखायी पड़ता है, जिस में अलग-अलग लिंग-क्रोमोसोम होते हैं:

Elefanten Festival in Paklay, Laos
आनुवांशिक विभाजन भी बढ़ातस्वीर: AP

"स्तनपायियों में यह नर होते हैं. नरों में XY क्रोमोसोम होते हैं, मादाओं में केवल XX क्रोमोसोम. यानी, जब नर दो अलग-अलग समूहों में विभाजित होने लगते हैं, तो यह सूचक है कि एक पुरानी प्रजाति से अब दो नयी प्रजातियां बनने जा रही हैं."

डॉ. फ्रिक बताते हैं कि हाथियों के झुंड जब एक-दूसरे से इतना दूर हो जाते हैं कि उनके बीच कोई मेलजोल नहीं रह जाता, तब उन के जीन-पूल में विभाजन शुरू हो जाता है. इस दृष्टि से माना जाता है कि एशियाई हाथी की पहले से ही कई उप-प्रजातियां होनी चाहियें.

"ऐसा नहीं है कि एक प्रजाति तो ज्यों-की-त्यों रहती है और एक नयी प्रजाति उससे अलग हो जाती है. वास्तव में एक प्रजाति से दो नयी प्रजातियां बन जाती हैं. वे एशियाई हाथी जैसी ही दिखेंगी, पर उन में कुछ ऐसे नये गुण भी होंगे, जो पुरानी प्रजाति में नहीं थे. हम नहीं कह सकते कि ये नये गुण क्या होंगे."

डॉ. फ़्रिकल का कहना है कि मनुष्य भी इस क्रिया को प्रभावित कर रहा है. यदि बहुमूल्य दांतों वाले हाथियों का अधिक शिकार होता है, तो उनकी संख्या घटेगी. उन्हें प्रजनन का कम मौका मिलेगा. तब उन हाथियों को प्रजनन का अधिक मौका मिलेगा, जिनके बड़े-बड़े दांत नहीं होते. इस से उन के झुंड की बनावट भी बदलेगी. थाइलैंड में जंगल बहुत कम रह गये हैं. इसलिए वहां के हाथी भारतीय हाथियों की तुलना में अपने आप को बदलने के कहीं अधिक दबाव में हैं.

वैसै भी एशियाई हाथी अफ्रीकी हाथी लोक्सोडोंटा अफ्रिकाना की अपेक्षा बहुत नयी प्रजाति है. केवल दो लाख वर्ष पुरानी है. तब भी वह अफ्रीकी हाथी की अपेक्षा कहीं अधिक संकट में है.

रिपोर्ट: राम यादव

संपादन: एस गौड़