क्रिकेट वर्ल्डकप से पहले कुछ जवाब मिले
२३ नवम्बर २०१०रिहर्सल था भी और नहीं भी, क्योंकि नागपुर में जहीर खान के अलावा भारत के सारे जमे जमाए खिलाड़ी खेल रहे थे. लेकिन तेज गेंदबाजी में पिछले कुछ महीनों में अक्सर जहीर खान के साथी गेंदबाज की कमी खल रही थी कोई ऐसा जो नई गेंद के साथ स्ट्राइक बॉलर हो. नागपुर में ईशांत और श्रीसंत की गेंदबाजी इस सिलसिले में उम्मीद जगाती है, खासकर दक्षिण अफ्रीकी दौरे में उन्हें पिच से भी मदद मिलने वाली है.
हरभजन सिंह मैन ऑफ द सीरीज बने, लेकिन खासकर बल्लेबाजी के बल पर. वैसे भज्जी की गेंदबाजी फिर से लाईन पर लौटती दिख रही है. प्रज्ञान ओझा रन रोकने वाले गेंदबाज तो थे ही, अब उनमें स्ट्राइक बॉलर के लक्षण भी दिखने लगे हैं. भज्जी की बल्लेबाजी ख़ासकर वनडे में ऑलराउंडर की पुरानी कमी को दूर करने में मददगार साबित हो सकती है. उम्मीद की जानी चाहिए कि यह दो टेस्ट की चांदनी नहीं थी.
राहुल द्रविड़ फार्म में लौट आए हैं, धोनी भी फार्म में हैं, गंभीर फिर से जमने लगे हैं. क्या ही अच्छा होता अगर रैना भी दो-चार हाथ दिखा सके होते. यहां दक्षिण अफ्रीका का दौरा फैसलाकून होगा, और यह अभी से मानकर चला जा सकता है कि रैना के मैदान में उतरते ही बाउंसरों की बौछार शुरू हो जाएगी. देखा जाए, वे कैसे निपटते हैं.
भारतीय टीम शायद न्यूजीलैंड की टीम से कुछ सीख सकती है. वेटोरी टीम के खिलाड़ियों ने दिखाया है कि जहां कोई उम्मीद नजर नहीं आती, वहां भी वे मैदान नहीं छोड़ते हैं. इसके अलावा उनके लिए क्रिकेट के तीन पक्ष हैं - बैटिंग, बॉलिंग और फिल्डिंग. भारत की फिल्डिंग पहले से कुछ बेहतर हुई है, लेकिन विश्व की नंबर एक टीम होने के नाते यहां अभी एक लंबा रास्ता तय करना है.
और एक सवाल रह ही गया, कब तक बाहर रहेंगे पुजारा और विजय सरीखे खिलाड़ी?
लेख: उज्ज्वल भट्टाचार्य
संपादन: एन रंजन