ग्रीस के इडोमेनी से शरणार्थियों को हटाना शुरू
२४ मई २०१६मंगलवार से शुरु हुई इस कार्रवाई में अब तक कई बसों में भर कर प्रवासियों को इडोमेनी के अस्थाई कैंपों से देश के अंदर स्थित कैंपों में ले जाया गया है. इनमें मुख्य रूप से वे परिवार हैं जो सफर में थे. ग्रीस की सरकार का कहना है कि आने वाले कई दिनों में धीरे धीरे इन कैंपों से सभी लोगों को हटाने की योजना है.
शरणार्थी संकट के लिए ग्रीस सरकार द्वारा नियुक्त विशेष प्रवक्ता गियोर्गोस काइरित्सिस ने बताया, "दूसरी जगह ले जाने का काम बिना किसी परेशानी के आगे बढ़ रहा है." इलाके से पत्रकारों को दूर रखा गया है. मैसेडोनिया की सीमा की ओर मौजूद समाचार एजेंसी रॉयटर्स के एक सूत्र ने बताया कि इलाके में पुलिस बलों की भारी तैनाती के बीच छोटे बच्चों समेत तमाम लोग अपनी चीजों को बड़े बड़े बैग में भरकर निकलते रहे.
दूर खड़े लोगों के समूह में कुछ लोगों ने जोकर जैसी कपड़े पहन रखे थे और बसों के गुजरने पर शरणार्थियों को दिल के आकार वाले गुब्बारे दिखा रहे थे. काइरित्सिस ने कहा, "जो लोग अपने बैग पैक कर लेंगे वे निकल लेंगे. हम इस मामले को खत्म करना चाहते हैं. इसकी कोई अंतिम समय सीमा तो नहीं रखी है लेकिन आदर्श रूप से इस हफ्ते के अंत तक ये काम पूरा हो जाना चाहिए."
सीरिया, अफगानिस्तान और इराक जैसे देशों से आए करीब 8,000 लोग इडोमेनी के कैंपों में रह रहे थे. उन्होंने बाल्कान रूट के खुलने का इंतजार था हालांकि आसपास के बाल्कान देशों ने कई हफ्तों से अपनी सीमाएं बंद कर दी हैं. इस साल फरवरी से पूर्वी और केंद्रीय यूरोप से आने वाले शरणार्थियों के लिए पश्चिमी यूरोप की ओर बढ़ने का रास्ता रोक दिया गया है. इडोमेनी कैंपों में एक समय 12,000 लोग रह रहे थे. उधर आर्थिक संकट में घिरे ग्रीस की मुश्किलें इस देश में फंसे लगभग 54,000 रिफ्यूजियों के कारण और बढ़ गई है. सीमाओं के बंद किए जाने से पहले करीब 10 लाख लोग ग्रीस के रास्ते पश्चिम यूरोपीय देशों तक पहुंचे.
अंतरराष्ट्रीय रेसक्यू कमिटी के कंट्री डायरेक्टर पानोस नावरोजिडिस का कहना है कि ऑन-साइट प्री-रजिस्ट्रेशन शुरु किया जाना शरणार्थियों के लिए एक बढ़िया कदम था. हालांकि उन्हें शरण मिलने की प्रक्रिया अभी भी बेहद "धीमी और अपर्याप्त" है.
ग्रीस और मैसेडोनिया के बीच रेल मार्गों को कई हफ्तों तक प्रवासियों ने अवरूद्ध रखा. इसके कारण कई ट्रेनों को रूट बदल कर बुल्गारिया से होकर भेजना पड़ रहा है. आगे नहीं बढ़ पाने के कारण मालगाड़ियों को भी कई हफतों तक ट्रैक पर ही रुका रहना पडा.