गरीब देश की सोना उगलने वाली जमीन
दुनिया के सबसे गरीब मजदूर, सोना उगलने वाली जमीन के ऊपर रहते हैं. उनके हाथ सोने की ईंटे तो बना देते हैं, लेकिन अपनी गरीबी दूर नहीं कर पाते.
अफ्रीकी देश कांगो में सोने की दो बड़ी खदानें हैं. लेकिन वहां से निकलने वाले ज्यादातर सोने की कालाबाजारी हो जाती है. खनन से जुड़े ठेकेदार खनिकों से दिन भर काम करते हैं, लेकिन पैसा तभी दिया जाता है जब सोना मिलता है.
गहरी और मुश्किल सुरंगों में घुसने के बाद खनिक लगातार मिट्टी और पत्थर कुरेदते रहते हैं. उन्हें उम्मीद होती हैं कि खुदाई में जरा सा पीला सोना निकल आयेगा.
कुछ कंपनियां खनिकों को हर दिन के हिसाब से दिहाड़ी देती हैं. लेकिन यह भी दुनिया में सबसे सस्ती दिहाड़ी है. पैसा पाने के लिए श्रमिकों को दिन भर खुदाई और कई बोरे ढोने पड़ते हैं.
खदान से निकाली गयी मिट्टी को एक छलनी में डाला जाता है और फिर खान के भीतर मौजूद पानी भिगोया जाता है.
मिट्टी पानी में बह जाती है और कड़े टुकड़े अलग थलग हो जाते हैं.
और पत्थर का चमकीला टुकड़ा मिलते ही लोगों की आंखों में चमक आ जाती है. अक्सर ऐसे टुकड़ों को स्थानीय बाजार में ले जाया जाता है, जहां खरीदार उसकी कीमत लगता है.
बड़े कारोबारी पत्थर के टुकड़े को एसिड के साथ जलाते हैं. एसिड सोने को बाकी चीजों से अलग कर देता है.
फिर सोने के इस चूरे को तौला जाता है. इस प्रक्रिया तक पहुंचने वाले मैटीरियल में 80 फीसदी सोना होता है.
इसके बाद इस मिश्रण को बेहद उच्च तापमान में गलाया जाता है. इस दौरान सोना गलता है और बाकी चीजें जल जाती हैं.
पिघले मिश्रण को ईंट जैसे सांचे में डाला जाता है. यह मिश्रण जब ठंडा होता है तो सोने की ईंट बनती हैं.
एक अनुमान के मुताबिक कांगो गणराज्य में हर साल 25 से 30 टन सोना निकाला जाता है. लेकिन इसमें से सिर्फ 11 टन ही बाजार में आ पाता है. बाकी का सोना काले बाजार का हिस्सा बनता है.