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गांधीजी आज जिंदा होते तो कहां होते?

महेश झा
२९ जनवरी २०१८

भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या को इस साल 70 साल हो गए. शांति और अहिंसा का पुजारी खुद हिंसा का शिकार हो गया. गांधीजी की मौत के 70 साल बाद भी भारत हिंसा के माहौल को खत्म नहीं कर पाया है.

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Indien - Parlament in Neu Delhi
तस्वीर: picture alliance/dpa

विदेशों में हर जगह राजनीतिक और सामाजिक चुनौतियों का सामना करते हुए लोग गांधीजी को याद करते हैं और सत्य, शांति और अहिंसा का रास्ता अख्तियार करने की प्रण लेते हैं. अमेरिका में नस्लवाद के खात्मे के लिए लड़ रहे मार्टिन लुथर किंग रहे हों, दक्षिण अफ्रीका में नेल्सन मंडेला या पूर्वी जर्मनी में साम्यवादी शासन के खिलाफ हर सोमवार को लाइपजिग में प्रदर्शन कर रहे नागरिक अधिकार के लिए संघर्ष करते लोग. आंदोलन को हिंसक न होने देना उनके लक्ष्यों में शामिल था. उन प्रदर्शनों का अंत जर्मन एकीकरण और शीतयुद्ध की समाप्ति के रूप में सामने आया.

आज भी जब विदेशों में कोई भारतप्रेमी भारत के बारे में बात करता है तो सत्य और शांति के रामराज्य की कल्पना में होता है, लेकिन साथ ही ये सवाल पूछता है कि गांधी के भारत को क्या हो गया है.

जब अत्याचार खुद या उसका अहसास इतना गहरा हो जाए कि बर्दाश्त से बाहर हो जाए, तो अहिंसा की बात करना मुश्किल है. लेकिन गांधीजी ने अपने राजनीतिक जीवन में बार बार इन कठिनाइयों के बावजूद राजनीतिक और सामाजिक आजादी के संघर्ष को दिशा दी. सत्याग्रह के अपने तरीके को उन्होंने दमन के खिलाफ संघर्ष का घातक हथियार बना दिया.

इस बात पर मतभेद हो सकते हैं कि भारत को आजादी गांधीजी की वजह से मिली या दूसरे कारणों से, लेकिन इसमें कोई मतभेद नहीं हो सकता कि उन्होंने अपने प्रयासों से भारत को अंग्रेजों के खिलाफ एक सूत्र में बांध दिया था और राष्ट्रीय पहचान कायम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

आज का भारत पूरी तरह बंटा दिखता है, उदारवादियों-अनुदारवादियों में, जातियों में, अभिव्यक्ति की आजादी के समर्थकों और विरोधियों में. गरीबों और अमीरों, रईसों और पिछड़ों में, नौकरीशुदा और बेरोजगारों में. लेकिन भारत में  समाज की समस्याओं से लड़ने के बदले लोग एक दूसरे से लड़ते दिख रहे हैं.

नई दिल्ली में जब भारतीय मूल के विदेशी सांसद इकट्ठा हुए थे, पड़ोस में स्थित हरियाणा हर रोड बलात्कार की खबरों में लिपटा था, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब दावोस में विश्व के प्रमुख लोगों को शांतिपूर्ण भारत का संदेश दे रहे थे तो करणी सेना के कार्यकर्ता सिनेमाघरों को तोड़ने में लगे थे. यहां तक कि आसियान के नेता जब गणतंत्र दिवस पर मेहमान के रूप में आए थे, भारत का एक हिस्सा अपने अहिंसक रवैये की नुमाइश कर रहा था.

Ghana Statue von Mahatma Gandhi bei Universität von Accra
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/C. Thompson

भारत की प्राचीन महानता पर आज के संदर्भ में लोग तभी भरोसा कर पाएंगे जब भारत आज भी सत्य, शांति और अहिंसा का परिचय दे, सत्य का संघर्ष अहिंसात्मक तरीकों से करे. गांधीजी का आचरण परंपरागत आचरण था, उन्होंने ग्रामीण व्यवहार को मुख्यधारा का बना दिया, उसे राष्ट्रीय मंच पर ला दिया था. अतीत को आधुनिकता से जोड़ दिया था.

आज एक बार फिर यही करने की जरूरत है. समाज में जब शांति और सहिष्णुता का माहौल होगा तभी दूसरों को भी उसकी कायल बनाया जा सकेगा. सार्वजनिक बहस में हमेशा बदले की आग में जलता दिखने के बदले मौजूदा चुनौतियों से निबटने के लिए गांधीजी के सत्य, अहिंसा और सत्याग्रह का सहारा लेने की जरूरत है. समाज की बुराईयों को दूर करने के लिए, सामाजिक समता लाने के लिए और देश में आर्थिक बराबरी लाने के लिए. गांधीजी यदि जिंदा होते तो आज इसी के लिए लड़ रहे होते.