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गांधी होना, न होना और बन जाना

२८ सितम्बर २०११

गांधी की विरासत पीढ़ी दर पीढ़ी इस तरह आगे बढ़ रही है जैसे किसी समाज में लोक कथाएं और परंपराएं आगे बढ़ती हैं. महात्मा गांधी की सीख आज भी दुनिया भर में लोगों को प्रेरित करती है.

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तस्वीर: AP

गांधी से प्रेरित होने वाले लोगों में से ही मार्टिन लूथर किंग जूनियर और नेल्सन मंडेला से लेकर दलाई लामा और आंग सान सू ची तक बनते हैं. यहां तक कि अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा बड़े गर्व से गांधीवादी होने का दावा करते हैं, हालांकि कुछ लोग इस बात को संदेह की निगाह से देखते हैं.

महात्मा गांधी की जिंदगी और उनका दर्शन अब दंत कथा हो गया है. उनकी सीख पूरी दुनिया में पढ़ी पढ़ाई जाती हैं. लेकिन वही महात्मा गांधी, जिनके किरदार को निभाकर बेन किंगस्ले की फिल्म गांधी ऑस्कर जीत गई और जिन्हें भारत में बड़े गौरव के साथ नोटों पर छापा जाता है, हमेशा महात्मा नहीं थे. उनके चरित्र के भी कुछ ऐसे पहलू रहे हैं जिन्हें उजला नहीं कहा जा सकता. खासतौर पर उनकी जिंदगी के पहले हिस्से में तो ऐसा बहुत कुछ है. ऐसा कहा जाता है कि शादी के शुरुआती दिनों में कई बार उनका अपनी पत्नी कस्तूरबा के प्रति व्यवहार हिंसक रहा. मोहनदास कर्मचंद गांधी का भारत की आजादी की लड़ाई में अध्यात्मिक और बुद्धिजीवी नेता के तौर पर उभरना एक लंबी प्रक्रिया रही. और यह पूरी प्रक्रिया ही गांधीजी के अनुयायियों को आकर्षित करती है.

Mahatma Gandhi
तस्वीर: AP

वैश्विक विचार

गांधी जी की कही बातें सामान्य नहीं हैं. वे आपको प्रभावित करती हैं. वे आपको उन्हें मान लेने पर मजबूर करती हैं. वे बेहद सरल हैं. और वे लोगों के किसी खास समूह या वक्त के किसी खास दौर तक ही सीमित नहीं हैं. गांधीवाद के विशेषज्ञ प्रोफेसर माइकल नागलर की राय में यही वजहें गांधीवाद को आज भी आधुनिक बनाती हैं. नागलर कहते हैं, "तब का चलन विनाशकारी था और उनके अंदर उस चलन के विपरीत जाने का साहस था. यही नहीं, उन्होंने प्राचीन समझबूझ को नए मायने दिए और उन्हें ऐसे रूप में ढाला कि आधुनिक लोग भी उन्हें समझ सकें और इस्तेमाल कर सकें. और मेरे ख्याल से उन्होंने महानतम खोज की कि अहिंसा लोगों को जोडऩे का एक ऐसा तरीका है जिसका कहीं भी किसी भी स्थिति में इस्तेमाल हो सकता है."

गांधी का दर्शन तीन नियमों पर आधारित हैः अहिंसा, सत्याग्रह और स्वराज. शांति के लिए अपनी लड़ाई में महात्मा गांधी ने बुद्ध और मोहम्मद दोनों से सीख ली. गांधी का यकीन था कि शुद्ध विश्वास अलग अलग धर्मों के लोगों को जोड़ सकता है. उन्होंने कहा, "मैं देख सकता हूं कि मृत्यु में जीवन बसता है. असत्य में सत्य बसता है. अंधकार में प्रकाश बसता है. इससे मैं समझता हूं कि ईश्वर जीवन है, सत्य है, प्रकाश है. वह प्रेम है. वही परमेश्वर है."

Mahatma Gandhi
बैरिस्टर मोहनदास कर्मचंद गांधीतस्वीर: picture-alliance/akg-images

आसान राह नहीं

मोहनदास कर्मचंद गांधी का जन्म गुजरात के पोरबंदर में 2 अक्तूबर 1869 को हुआ. उन्हें दुनिया भले ही महात्मा बुलाती रही, लेकिन खुद वह इसकी ज्यादा परवाह नहीं करते थे. वह कोई मेधावी छात्र नहीं थे. लंदन में कानून की पढ़ाई करने के बाद उन्होंने कुछ दिन बंबई में वकालत का काम खोजने की कोशिश की, फिर 1893 में दक्षिण अफ्रीका चले गए. और वहां उनका सामना नस्ली भेदभाव से हुआ. दक्षिण अफ्रीका में रह रहे 60 हजार भारतीयों के लिए उन्होंने इंडियन ओपीनियन नाम का अखबार निकाला. और यहां से गांधी का एक शर्मीले और बहुत कम सामाजिक इंसान से सक्रिय और बेबाक नेता के रूप में रूपांतरण शुरू हुआ.

1914 में गांधीजी भारत लौटे और 1920 में वह कांग्रेस के नेता बन गए. 1930 में नमक सत्याग्रह के रूप में उन्होंने अपने अहिंसक आंदोलन का चमत्कारिक प्रदर्शन किया. दांडी मार्च ने अंग्रेज सरकार को अचंभित कर दिया.

1942 में गांधीजी ने पूर्ण स्वराज की मांग की जिसके लिए उन्हें जेल जाना पड़ा. समाजशास्त्री रंजना कुमारी मानती हैं कि गांधीजी की प्रतिबद्धता अतुलनीय थी. वह कहती हैं, "आज पूंजीवाद और वैश्वीकरण के दौर में जब भौतिक जीवन इतना अहम हो गया है, गांधी जी के सिद्धांतों पर चल पाना बेहद मुश्किल है. फिर भी, जो भी उनके सिद्धांतों पर चल पाता है, वह मानवता के लिए बहुत कुछ कर सकता है."

Charlie Chaplin Mahatma Gandhi
चार्ली चैपलिन संग गांधीतस्वीर: AP

गांधी जिंदा हैं

भारत को ब्रिटेन से 1947 में आजादी मिली. लेकिन आजादी के साथ आया बंटवारा. वह भी धर्म के आधार पर. लेकिन गांधी जी ने भारत में मुसलमानों के लिए हमेशा बराबरी के लिए लड़ाई लड़ी. 30 जनवरी 1948 को एक हिंदू राष्ट्रवादी नाथूराम गोडसे ने उनकी हत्या कर दी.

कुछ लोग गांधी को संत कहते हैं तो कुछ कहते हैं कि उनका दर्शन अब अप्रासंगिक हो गया है. लेकिन उनकी मृत्यु को छह दशक बीत जाने के बाद भी उनकी याद जिंदा है और आज भी लोगों के लिए प्रेरणा बनती है, चेतावनी बनती है.

रिपोर्टः प्रिया एसेलबॉर्न/वी कुमार

संपादनः महेश झा

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