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क्रिकेट में सचिन तेंदुलकर के 20 साल

१५ नवम्बर २००९

मौजूदा दौर के सबसे बड़े क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर को अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेलते हुए 20 साल हो गए. फिर भी जादू टूटा नहीं है, करिश्मा ख़त्म नहीं हुआ है और क्रिकेट प्रेमियों को सम्मोहित कर लेने का राज़ खुला नहीं है.

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बेमिसाल सचिनतस्वीर: AP

दुनिया के किसी और क्रिकेटर अपने आंकड़ों, अपनी शख़्सियत और अपने बर्ताव को एक साथ सबसे ऊपर रखने में सफल नहीं हो पाया है. तेंदुलकर आज भले ही महान क्रिकेटर माने जाते हैं लेकिन उनकी सादगी और स्वभाव वैसा ही हैं, जैसा 20 साल पहले था. सचिन ने अपनी विशाल सफलताओं में अपनी जड़ों को जमाए रखा है.

20 साल पहले बेतरतीब घुंघराले बाल और थोड़ी पतली आवाज़ वाले बल्लेबाज़ को दुनिया ने पहली बार देखा. उसी वक्त से उनकी चर्चा शुरू हुई, जो आज भी जारी है. सचिन तेंदुलकर को खेलते हर कोई देखना चाहता है, उन्हें बोलते हर कोई सुनना चाहता है और क्रिकेट प्रेमी उनके रिकॉर्डे की ही तरह उनकी हर बात को नोट करना चाहते हैं.

रातों रात बने स्टार

घरेलू क्रिकेट में सचिन तेंदुलकर का विकेट लेने वाला कोई भी बॉलर रातों रात स्टार बन जाता है और राष्ट्रीय टीम में उसे चुने जाने तक की बात चलने लगती है. उन्होंने बस एक ही बार तो महेंद्र सिंह धोनी की तारीफ़ की और फिर धोनी को कप्तानी मिल गई. उन्होंने एक ही बार तो वनडे मैचों को चार पारी में बांटने की वकालत की और आईसीसी ने भी मूल रूप से इस पर सहमति जता दी है.

सचिन तेंदुलकर ने भले ही एक विशाल सफ़र पूरा कर लिया हो लेकिन वह कहते हैं कि अभी मंज़िल तक नहीं पहुंचे हैं. अभी उन्हें काफ़ी दूर चलना है. रिटायर होने का कोई इरादा नहीं है.

Indischer Cricketspieler Sachin Tendulkar
एक्शन में मास्टर ब्लास्टरतस्वीर: AP

सचिन ने पहली बार 1988 में उस वक्त क्रिकेट पंडितों को झिंझोड़ा था, जब उन्होंने विनोद कांबली के साथ मिल कर मुंबई के स्कूली प्रतियोगिता में 664 रन की साझीदारी निभाई थी. कांबली भी तेज़ी से चढ़े लेकिन उतनी ही तेज़ी से फिसल गए. पर सचिन तो अलग ही साबित हुए. वह हर रोज़ नई ऊंचाइयों पर चढ़ते गए.

भाई अजीत तेंदुलकर ने उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा दी, गुरु रामाकांत अचरेकर ने क्रिकेटिंग शॉट्स के टिप्स दिए और ख़ुद सचिन तेंदुलकर ने अपना सब कुछ क्रिकेट के लिए समर्पित कर दिया.

अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में कदम

1989 में उन्होंने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में क़दम रखा और पाकिस्तान के तेज़ गेंदबाज़ वक़ार यूनुस के एक बाउंसर ने उनका स्वागत किया. उनके नाक से ख़ून बह निकला. लेकिन तेंदुलकर नहीं सहमे. बल्कि उनका डर ख़त्म हो गया. उन्होंने ऐसा बल्ला चलाया कि 20 साल बाद आज भी उनके खेल से दुनिया का हर बड़ा गेंदबाज़ घबराता है.

उन्होंने अगले साल 1990 में टेस्ट मैचों में पहला शतक जमाया और इसके बाद 1992-93 से तो वह एक शतकों के बादशाह बनते गए. ऑस्ट्रेलियाई ग्राउंड पर उन्होंने शानदार बैटिंग की.

इसके बाद इतिहास बनता चला गया. सचिन ने किसी भी बल्लेबाज़ का रिकॉर्ड सुरक्षित नहीं रहने दिया. बस टेस्ट मैचों में ब्रायन लारा के 400 नाबाद रन और फ़र्स्ट क्लास में उनके 501 नॉट आउट ही सचिन की पहुंच से बाहर दिख रहे हैं. टेस्ट क्रिकेट के बाक़ी के रिकॉर्ड को उन्होंने अपने नाम कर लिए हैं.

मास्टर ब्लास्टर से सबंधित कुछ आंकड़ें

159 टेस्ट मैचों में 12773 रन और इनमें 42 शतक. औसत 54.58 का. यह सचिन को टेस्ट क्रिकेट का एक शानदार, बल्कि बेमिसाल बल्लेबाज़ बताता है.

इसके अलावा 436 वनडे मैचों में उन्होंने 17,178 रन बना रखे हैं, 44.45 के औसत से और साथ में हैं 45 बेजोड़ शतक. अगर वनडे में सईद अनवर के 194 रनों की पारी को छोड़ दिया जाए, तो वनडे के भी ज़्यादातर रिकॉर्ड भारत के मास्टर ब्लास्टर के ही नाम हैं.

टीम के एक बेहतरीन सदस्य सचिन तेंदुलकर ने ख़ुद को क्रिकेट के सबसे छोटे रूप ट्वेन्टी 20 से दूर रखा है. वह भारतीय क्रिकेट टीम में नहीं हैं लेकिन आईपीएल में अपने शहर मुंबई की कप्तानी करते हैं.

तेंदुलकर की बल्लेबाज़ी इस क़दर आलीशान है कि इसके आगे गेंदबाज़ी करने की उनकी अद्भुत क्षमता कहीं छिप कर रह जाती है. वह टीम के लिए एक बेहतरीन पार्ट टाइम गेंदबाज़ साबित होते आए हैं. वह ओवर की छह गेंदें छह अलग तरीक़े से फेंकने की क़ाबीलियत रखते हैं और एक ही बॉलिंग ऐक्शन में कभी मध्यम गति, तो कभी ऑफ़ स्पिन और कभी लेग स्पिन कर देते हैं.

उन्होंने टेस्ट मैचों में 44 और वनडे में 154 विकेट लिए हैं. यह साबित करता है कि उनकी गेंदबाज़ी कितनी बेमिसाल रही है.

इसके अलावा सचिन तेंदुलकर एक बेहतरीन फ़ील्डर भी रहे हैं. वह स्लिप में सबसे सुरक्षित खिलाड़ी समझे जाते हैं, जिनके हाथ में आने के बाद गेंद कहीं नहीं जा सकती, जबकि हर कोने से सीधा विकेट पर थ्रो करने की महारत रखते हैं.

निराशा भी. सफलता भी

लेकिन उनकी सबसे बड़ी कमज़ोरी कप्तान के तौर पर उनकी नाकामी रही है. वह कभी एक सफल कप्तान साबित नहीं हो पाए हैं और उनकी अगुवाई में भारत ने कभी बहुत अच्छा प्रदर्शन नहीं किया है. वह जब जब कप्तानी से दूर हुए हैं, उनका क्रिकेट निखर आया है.

उनके जीवन के कुछ अविस्मरणीय क्षणों में 1999 का वो लम्हा भी है, जब क्रिकेट के सबसे बड़े बल्लेबाज़ों में गिने जाने वाले ऑस्ट्रेलिया के डॉन ब्रैडमैन ने कहा कि सचिन तो उनकी तरह खेलते हैं. ब्रैडमैन का कहना था कि सचिन को खेलते देख उन्हें 1930 और 1940 के दशक का अपना खेल याद आ जाता है.

सचिन ने ग्राउंड पर ख़ुद को एक बेमिसाल खिलाड़ी साबित किया है. उन्हें कभी भी किसी साथी या विरोधी खिलाड़ी के ख़िलाफ़ कुछ बोलते नहीं देखा गया, कभी अंपायर से सवाल करते नहीं देखा गया और कभी भी भावनाओं के आगे झुकते नहीं देखा गया. वह एक शांत, संयमित और संपूर्ण क्रिकेटर हैं.

उनकी यही अदा उन्हें और भी बड़ा खिलाड़ी बनाती है. यहां तक कि जावेद मियांदाद जैसा खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर को रोल मॉडल मानता है. मियांदाद ख़ुद एक ज़िद्दी स्वभाव के खिलाड़ी रहे हैं, जिनका ग्राउंड पर कई बार दूसरों से झगड़ा हो चुका है.

परिवार से जुड़े सचिन

दुनिया भर की तमाम प्रसिद्धियां और शोहरत पाने के बाद भी सचिन तेंदुलकर एक शालीन पारिवारिक शख़्सियत हैं और क्रिकेट के अलावा सिर्फ़ अपने परिवार के बारे में सोचते हैं. उनके साथ रहते हैं.

उनके पिता की मौत ने सचिन तेंदुलकर को झकझोर कर रख दिया था. 1999 के वर्ल्ड कप के दौरान ही उनके पिता की मौत हो गई थी. इसके बाद अपने हर शतक के बाद सचिन आसमान की तरफ़ देख कर कुछ कहते हैं. समझा जाता है कि वह अपने पिता को श्रद्धांजलि देते हैं.

उनकी सफलता ने उन्हें किसी भी प्रोडक्ट की सफलता का भी गारंटी बना दिया है. इश्तेहार करने वाली कंपनियों की लंबी लाइन लगी होती है.

लेकिन इन तमाम बातों के बाद भी सचिन ने ख़ुद को कभी क्रिकेट से अलग नहीं किया है. वह आज भी सबसे ज़्यादा मेहनत और अभ्यास करने वाले क्रिकेटरों में गिने जाते हैं.

रिपोर्टः पीटीआई/ए जमाल

संपादनः एम गोपालकृष्णन