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क्रिकेट के नवाब की विदाई

२३ सितम्बर २०११

भले ही उनकी एक आंख न हो लेकिन दूसरी आंख से ही टाइगर पटौदी भारत के पहले ताकतवर क्रिकेट कप्तान बने. शायद उन्हें एक आंख का दर्द मालूम रहा होगा, तभी जाते जाते अपनी सही आंख भी किसी और के लिए छोड़ गए.

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बेटे सैफ के साथ नवाब पटौदीतस्वीर: AP

यूं तो सौरव गांगुली को भारतीय क्रिकेट का सबसे आक्रामक कप्तान कहा जाता है लेकिन इसकी परंपरा कोई 50 साल पहले मंसूर अली खान पटौदी ने रखी थी. सिर्फ 21 साल की उम्र में भारतीय टीम की कप्तानी संभालने वाले पटौदी ने टीम का मनोबल बदल कर रख दिया था. पहली बार भारतीय टीम को यह समझाने में उन्हें कामयाबी मिली कि सिर्फ डिफेंस ही नहीं, ऑफेंस भी क्रिकेट का नियम है. उनकी अगुवाई में ही भारत ने पहली बार विदेशी धरती पर कोई टेस्ट सीरीज जीती.

दो बड़े हादसों का सामना करने के बाद पटौदी का क्रिकेट करियर शुरू हुआ. इंग्लैंड में कार चलाते हुए जब उनका एक्सीडेंट हो गया तो वह दाईं आंख खो बैठे. तब वह 20 साल के थे. ऑक्सफोर्ड में पढ़ते थे और क्रिकेट खेलते थे. हादसे के बाद उन्हें बल्लेबाजी का अंदाज बदलना पड़ा. अगले साल भारतीय टीम वेस्ट इंडीज गई तो पटौदी को दूसरा एक्सीडेंट देखना पड़ा.

Mansoor Ali Khan Pataudi
पटौदी ने क्रिकेट में भारत की ताकत का अहसास करायातस्वीर: AP

बारबाडोस में खूंखार गेंदबाज चार्ल्स ग्रिफिथ की गेंद पर भारतीय टीम के कप्तान नॉरी कांट्रैक्टर के सिर पर ऐसी चोट लगी कि उनकी जिन्दगी ही दांव पर लग गई. 21 साल के पटौदी को कप्तान बना दिया गया. मुश्किल क्षणों से उबरने के बाद वह टाइगर बन गए. हालांकि यह नाम उनके मां बाप ने उन्हें दिया था क्योंकि वह बहुत तेजी से घुटने के बल भाग सकते थे.

हादसे से मजबूत बने

पटौदी का कहना है कि हादसे ने उन्हें मजबूत बनाया. उनका कहना था कि वह युवा थे और शायद इसलिए उनमें जुझारूपन ज्यादा था. अगर यह हादसा 27-28 साल की उम्र में होता तो वह इसे नहीं झेल पाते. पटौदी का कहना था कि क्रिकेट तो दूर की बात, आंख गंवाने के बाद उन्हें गिलास में पानी डालने जैसी छोटी छोटी चीजों के लिए भी खास मशक्कत करनी पड़ती थी.

पटौदी ने गेंदबाजों के संकट को 1960 में ही समझ लिया था. उन्होंने मध्यम गति के बॉलरों की जगह स्पिनरों को तुरुप का पत्ता बनाया और भारत की सबसे मजबूत तिकड़ी प्रसन्ना, चंद्रशेखर और बेदी की टीम खड़ी करने वाले पटौदी ही माने जाते हैं. वह खुद एक शानदार बल्लेबाज थे और सिर्फ एक आंख से वेस्ट इंडीज तथा इंग्लैंड के खतरनाक गेंदबाजों का आसानी से सामना करते थे. वह भारतीय क्रिकेट के सबसे अच्छे फील्डरों में गिने जाते हैं. कवर्स में वह जिस तरह गेंद पर झपटते थे, वह लाजवाब होता था.

क्रिकेटरों का परिवार

टाइगर यूं तो पटौदी रियासत के नौवें नवाब भी थे लेकिन क्रिकेट से उनका नाता पिता के साथ जुड़ा था. टाइगर के पिता इफ्तिखार अली खान पटौदी भी क्रिकेटर थे. वह भारत और इंग्लैंड दोनों देशों के लिए अंतरराष्ट्रीय टेस्ट क्रिकेट खेल चुके थे. वह हॉकी में भी भारत का प्रतिनिधित्व कर चुके थे और बिलियर्ड्स और पोलो भी खूब खेल लेते थे. टाइगर जब 11 साल के थे, तो पोलो खेलते हुए ही उनके पिता की मौत हो गई. चूंकि बाप बेटे दोनों भारतीय क्रिकेट से ताल्लुक रखते हैं, इसलिए टाइगर के पिता को सीनियर पटौदी और उन्हें जूनियर पटौदी या टाइगर पटौदी कहा जाने लगा.

Mansoor Ali Khan Pataudi
अपनी शानदार शख्सियत के चलते पटौदी मीडिया में छाए रहते थेतस्वीर: AP

टाइगर का दूसरा चेहरा ग्लैमरस है. 1965 के आस पास उनकी मुलाकात मशहूर अदाकारा शर्मिला टैगोर से हुई, जो बाकी की जिंदगी उनके साथ रहीं. दोनों की शादी 1969 में हुई और तीन बच्चों में से दो सैफ अली खान और सोहा अली खान बॉलीवुड के अभिनेता हैं. टाइगर खुद एक शानदार हैंडसम शख्सियत थे, जिन्हें बॉलीवुड भी बहुत चाहता था.

क्रिकेट से प्यार

लेकिन उनका दिल क्रिकेट में ही लगा था. वह कभी कभी कमेंटेटर और क्रिकेट एक्सपर्ट के तौर पर मीडिया के सामने आते रहे. भले ही भारतीय क्रिकेट टीम को इस वक्त बेहद मजबूत समझा जाता हो लेकिन पटौदी रिजर्व खिलाड़ियों की जमात से खुश नहीं थे. पिछले महीने जब वह अपने पिता सीनियर पटौदी के नाम पर खेले गए पटौदी कप का पुरस्कार बांटने इंग्लैंड गए तो आखिरी लम्हों में उन्हें भारतीय टीम की ही चिंता सताती रही.

1970 के दशक में भले ही पटौदी की नवाबी खत्म हो गई लेकिन उन्हें एक शानदार नवाब के तौर पर ही याद किया जाएगा, जिसने जाते जाते भी अपनी आंख दान कर किसी के जीवन में उजाला भरने की कोशिश की.

रिपोर्टः अनवर जे अशरफ

संपादनः अशोक कुमार

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