क्यों ले जा रहा है अमेरिका अपना दूतावास येरुशलम?
७ मई २०१८14 मई, 2018 की तारीख इस्राएल समेत दुनिया के कई मुल्क याद रखेंगे. क्योंकि इस दिन अमेरिका येरुशलम में अपने इस्राएली दूतावास का उद्घाटन करेगा. इसकी तैयारियां भी काफी जोर-शोर से चल रहीं हैं. सड़कों पर रास्ते बताने वाले साइन-बोर्ड लगने लगे हैं. बीते कई दशकों से अमेरिका इस्राएल का अपना दूतावास तेल अवीव से चला रहा था. लेकिन पिछले साल अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने इसे येरुशलम ले जाने का फैसला किया. हालांकि अमेरिका के इस फैसले ने जहां इस्राएल को खुश कर दिया था तो वहीं फलस्तीन समेत पूरा अरब जगत और पश्चिमी दुनिया के कई देश उससे नाराज हो गए.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक फिलहाल एक छोटा अंतरिम दूतावास दक्षिणी येरुशलम की बिल्डिंग से संचालित होगा और, जैसे ही कोई सुरक्षित साइट मिल जाएगी पूरा दफ्तर तेल अवीव से लाया जाएगा.
क्यों लिया अमेरिका ने यह फैसला
लेकिन सवाल उठता है कि इतने विरोध के बावजूद अमेरिका ने ये फैसला क्यों लिया? जानकारों के मुताबिक इस फैसले का एक बड़ा कारण रहा है इस्राएल का दबाव. इस्राएल, अमेरिका पर दूतावास को येरुशलम ले जाने का दबाव बनाता रहा है. इसके चलते साल 2016 के राष्ट्रपति चुनाव प्रचार के दौरान ट्रंप ने इसे अपनी चुनावी वादे में शामिल किया. ट्रंप को वोट देने वाले कंजरवेटिव्स और इवानजेलिक ईसाइयों के लिए यह फैसला बहुत मायने रखता था. अमेरिका में एक बड़ा वर्ग इस्राएल की मान्यता का पक्षधर माना जाता है. इसलिए ट्रंप ने साल 1995 के उस कानून के तहत फैसला लिया जिसके मुताबिक अमेरिका का इस्राएली दूतावास येरुशलम में होना चाहिए. लेकिन ट्रंप से पहले, राष्ट्रपति पद पर रहे बराक ओबामा, जॉर्ज डब्ल्यू बुश, बिल क्लिंटन इस कानून से छूट प्राप्त करते आए हैं.
अमेरिका के अलावा, ग्वाटेमाला ने भी अपना दूतावास येरुशलम ले जाने का फैसला लिया है. पिछले महीने इस्राएली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतान्याहू ने कहा था कि अमेरिका के अतिरिक्त करीब आधा दर्जन देश अपना दूतावास येरुशलम ले जाने को लेकर गंभीर हैं.
येरुशलम पर क्यों विवाद
दरअसल येरुशलम पर विवाद सिर्फ राजनीतिक मामला नहीं, बल्कि धार्मिक मसला भी है. यहां विवाद मुख्य रूप से शहर के पूर्वी हिस्से को लेकर है जहां येरुशलम के सबसे महत्वपूर्ण यहूदी, ईसाई और मुस्लिम धार्मिक स्थल हैं. लेकिन इस्राएल सरकार पूरे येरुशलम पर पर हक जताती है. वहीं फलस्तीन के लोग चाहते हैं कि जब भी फलस्तीन एक अलग देश बने तो पूर्वी येरुशलम ही उनकी राजधानी बने.
एए/एनआर (रॉयटर्स)