क्रिसमस: "मेड इन चाइना"
१७ दिसम्बर २००९क्रिसमस का त्यौहार मतलब परिवार और तोहफों का समय. क्रिसमस से पहले इस आख़री हफ़्ते में हज़ारों लोग परिवार और दोस्तों के लिए तोहफ़े लेने जाते हैं जो 25 दिसंबर को क्रिसमस ट्री के नीचे सजाए जाते हैं. रंग बिरंगे सितारों और घंटियों के आकार की बत्तियों से जगमगाती सड़कें और बाज़ार, लाउड स्पीकर पर बजते क्रिसमस के गाने और तोफहों से भरी दुकानें, इस माहौल में चार चांद लगा देती हैं.
बाज़ार और सुपरमार्केट तोहफ़ों से भरे हुए हैं. घर की सजावट का सामन 19 यूरो, बच्चों का घोड़ा 5 यूरो और हेलीकॉप्टर 2 यूरो. लेकिन यह क्या, सभी खिलौनों के पैकेट पर "मेड इन चाइना" का मार्क! जर्मनी की दुकानों में मिलने वाले 75 फ़ीसदी खिलौनें चीन से आते हैं. और इस कारण वे बहुत सस्ते होते हैं. लेकिन क्रिसमस के इस माहौल में लोग अकसर यह भूल जाते हैं कि यह खिलौने कहां से आ रहें हैं, और किन परिस्थितियों में बनाए जाते हैं. साफ़ है कि सस्ते तोहफ़े लोगों को ख़ुश कर देते हैं. लेकिन उन बच्चों की ख़ुशी का क्या, जो अक्सर घंटों फ़ैक्ट्री में काम कर अपना भविष्य और खुशियों का गला घोट देते हैं.
"प्रोजेक्ट फेयर प्ले" की सबीना हर्लेस कई सालों से इस मुद्दे पर काम कर रही हैं. वह बताती हैं, "यह खिलौने चीन से बन कर आते हैं और अक्सर 10 से 12 साल के छोटे बच्चे इन्हें बनाते हैं. ये बच्चे अकसर दिन में 16 घंटों से ज़्यादा काम करते हैं. और इस कारण कई बच्चों के स्वाथ्य पर बुरा असर पड़ता है और कइयों की मौत भी हो जाती है."
थकान और शोषण के कारण बच्चों की मौत अब चीन में एक आम बात बन गई है. लेकिन इस कारण चीन से आने वाले कई चीज़ों का बायकॉट भी इस समस्या का हल नहीं है. यह नहीं है कि चीन और विएतनाम से आने वाले उत्पाद अमानवीय तरीकों से ही बनाए जाते हैं. जिस चीज़ की बहुत ज़रूरत है वह है एक सरकारी लोगो या फिर एक ऐसा मार्क जो खाने कि चीजों पर पाया जाता है.
सबीना हर्लेस बताती हैं, "ऐसे बहुत से संगठन हैं जो कंपनी लोगो या फिर मार्क को टेस्ट करते हैं. और जब इन कंपनियों की रोजगार स्थिति ठीक होती है तो उन्हें सरकार कि ओर से सरकारी मोहर मिल जाती है. इस प्रयास में चीन की खिलोना कंपनियां भी साथ दे रही हैं." चीन से खिलौने मंगाने वाली जर्मनी की भी 3 कंपनियां हास्ब्रो, रावेंसबुर्गर और स्टाइफ़ भी इस मिशन में चीन का साथ दे रही हैं.