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मंथन 53 में खास

१३ सितम्बर २०१३

तेल अवीव के पुराने बंदरगाह के पास जब भी निरमॉड अपनी हल्की आसमानी साइकिल लाते हैं, लोग ठहर ही जाते हैं. यह साइकिल वाकई खास है. साइकिल का नाम है नंबर सेवन और यह गत्ते से बनी है.

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तस्वीर: DW

साइकिल को ग्रीन सवारी कहते हैं यानी जिससे पर्यावरण को नुकसान न पहुंचे. लेकिन खुद साइकिल को तैयार करने में भी तो उद्योग की मदद लेनी पड़ती है. इसके फ्रेम, टायर, ट्यूब और रिम कारखानों में ही तैयार करने पड़ते हैं, जिसमें ब्रास, अल्यूमिनियम और रबर जैसी चीजों के अलावा बिजली की भी जरूरत होती है. लेकिन मंथन में इस बार हम एक ऐसी साइकिल की सवारी करेंगे, जो सिर्फ इस्तेमाल हो चुकी चीजों से बनी है.

यह साइकिल बेकार पड़ी चीजों से बनाई गई है. 90 फीसदी हिस्सा गत्ते, प्लास्टिक की बोतल और रबर से बना है. इस्राएल की नई कंपनी कार्डबोर्ड टेक्नोलॉजीज इस साइकिल के सहारे एक संदेश देते हुए बाजार में जगह बनाना चाहती है, खास तौर पर विकास कर रहे देशों में. वहां इसकी कीमत सिर्फ आठ यूरो यानी करीब साढ़े छह सौ रुपये होगी.

पेटी के गत्ते से फ्रेम, कार के पुराने टायर से पहिया और पैडल की गरारी प्लास्टिक की बोतलों से बनती हैं. सीक्रेट पेंट तकनीक इसे पानी और आग से बचाती है. कंपनी का नारा है, कारोबार और पर्यावरण संरक्षण. कार्डबोर्ड टेक्नोलॉजीज के सीईओ निमरॉड एलमिश कहते हैं, "पूरा कॉन्सेप्ट ये है कि इसके दाम में फर्क होगा. पश्चिमी देशों में हम साइकिलें बेचेंगे ताकि तीसरी दुनिया के देशों को साइकिल दे सकें. यह हमारी कंपनी का सामाजिक नजरिया है".

फिलहाल साइकिल की टेस्ट राइड हो रही है और कुछ कमियां सामने आ रही हैं. तेल अवीव में ये साइकिल जबरदस्त उत्साह जगा रही हैं. निर्माता भले ही पूरी तरह नई साइकिल न बनाएं, लेकिन एक अच्छा इकोफ्रेंडली आविष्कार तो कर ही चुके हैं. कैसी हैं ये अनोखी गत्ते से बनीं साइकल दिखाएंगे आपको मंथन के ताजा अंक में.

कैसे बनती हैं दवाएं

साथ ही ले चलेंगे आपको जर्मनी की सॉफ्टवेयर कंपनी एसएपी के भारतीय शहर बेंगलुरु के दफ्तर में. वहां पांच हजार लोग काम करते हैं. इन कर्मचारियों में पांच लोग ऐसे भी है जो बाकियों से हटकर हैं. आम तौर वह शांत, गुमनाम और खोये खोये से दिखते हैं लेकिन एसएपी इंडिया लैब्स के अधिकारी जानते हैं कि ये कर्मचारी ऐसा क्या कर सकते हैं जो बाकी लोग आसानी से नहीं कर सकते. ये पांचों कर्मचारी ऑटिज्म का शिकार हैं. ऑटिस्ट लोगों को समाज अक्सर मंदबुद्धि करार देता है, लेकिन असल में ये लोग अपने पसंदीदा विषय में अद्भुत एकाग्रता वाले होते हैं. मंथन में ऑटिज्म पर रिपोर्ट है. दुनिया भर में करीब एक करोड़ लोग इससे प्रभावित हैं और वैज्ञानिक अब भी इसका हल नहीं ढूंढ पाए हैं.

कमियां, अंतर या बीमारियां कई तरह की हो सकती हैं और हर चीज के लिए दवाइयां बनाना आसान और मुमकिन भी नहीं. फॉर्मूला बनाने से टेस्टिंग और फिर दवा को बाजार में लाने तक में अक्सर छह, आठ या दस साल तक लग जाते हैं. अगर कोई दवा बीमारी ठीक कर सकती है, तो इसका गलत फॉर्मूला या गलत डोज जान भी ले सकता है. जर्मन कंपनियां अब टेस्टिंग के लिए आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल कर रही हैं. रिसर्चरों के सामने एक फीसदी तत्व को निकालने की चुनौती रहती है. मंथन में जानेंगे कि बायर जैसी बड़ी दवा कंपनी की लैब में आखिर काम कैसे होता है.

साथ ही बताएंगे आपको कि जर्मनी में कैसे छोटी छोटी कोशिशों से पर्यावरण को मदद पहुंचाई जा रही है. जर्मनी ने जंगलों के रख रखाव का स्मार्ट तरीका निकाला है, जिसके बाद यहां हरियाली बढ़ गई है. कार्यक्रम के अंत में ले चलेंगे आपको नोबेल के शहर स्टॉकहोम. नोबेल पुरस्कार वैज्ञानिकों का सपना होता है. किसी वैज्ञानिक के लिए नोबेल पुरस्कार से बड़ी कोई चीज हो नहीं सकती. इसके सौ साल से ज्यादा हो गए हैं पर इसका रुतबा आज भी वैसे का वैसा है. दुनिया भर से सबसे अच्छे वैज्ञानिकों को कैसे चुना जाता है, जानेंगे इस बार मंथन में शनिवार सुबह 10.30 बजे डीडी-1 पर.

एजेए/आईबी

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