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गर्भ में पता चलेंगी गंभीर बीमारियां

१० जुलाई २०१४

डाउन सिंड्रोम जैसी बीमारियों का पता अगर गर्भावस्था के दौरान ही लग जाए तो होने वाले माता पिता अपने हिसाब से फैसला ले सकते हैं. तकनीक के कारण अब गंभीर बीमारियों की जांच अब गर्भावस्था के दौरान ही की जा सकती है.

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तस्वीर: Messe Duesseldorf/ctillmann

आखेन यूनवर्सिटी के डॉक्टर टामे गोएके प्रसव पूर्व बीमारियों की जांच करते हैं. प्रीनेटल डायग्नोसिस में अक्सर डाउन सिंड्रोम की तलाश की जाती है. अकसर इस बीमारी का पता लगने के बाद महिलाएं गर्भपात का फैसला लेती हैं. टामे गोएके कहते हैं, "यह एक मुश्किल स्थिति है क्योंकि गर्भवती महिला को फैसला लेने का अधिकार है कि वो अपना आगे का जीवन कैसा चाहती है. इसलिए हमें इसका भी ध्यान रखना होता है. लेकिन हमारा मुख्य काम है जीवन बचाना और इसलिए हम अजन्मे बच्चे की थोड़ी वकालत करते हैं."

पहले तीन महीने की स्क्रीनिंग के दौरान भी डाउन सिंड्रोम का खतरा आंका जाता है. इसके लिए अल्ट्रा साउंड के साथ ही खून की जांच भी की जाती है. डॉक्टर बताते हैं, "अल्ट्रासाउंड टेस्ट पहले किया जाता है. इसमें बच्चे का आकार देखते हैं. उनके उभार देखते हैं. इसके बाद अहम है कि हम नाक और चेहरे की स्कैनिंग करें. ताकि नाक की हड्डी और बाकी चिह्नों के साथ ही जोखिम का अच्छे से विश्लेषण कर सकें."

छोटी नाक की हड्डी डाउन सिंड्रोम का संकेत हो सकती है. 40 से 50 फीसदी मामलों में दिल में गड़बड़ी भी पहले तीन महीने में की जाने वाली स्क्रीनिंग में पता चल जाती है. गर्भवती महिला के रक्त की जांच दो बायोकेमिकल मानकों पर की जाती है. परिणाम काफी हद तक सही होते हैं. अगर जांच में पता लग जाए कि बच्चे के क्रोमोजोम में गड़बड़ी का खतरा ज्यादा है तो एम्नियोटिक फ्लुइड की जांच की जाती है. लेकिन इस जांच से गर्भ को भी खतरा पैदा हो सकता है. डॉक्टर कहते हैं, "यहां हम देख सकते हैं कि सुई एम्नियॉटिक फ्लुइड तक चली गई है. तो खतरा यह भी हो सकता है कि कुछ मामलों में बच्चा घायल हो जाए."

लेकिन डेढ़ साल से इस जोखिम भरी टेस्ट का विकल्प मिल गया है. जर्मनी में ट्राइसोमी ब्लड टेस्ट बाजार में उपलब्ध है. 640 यूरो यानि करीब 51,000 रुपये इसकी कीमत है. गर्भ के डीएनए टेस्ट में मां के खून की जांच की जाती है. इसमें बच्चे की कोशिकाओं का भी हिस्सा होता है. इसके बाद बताया जा सकता है कि बच्चे के क्रोमोजोम में कोई गड़बड़ी है या नहीं.

ब्लड टेस्ट के आलोचकों का कहना है कि इससे डाउन सिंड्रोम के कारण गर्भपात करने वाली महिलाओं की संख्या बढ़ जाएगी. डॉक्टर कहते हैं, "इसे निश्चित ही बहुत ध्यान से आंकना होगा और मेरे हिसाब से इसे इकलौते और स्वतंत्र टेस्ट के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए. इस टेस्ट में सिर्फ क्रोमोजोम वाले हिस्से का परीक्षण किया जा सकता है. जबकि अल्ट्रासाउंड से आंतरिक अंगों में पाई जाने वाली गड़बड़ी भी पता लग जाती है और क्रोमोजोम अनिमितताओं की बजाए ये गड़बड़ी ज्यादा होती है. तो दोनों परीक्षणों को साथ में देखना चाहिए."

ब्लड टेस्ट का इस्तेमाल अब ज्यादा किया जा रहा है. डाउन सिंड्रोम के बारे में अकसर गर्भवती महिलाओं और उनके जीवन साथी को पूरी जानकारी नहीं होती और इसलिए गर्भपात इकलौता उपाय उन्हें लगता है. जिसका विकलांग सहायता संगठन विरोध करते हैं.

रिपोर्ट: यानिना हार्डर/एमजी

संपादन: ओंकार सिंह जनौटी