गुरुद्वारे में हमले के बाद वियना में कड़ी सुरक्षा
२६ मई २००९वियना पुलिस के आतंकवाद निरोधी विभाग के वैर्नर आउटेरिकी के अनुसार पुलिस यह मानकर चल रही है कि शुरुआत प्रवचन में कही गई बातों की वजह से हुई. पुलिस को गुरुद्वारे में होने वाली सभा के बारे में जानकारी थी लेकिन ख़तरे के कोई संकेत नहीं थे.
इस बीच इस पंथ के लोगों मे आक्रोश है और यूरोप के दूसरे हिस्सों से पंथ के लोग वियना में जुट गए हैं. वे लोग इस बात को मानने के लिए कतई तैयार नहीं हैं कि उनका पंथ गुरू ग्रंथ साहिब का अपमान करता है. उनका कहना है कि वो अपने गुरू को नहीं भूल सकते. पंथ से जुड़े रमेश कहते हैं कि गुरू की ताकत ही है जो आज भारत तक आग लग गयी है.
रमेश का कहने का अर्थ ये है कि उनके पंथ में गुरू का बहुत बड़ा दर्जा है और उनकी अनदेखी नहीं की जा सकती. जब मैने रमेश से पूछा कि सिख धर्म में पवित्र ग्रंथ को सर्वोच्च माना गया है तो उनका कहना था कि वो सर्वोच्च है लेकिन गुरू भी सर्वोच्च हैं.
इस पंथ पर आरोप ये है कि वो जीवित मनुष्य को उस किताब से ज़्यादा तरजीह देता है जो सिखों की धार्मिक भावनाओं की आदि पुस्तक मानी जाती है. यानी डेरा सच खंड में गुरू ग्रंथ साहिब रखा तो होता है लेकिन साथ ही गुरू भी बैठते हैं और अनुयायी किताब के आगे नतमस्तक होने के साथ गुरू के भी पांव छूते हैं. यही बात मुख्यधारा के सिखों को कचोटती है.
वियना में एक प्रमुख गुरद्वारे की कमेटी के सदस्य बलवंत गुस्से में कहते हैं कि इन लोगों ने अपने ईश्वर बना दिए जबकि वो एक है. हालांकि उनके तर्क के पीछे मुद्दा यही है कि गुरू ग्रंथ साहिब के अलावा किसी को सर्वोच्च मानने की इजाज़त सिख धर्म में नहीं है. वे मानते हैं कि डेरा सच खंड सिख दलितों का है लेकिन वो ये भी कहते हैं कि सिख धर्म के दस गुरूओं ने कभी जातपांत में यकीन नहीं किया.
अपना नाम न ज़ाहिर होने की शर्त पर सिख धर्म से जुड़े एक व्यक्ति का कहना था कि ये अमीर और गरीब की लड़ाई है जो दुर्भाग्य से धर्म की आड़ में ज़ाहिर हो रही है.
वियना की आम हलचल में भारतीयों खासकर पंजाबी और सिख कौम के बीच गहमागहमी साफ देखी जा सकती है. भारतीयों की दूकानों से लेकर गली नुक्कड़ों में इस वारदात की चर्चा है. ऐसा मानने वाले भी बहुतेरे हैं कि इस कांड से छवि भारत की ही ख़राब हो रही है.
आगे का रास्ता क्या है और शांति कैसे बहाल होगी. तो इस पर बलवंत सिंह का कहना है कि भारत सरकार, भारतीय दूतावास और संगठनों के जरिए डेरा सच खंड से अपने तरीकों में बदलाव की बात की जाएगी. उधर रमेश जैसे डेरा अनुयायी भी हैं जो कहते हैं कि शांति सभी चाहते हैं लेकिन गुरू के सम्मान की कीमत पर नहीं.
लगता है भारत में जाति संघर्ष और धर्म के भीतर वर्चस्व की होड़ का मुद्दा इस बार दूर ऑस्ट्रिया में टकरा रहा है. ये मामला महज़ धर्म की आंतरिक टकराहट नहीं दिखाता ये उन हाशियों की जद्दोदहद की नयी लड़ाई की तरफ भी इशारा करता है जो अपनी एक धारा विकसित करना चाह रहे हैं. इस तरह ये लड़ाई मुख्यधारा और हाशियों की कई धाराओं की लड़ाई है. काश कि इसमें खून नहीं सिर्फ विचार बहता.
रिपोर्ट- शिवप्रसाद जोशी, वियना से
संपादन- महेश झा