खरगोश के अंडे
१२ अप्रैल २००९ईस्टर से जुड़ा सबसे प्रसिद्ध मिथक ये है कि खरगोश पहले तो मैदानों में आता और फिर अपने रंग बिरंगे अंडे कहीं कहीं छुपा देता है. एक मिथक जिसका इसा मसीह के फिर से जीवित होने से बहुत ही कम लेना देना है. बॉन में मानव जाति विज्ञान शोधकर्ता अलॉइस डोरिंग कहते हैं "इस मिथक को जन्म देने वाली है इसाई धर्म की इवांजेलिक शाखा जिसे इवांजेलिक चर्च के नाम से जाना जाता है. वे बच्चों को ये बताना चाहते थे कि ईस्टर पर इतने सारे अंडे क्यों होते हैं और इसके लिये उन्होंने खरगोश के अंडे वाला मिथक पैदा किया".
बॉन की ईसाई धर्म के कैथोलिक चर्च में ईस्टर से पहले का समय उपवास का समय होता है जिसमें अंडे खाना भी मना होता है और इसिलिये ईस्टर के समय मुर्गीख़ाने में बहुत अंडे देखे जा सकते थे. चर्च की दूसरी शाखा प्रोटेस्टेंट चर्च ने हालांकि उपवासों का तो विरोध किया लेकिन रंग बिरंगे अंडों के साथ इस्टर वे भी मनाते थे. अंततः अंडे नए जीवन का प्रतीक बन गए और उसी के साथ येसू मसीह के फिर से ज़िन्दा होने का प्रतीक भी.
चर्च में चर्चा
जिस तरह भारत में पूजा के दौरान प्रसाद का चलन है उसी तरह चर्च में भी अंडो को रखा जाता था. और जिन अंडों को पादरी चर्च में रखते थे उन्हें खा तो नहीं सकते थे इसलिये इन अंडों को रंगा जाने लगा. ताकि सामान्य अंडो और चर्च में रखे जाने वाले अंडो में फर्क किया जा सके. बारोक समय में अंडों को तरह-तरह से रंगा जाता था और इन्हें पादरियों और समाज में बड़ा पंसद किया जाता था. बॉन में मानव जाति विज्ञान शोधकर्ता अलॉइस डोरिंग कहते हैं कि "इन रंग बिरंगे अंडो का खरगोश से संबंध कब बना और कैसे बना इस बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं है.
लेकिन इवांजेलिक चर्च के 17वीं शताब्दी में लिखे धार्मिक साहित्य में पहली बार ईस्टर खरगोश का उल्लेख हुआ था. डोरिंग का कहना है कि ऐसे भी उल्लेख हैं कि कई प्रांतों में लोमड़ी या फिर कौए भी ईस्टर की मिठाई लाते थे. लेकिन खरगोश इनमें सबसे मशहूर हो गया".
खरगोश का मिथक और झूठी उर्वरता की देवी
ईस्टर की इस कहानी के लिये कारण ढूंढने की कोशिश की गई और फिर एक और खोज की गई जर्मन वसंत और उर्वरता की देवी की जिसका नाम रखा गया ओस्टेरा. डोरिंग बताते है कि "अब हम जानते हैं कि ये देवी कभी थी ही नहीं. ये देवी 19 वीं शताब्दी में अस्तित्व में आईं. इस तथ्य के बाद ये भी नहीं कहा जा सकता ही ओस्टेरा देवी ने इस त्यौहार को इस्टर नाम दिया होगा".
ईस्टर के पर्व में पानी का भी महत्व होता है. कहा जाता है कि चर्च में इस्तमाल किया जानेवाला ये पानी पवित्र होता है और इसमें मनुष्य को ठीक करने की शक्ति होती है.
सन 325 में लिखी एक किताब में ये उल्लेख है कि ईस्टर पश्चिमी देशों में वसंत की शुरूआत के बाद वाली पहली पूनम को मनाया जाता है, मतलब 22 मार्च से 25 अप्रैल के बीच. यानी तब जब खरगोश फिर से खेतों में दिखाई देने लगते हैं.
आधुनिक जगत को पोप बेनेडिक्ट सोलहवें का संदेश
2009 के साल में ईस्टर रविवार को अपने संदेश में पोप ने मध्यपूर्व से शांति के रास्त पर चलने की अपील की है. पोप ने रोम में प्रार्थना सभा को संबोधित करते हुए कहा सुरक्षित भविष्य के लिये ज़रूरी है कि शांतिपूर्ण तरीके से एक दूसरे के साथ रहा जाए. फिलिस्तीनियों औऱ इस्राएल के बीच शांति स्थापित करने का एक ही तरीका है कि दोनों तरफ़ से इस बारे में गंभीर और लगातार प्रयास किये जाएं. रोम में हर साल ईस्टर के मौक़े पर प्रार्थना सभा का आयोजन किया जाता है. पोप बेनेडिक्ट सोलहवे ने प्रार्थना के बाद लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि ईसा मसीह आज भी उन लोगों को संदेश देते हैं जो बुराई पर अच्छाई की विजय को अपने तरीके से सुनिश्चित करना चाहते हैं. न्याय, सच्चाई, दया, और क्षमा बुराई को जीतने के हथियार है.
रिपोर्ट- डॉयचे वेले, आभा मोंढे
संपादन- एस जोशी