क्यों रूखे लगते हैं कुछ लोग
२५ नवम्बर २०१६राइनर की तरह, ऑटिज्म वाले लोग अपने आस पास के लोगों के चेहरे पर कोई भी भाव नहीं देख पाते. इसलिए उनके लिए दूसरों की भावनाओं पर प्रतिक्रिया दिखाना मुश्किल होता है. वे खुद को कटा हुआ और अकेला महसूस करते हैं.
बर्लिन की हुम्बोल्ट यूनिवर्सिटी में इस बात पर शोध हो रहा है कि लोगों को दूसरों की भावनाओं की व्याख्या करना कैसे सिखाया जाए. इजाबेल जियोबेक अपनी टीम के साथ ऐसे तरीके विकसित कर रही हैं जिनका इस्तेमाल ऑटिज्म वाले लोग, वो करने के लिए कर सकते हैं जो दूसरे लोग अपने आप करते हैं.
प्रो. इजाबेल जियोबेक इसकी अहमियत समझाते हुए कहती हैं, "मैं समझती हूं कि दूसरों के साथ मेलजोल महत्वपूर्ण पहलू है. ये न सिर्फ हमारे सामाजिक जीवन के लिए अहम है बल्कि हमारे पेशे और सब कुछ के लिए. मेरी राय में दूसरे लोगों को पढ़ पाना जरूरी है."
जियोबेक की टीम ने ऐसा सॉफ्टवेयर विकसित किया है जो दूसरों की भावनाएं समझने में ऑटिज्म के शिकार लोगों की मदद करता है. अभिनेताओं की 40 अलग अलग भावनाओं को रिकॉर्ड किया गया है. हम कैसे दिखते हैं जब हम भावुक होते हैं, हताश होते हैं या बस खुश होते हैं.
हजारों भावों में छोटे छोटे बदलावों को ऑटिज्म के शिकार लोगों को सीखना होता है. एक अभ्यास है चेहरे और मुंह के भाव को एक साथ जोड़ना. इसका मकसद ऑटिज्म के शिकार लोगों को यह समझाना है कि कौन से भाव किस मनोदशा से जुड़े होते हैं.
प्रोफेसर जियोबेक ने एक कमजोरी पकड़ी है, "पुराने सर्वे में हमने पाया था कि ऑटिज्म वाले लोग आंखों की ओर कम ही देखते हैं. भावनाओं को पढ़ने के लिए आंखें बहुत जरूरी हैं, क्योंकि उनमें सबसे ज्यादा अभिव्यक्ति झलकती है."
इसलिए भावना वैज्ञानिक मरीजों को बताते हैं कि उन्हें कहां देखना है. हफ्ते में तीन घंटे की ट्रेनिंग, चेहरे के भावों का पढ़ने और उनकी व्याख्या करना सीखने के लिए काफी है. इजाबेल जियोबेक ने अपने अध्ययन में पाया है कि इस क्षमता से दिमाग में होने वाली गतिविधियों को मापा जा सकता है और यह भी कि दिमाग का कौन सा हिस्सा इसके लिए जिम्मेदार है.
एमजे/ओएसजे